Ratan Tata Death: रतन टाटा से जुड़ी दिलचस्प कहानियां शब्दों के माध्यम से लोगों तक पहुंच रही हैं. इसमें टाटा नैनो (TATA Nano) की कहानी भी शामिल है.
Ratan Tata Death: देश के दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा का बुधवार की रात (9 अक्टूबर) 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया. उनके निधन के बाद देश में शोक की लहर दौड़ गई.
रतन टाटा को गुरुवार (10 अक्टूबर) को अंतिम विदाई दी जाएगी. रतन टाटा से जुड़ी दिलचस्प कहानियां शब्दों के माध्यम से लोगों तक पहुंच रही हैं. इसी कड़ी में टाटा नैनो (TATA Nano) की कहानी भी शामिल है, लखटकिया कार कहा जाता था.
दूरदर्शी था रतन टाटा का नजरिया
रतन टाटा का नजरिया काफी दूरदर्शी था. वह खुद भी सामान्य जीवन जीते थे और आम लोगों की जिंदगी बेहतर बनाने के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया. हर मध्यवर्गीय परिवार की कार की जरूरत को पूरा करने के लिए उन्होंने एक सपना देखा.
इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने एक कार लॉन्च की. कार सिर्फ 1 लाख रुपये की थी. रतन टाटा ने कार का नाम रखा ‘नैनो’. यह उनका ड्रीम प्रोजेक्ट था. खुद रतन टाटा ने भी इसे लॉन्च करते हुए आम लोगों की कार का नाम दिया था.
ऐसे समय में जब देश में कार को लग्जरी माना जाता था, उस समय रतन टाटा ने आम लोगों के लिए बेहद कम दाम में इसे लॉन्च किया. हालांकि, इस कार को जमीन पर लाने के लिए रतन टाटा और उनकी टीम ने कड़ी मेहनत की.
लखटकिया कार कहकर नकारा
लेकिन, रतन टाटा के सपने का हाल ऐसा हुआ, जिससे वह बेहद दुखी हो गए. देश की जनता ने इसे लखटकिया कार कहकर नकार दिया. इससे रतन टाटा को काफी झटका लगा था. इसे साल 2008 में लॉन्च किया गया था. साल 2009 से कार की डिलीवरी शुरू हुई.
दस साल कार की बिक्री कम होने के कारण 2019 में इसके प्रोडक्शन को रोक दिया गया. हालांकि, साल 2022 में छोटी कारों की बिक्री बढ़ने के बाद रतन टाटा ने अपने सोशल मी एक भावुक पोस्ट भी किया.
उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा कि मैं अक्सर लोगों को फैमिली के साथ स्कूटर पर जाते देखता था. बच्चे अपने पिता और माता के बीच में ऐसे बैठे दिखते थे, जैसे वह सैंडविच हो.
उन्होंने आगे कगहा कि इससे मुझे प्रेरणा मिली कि मैं सामान्य लोगों के लिए एक कार बनाऊं. इसमें आर्किटेक्चर स्कूल से पढ़े होने का यह फायदा मिला, जब मैं डूडल बनाता था.
डूडल बनाते हुए बनाया मॉडल
रतन टाटा आगे लिखा कि कार का डूडल बनाते समय मैंने एक ऐसा डूडल बनाया, जो एक बग्गी जैसा दिखता था. उसमें दरवाजे नहीं थे. इसके बाद ही मैंने सोचा कि मुझे मध्यमवर्गीय लोगों के लिए कार बनानी चाहिए और फिर टाटा नैनो अस्तित्व में आ गई.
उन्होंने आगे कहा कि यह कार हमारे जैसे आम लोगों के लिए थी. उन्होंने आगे कहा कि हमारे लोगों का मतलब देश के वैसे लोगों से है, जो कार का सपने तो देखते हैं, लेकिन वह कार खरीदने में सक्षम नहीं हैं. टाटा नैनो लॉन्च हुई, लेकिन सफल नहीं हो पाई.
इस विचार को उन्होंने जमीन पर उतारने का जिम्मा अपने साथी गिरीश वाघ को सौंपा. रतन टाटा और गिरीश वाघ ने 5 साल मेहनत कर इस ड्रीम को पूरा किया. डिजाइन का काम पूरा होने के बाद रतन टाटा ने 18 मई, 2006 को पश्चिम बंगाल के तत्कालीन CM बुद्धदेव भट्टाचार्य के साथ बैठक की.
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पश्चिम बंगाल में हुआ था विरोध
बैठक के बाद रतन टाटा ने ऐलान किया कि टाटा नैनो का प्लांट पश्चिम बंगाल में हुगली जिले के सिंगूर इलाके में लगाया जाएगा. इसके लिए 1 हजार एकड़ की जमीन पर काम शुरू हुआ, लेकिन साल 2008 में इसे लेकर विवाद हो गया.
राजनीतिक विरोध और कर्मचारियों की सुरक्षा के मद्देनजर उन्होंने प्लांट को सिंगूर से हटाकर कहीं और लगाएंगे. उस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. उन्होंने इस महत्वाकांक्षी परियोजना को गुजरात के साणंद में लाने का प्रस्ताव दिया.
इसके बाद ही नैनो का प्लांट सिंगूर से 3,340 ट्रकों और करीब 500 कंटेनरों पर सवार होकर गुजरात पहुंचा. इसके बाद सात महीने का समय लगा और साल 2008 में रतन टाटा ने दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित दिल्ली ऑटो एक्सपो में टाटा नैनो को लोगों के सामने पेश किया.
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