Home National आखिर क्यों इतनी खास है पारंपरिक बग्घी? क्यों बंद किया गया था इसका उपयोग; जानें पूरी डिटेल

आखिर क्यों इतनी खास है पारंपरिक बग्घी? क्यों बंद किया गया था इसका उपयोग; जानें पूरी डिटेल

by Live Times
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Republic Day 2025: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और उनके साथ इंडोनेशियाई समकक्ष प्रबोवो सुबिआंतो रविवार को 76वें गणतंत्र दिवस परेड के लिए पारंपरिक बग्घी में कार्तव्य पथ पहुंचे.

Republic Day 2025: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और उनके साथ इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांटो रविवार को 76वें गणतंत्र दिवस परेड के लिए पारंपरिक बग्घी में कर्त्तव्य पथ पहुंचे.

Republic Day 2025: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और उनके साथ इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांटो रविवार को 76वें गणतंत्र दिवस परेड के लिए पारंपरिक बग्घी में कर्त्तव्य पथ पहुंचे. इस परंपरा को 40 साल के अंतराल के बाद पिछले साल फिर से शुरू किया गया था. राष्ट्रपति के अंगरक्षक की ओर से मुर्मु और सुबियांटो अगवानी की गई. ‘राष्ट्रपति के अंगरक्षक’ भारतीय सेना की सबसे वरिष्ठ रेजिमेंट होता है.

क्यों खास है पारंपरिक बग्घी?

सोने की परत चढ़ी, घोड़े से खींची जाने वाली बग्घी एक काली गाड़ी है, जिस पर सोने से राष्ट्रीय प्रतीक उभरा हुआ है. भारतीय और ऑस्ट्रियाई घोड़ों की मिश्रित नस्ल की ओर से खींची जाने वाली इस बग्घी में सोने की परत चढ़ाए गए रिम भी हैं. यहां बता दें कि राष्ट्रपति बग्घी का उपयोग वर्ष 1984 तक गणतंत्र दिवस समारोहों के लिए किया जाता था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद इसे बंद कर दिया गया था, लेकिन इसे फिर से शुरू कर दिया गया है.

गणतंत्र दिवस के मौके पर फहराया ध्वज

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने 76वें गणतंत्र दिवस पर कर्त्तव्य पथ पर राष्ट्रीय ध्वज भी फहराया. इसमें भारतीय नौसेना के अधिकारी लेफ्टिनेंट शुभम कुमार और लेफ्टिनेंट योगिता सैनी ने सहायता की. ध्वज फहराने के बाद राष्ट्रगान गाया गया और प्रतिष्ठित कर्त्तव्य पथ पर तैनात स्वदेशी हथियार प्रणाली 105 मिमी लाइट फील्ड गन के साथ 21 तोपों की सलामी दी गई. 172 फील्ड रेजिमेंट की औपचारिक बैटरी द्वारा बंदूक की सलामी दी गई.

क्यों बंद हुआ था बग्गी का इस्तेमाल?

गौरतलब है कि सुरक्षा कारणों से बंद होने से पहले इस बग्घी का इस्तेमाल आखिरी बार 1984 में ज्ञानी जैल सिंह ने किया था. इसके बाद राष्ट्रपतियों ने यात्रा के लिए लिमोजीन का उपयोग करना शुरू कर दिया. हालांकि, साल 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बीटिंग रिट्रीट समारोह के लिए इसका दोबारा इस्तेमाल किया. उनके उत्तराधिकारी रामनाथ कोविंद ने इस परंपरा को जारी रखा. वहीं, साल 2017 में शपथ लेने के बाद उन्होंने राष्ट्रपति की ज्ञानी जैल सिंहमें गार्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण किया.

किसकी थी बग्गी ?

ब्रिटिश काल के दौरान बग्घी भारत के वाइस-रोय की थी. वर्ष 1947 में भारत की आजादी के बाद गाड़ी पर दावे को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद छिड़ गया. विवाद का कोई तत्काल समाधान और निर्णय लेने के लिए उच्च अधिकार नहीं होने की वजह से भारत के तत्कालीन लेफ्टिनेंट कर्नल ठाकुर गोविंद सिंह और पाकिस्तानी सेना के साहबजादा याकूब खान ने इस तथ्य की पूरी जिम्मेदारी ली कि बग्घी का स्वामित्व सिक्का उछालने पर निर्भर करेगा. ऐसा माना जाता है कि भारत ने टॉस जीता और तब से बग्गी देश के पास है. इस गाड़ी का उपयोग कई राष्ट्रपतियों द्वारा विभिन्न अवसरों पर किया गया है.

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