Home Politics Lok Sabha Election 2024 : देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में क्यों मची है भगदड़, क्या है असली वजह?

Lok Sabha Election 2024 : देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में क्यों मची है भगदड़, क्या है असली वजह?

by Live Times
0 comment
Lok Sabha Election 2024: देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में क्यों मची है भगदड़, क्या है असली वजह?

Lok Sabha Election 2024 : कांग्रेस लगातार लोकसभा से लेकर विधानसभा के चुनाव हार रही है. पार्टी सिमटकर सिर्फ आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में रह गई है.

15 April, 2024

नई दिल्ली, धर्मेंद्र कुमार सिंह : देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में क्या हो रहा है कि नेता पार्टी को अलविदा कह रहे हैं. क्या इन नेताओं की अति महत्वाकांक्षा है? क्या पार्टी नेतृत्व कमजोर है? क्या पार्टी अपने पथ से भटक गई है? क्या पार्टी जनता और नेता से कट गई है? या पार्टी में पावर सेंटर की वजह से नेता शिकार हो रहे हैं? कांग्रेस लगातार लोकसभा से विधानसभा के चुनाव हार रही है. कभी देश के अधिकतर राज्यों में सत्ता में काबिज पिछले एक दशक के दौरान भाजपा आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में सिमटकर रह गई है. और तो और दो लोकसभा चुनाव में पार्टी 2 डिजिट (अंक) में सिमट गई. साफ है कि पार्टी में कहीं न कहीं गड़बड़ी है. क्या क्या गड़बड़ी है इसकी तलाश करते हैं.

इन नेताओं ने छोड़ी कांग्रेस

दरअसल, जीत के लिए छह चीजों की जरूरत होती है. एक मजबूत पार्टी, दूसरा मजबूत नेतृत्व, तीसरा मजबूत संगठन, चौथा समर्पित कार्यकर्ता, पांचवां बूथ पर मजबूती और छठा विचारधारा. लगता है कि पार्टी इन छह चीजों में कहीं न कहीं कमजोर हुई है, जिसकी वजह से पार्टी लगातार हार रही है और पार्टी में भगदड़ मची हुई है. हाल के दिनों में देखें तो कांग्रेस के बड़े बड़े नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं और इसकी वजह कमोबेश पार्टी नेतृत्व को ही दोषी ठहराया जा रहा है. हाल ही में तीन नेताओं ने पार्टी को अलविदा कर दिया है, जिसमें संजय निरुपम, गौरव वल्लभ और रोहन गुप्ता शामिल हैं. इसके पहले पार्टी छोड़नेवालों की लंबी फेहरिस्त है, जिसमें महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्वाण, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, मिलिंद देवड़ा, नवीन जिंदल, आरपीएन सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिंया, जितिन प्रसाद, संजय सिंह, रवनीत बिट्टू, परनीत कौर, सुरेश पचौरी, आचार्य प्रमोद कृष्णम, बॉक्सर विजेन्द्र सिंह, अर्जुन मोढ़वाडिया, टॉम वडक्कन, प्रियंका चतुर्वेदी, अनिल एंटनी और सुष्मिता देव समेत कई नेता हैं.

कांग्रेस में पावर सेंटर का खेल

आखिरकार नेता क्यों पार्टी छोड़ रहे हैं. संजय निरुपम का कहना है कि गांधी परिवार में 5 पावर सेंटर हैं, जिसमें 3 गांधी फैमिली के ही हैं. सोनिया गांधी , राहुल गांधी और प्रियंका गांधी और दो पावर बाहर के हैं जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और केसी वेणुगोपाल शामिल हैं. संजय निरुपम ने सिर्फ 5 पावर सेंटर की बात की है, जबकि दो और पॉवर सेंटर है. छठा पावर सेंटर है जयराम रमेश की टीम और सातवां वो हैं जो मुख्यमंत्री बनते हैं और केंद्रीय नेतृत्व की भी नहीं सुनते हैं. राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और छतीसगढ़ के भूपेश बघेल की बात किसी से छिपी नहीं है. जब पार्टी में इतने पावर सेंटर हो तो जाहिर है कि पार्टी का क्या हाल हो सकता है. कांग्रेस की कमजोरी में पावर सेंटर मुख्य मुद्दा माना जाता है, जिसकी वजह से पार्टी नेता और जनता दोनों से कट रही है. सवाल है कि नेता कांग्रेस पार्टी को छोड़ रहे हैं या कांग्रेस पार्टी नेताओं को छोड़ रही है क्योंकि इन्हें रोकने की कोई कोशिश नहीं हुई है.

गांधी परिवार के हाथ में रिमोट कंट्रोल

चाहे सरकार की बात हो या पार्टी की, गांधी परिवार अपने हाथ में ही रिमोट कंट्रोल रखना चाहती है. मनमोहन सिंह की सरकार 10 साल केन्द्र में रही है लेकिन सोनिया गांधी पर आरोप लगता रहा कि वही मनमोहन सिंह की सरकार चलाती थीं. कांग्रेस पार्टी पर पहले जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी का कब्जा था, लेकिन वो दोनों नेता काफी मजबूत थे, इसीलिए उनके कार्यकाल में पार्टी भी मजबूत थी, लेकिन अब कांग्रेस में मजबूत नेता नहीं है लेकिन गांधी परिवार पार्टी पर दबदबा बनाकर रखना चाहता है. एक अरसे तक तो सोनिया गांधी ही अध्यक्ष थीं. जब सोनिया गांधी हटीं तो राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन लोकसभा 2019 के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. फिर मल्लिकार्जुन खरगे अध्यक्ष बने तो आरोप लगे कि गांधी परिवार पार्टी और नेतृत्व पर अपना दबदबा बनाकर रखना चाहता है, इसीलिए गांधी परिवार शशि थरूर की जगह मल्लिकार्जुन खरगे के समर्थन में उतर गया है. भले ही पर्दे पर मल्लिकार्जुन खरगे दिखते हैं लेकिन पर्दे के पीछे सोनिया गांधी और राहुल गांधी की ही चलती है. इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कांग्रेस को परिवारवादी पार्टी का आरोप लगाते हैं और संदेश यही है कि कांग्रेस परिवारवादी पार्टी है. कांग्रेस की कमजोरी में परिवारवाद दूसरी वजह मानी जाती है.

हिंदुत्व पर पार्टी कंफ्यूजड

1984 के बाद राम मंदिर का आंदोलन परवान चढ़ने लगा तो राजीव गांधी ने बैलैंस की राजनीति शुरू की, एक तरफ राममंदिर का ताला खुलवाया तो दूसरी तरफ शाह बानो के गुजारा भत्ते के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया, लेकिन विवादित बाबरी मस्जिद को 1992 में गिराया गया तो उस समय के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने भाजपा के तीन राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगा दिया और एक कानून बनाया जिसके मुताबिक 15 अगस्त 1947 से पहले जिस भी धर्म का जो पूजा स्थल था, उसे किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता है. इस फैसले के बाद भाजपा की कोशिश रही है कि कांग्रेस को हिंदू विरोधी पार्टी के रूप में पेश किया जाए और कांग्रेस भाजपा को कम्युनल पार्टी कहती थी और बीजेपी कांग्रेस पर धर्मनिरपेक्ष पार्टी का आरोप लगाती थी. जब कांग्रेस 2014 में हारी तो पार्टी ने हार के कारणों की समीक्षा के लिए एके एंटनी के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई थी. एंटनी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कांग्रेस की छवि हिंदू विरोधी होती जा रही है. इस छवि में सुधार नहीं हुआ बल्कि राम मंदिर उद्घाटन में पार्टी दूर रही. कांग्रेस छोड़ने वाले ज्यादातर नेताओं की यही राय रही है कि राम मंदिर का विरोध और सनातन धर्म पर पार्टी के रुख को डिफेंड कराना मुश्किल हो जाता है. पहले तो कांग्रेस सीएए का विरोध करती थी, लेकिन अभी जो पार्टी घोषणा पत्र जारी हुआ है उसमें पार्टी ने चुप्पी साथ ली है. पार्टी की लगातार हार के बाद नेताओं को लगने लगा है कि कांग्रेस पार्टी की हार की मुख्य वजह हिंदुत्व की राजनीति भी रही है.

आर्थिक नीति पर संशय

प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के कार्यकाल में उदारीकरण का दौर शुरू हुआ. अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में बदस्तूर जारी है हालांकि मनमोहन सिंह की सरकार में कई कल्याणकारी नीति के जरिए उदारवादी नीति की धार को कम करने की कोशिश की गई. हालांकि सफलता नहीं मिली और अब कांग्रेस में बैठी है. अब लगता है कि पार्टी उदारवाद के पहले दौर में लौटना चाहती है. एनपीएस को खत्म करने की बात, कल्याणकारी योजनाओं पर जोर देने की कोशिश हो रही है. कांग्रेस इस चुनाव में पांच गारंटी लेकर आई है महिला, युवा, किसान, बेरोजगार इत्यादि के लिए कई लुभावने वायदे किए हैं. जानकारों का मानना है कि अगर कांग्रेस जीतती है तो सरकार की उदारवादी नीति की रफ्तार धीमी हो सकती है. दूसरी तरफ राहुल गांधी अडानी और अंबानी पर निशाना साधते हैं तो वहीं कांग्रेस शासित राज्यों में सरकार अडानी और अंबानी का स्वागत करती है. लेकिन अब ये संदेश जा रहा है कि राहुल गांधी वेल्थ क्रिएटर्स को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं. इसी सारे मुद्दे को लेकर कांग्रेस के नेताओं में नाराजगी देखी जा रही है, जिसकी वजह से नेता पार्टी को छोड़ कर जा रहे हैं.

लेखक धर्मेंद्र कुमार सिंह (इनपुट हेड,लाइव टाइम्स)
(स्तंभ में लेखक के निजी विचार हैं)

ये भी पढ़ें- Gujarat News : वडोदरा में Traffic Police को मिला AC हेलमेट, चिलचिलाती गर्मी से राहत के लिए मिली यह सुविधा

You may also like

Leave a Comment

Feature Posts

Newsletter

Subscribe my Newsletter for new blog posts, tips & new photos. Let's stay updated!

@2024 Live Times News. All Right Reserved.

Are you sure want to unlock this post?
Unlock left : 0
Are you sure want to cancel subscription?
-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00