Home History Bakri Eid Kab Hai 2024: क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी, कब से शुरू हुआ चलन, जानिए बकरीद का पूरा इतिहास

Bakri Eid Kab Hai 2024: क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी, कब से शुरू हुआ चलन, जानिए बकरीद का पूरा इतिहास

by Live Times
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Bakri Eid Kab Hai 2024

Bakri Eid Kab Hai 2024: बकरीद की तारीख इस्लामिक कैलेंडर के महीने जिलहिज्जा में चांद दिखने पर तय होती है. उस तारीख को ईद उल-अजहा यानी बकरीद मनाई जाती है. बकरीद पर हमेशा से बकरे की कुर्बानी का चलन नहीं था, इसकी शुरुआत कब से हुई, इस रिपोर्ट में समझते हैं.

13 June, 2024

Eid-Ul-Adha 2024: बकरीद या ईद उल-अजहा मुस्लिम समाज के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है. यह त्योहार कुर्बानी और त्याग के रूप में हर साल मनाया जाता है. इस दिन ‘हलाल जानवर’ की कुर्बानी दी जाती है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, साल के 12वें यानी आखिरी महीने, जिसे जिलहिज्जा कहा जाता है, इस महीने की 10वीं तारीख का चांद देखने के बाद बकरीद मनाई जाती है.

कब तय हुई बकरीद की तारीख?

इस्लामिक केलेंडर के अनुसार भारत में 7 जून को जिलहिज्जा का चांद देखा गया था. चूंकि जिलहिज्जा के 10वें दिन बकरीद मनाई जाती है तो ये तारीख भारत में 17 जून को पड़ रही है. इस्लामिक गुरु मुफ्ती मुकर्रम ( Mukarram Ahmad ) ने बकरीद मनाने की जानकारी देते हुए कहा कि, ‘ईद-उल-फितर के उलट बकरीद का त्योहार इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने के चांद दिखने के 10वें दिन मनाया जाता है.’

गुजरात समेत देश के अलग-अलग राज्यों में बकरीद का चांद देखा जा चुका है. जामा मस्जिद के पूर्व शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने भी 17 जून को बकरीद मनाए जाने की बात कही है.

(Why Bakri eid is celebrated) क्यों मनाई जाती है बकरीद?

ईद-उल-अजहा का त्योहार तीन दिन तक मनाया जाता है. इस त्योहार में मुस्लिम समुदाय के लोग अपनी हैसियत के हिसाब से उन पशुओं की कुर्बानी देते हैं, जो भारतीय कानूनों के तहत प्रतिबंधित नहीं होते. इस्लामिक मान्यता के मुताबिक, ईद-उल-अजहा पैगंबर इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है.

कुर्बानी का जिक्र कुरान और हदीस में मिलता है. इसके मुताबिक मक्का शरीफ में रहने वाले पैगंबर इब्राहिम अपने बेटे इस्माइल को इस दिन अल्लाह के हुक्म पर कुर्बान करने जा रहे थे. तभी अल्लाह ने उनके बेटे को जीवनदान दे दिया और इस्माइल की जगह एक दुम्बा यानी बकरे की एक प्रजाती को कुर्बान किया गया.

इसी के बाद से ही कुर्बानी के तौर पर बकरे को कुर्बान करने का चलन शुरू हुआ. इस चलन के जरिए कुर्बानी दुम्बे यानी बकरे पर ही जायज होने लगी.

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