Jairam Kumar Mahato: सदन के अंदर हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी को चुनने के सवाल पर उन्होंने कहा कि अभी इस पर वो कोई निर्णय नहीं ले सके हैं, जल्द ही पार्टी नेताओं के साथ बैठक आगे की रणनीति का खुलासा करेंगे.
रांची, राजेश तोमर: झारखंड की राजनीति के उभरते चेहरे टाइगर जयराम महतो (Jairam Kumar Mahato) ने अपनी धमाकेदार जीत से डुमरी विधानसभा सीट पर कब्जा जमाया. इसके बाद अब उनकी गूंज विधानसभा तक पहुंचने वाली है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जयराम महतो विधानसभा में किस ओर बैठेंगे? क्या वह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का साथ देंगे या फिर विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के खेमे में जाएंगे या फिर अलग राह चुनेंगे और अपनी स्वतंत्र पहचान बनाए रखेंगे?
बनाई मजबूत नेता के रूप में पहचान
गौरतलब है कि जयराम महतो की पार्टी झारखंड लेबर किसान मंच (JLKM) ने राज्य में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और उन्होंने अपनी पहचान एक मजबूत नेता के रूप में बनाई. यह अलग बात है कि वह अपनी पार्टी के इकलौते विधायक हैं, लेकिन उनकी सीट और समर्थन का राज्य की राजनीति में खासा महत्व है. विधानसभा सत्र 9 से 12 दिसंबर के बीच शुरू होने वाला है, यहां जयराम महतो के निर्णय पर सबकी निगाहें टिकी होंगी.
1932 खतियान और नियोजन नीति बना बड़ा मुद्दा
जयराम महतो ने पहले भी साफ कहा है कि यदि राज्य सरकार 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति और नियोजन नीति को सही तरीके से लागू करती है, तो वे हेमंत सोरेन का समर्थन करेंगे। यदि ऐसा नहीं होता, तो वे अपना अलग रास्ता चुनने को तैयार हैं।
विधानसभा में सीट का सवाल
बताया जा रहा है कि जयराम महतो JLKM से अकेले विधायक हैं. ऐसे में उन्हें विधानसभा में अगली पंक्ति में सीट दी जाएगी. चाहे वह सरकार का समर्थन करें या फिर विपक्ष में बैठें या फिर स्वतंत्र रूप से रहें.
यह भी पढ़ें: जयराम महतो कौन हैं, जिन्होंने झारखंड में NDA को हराया, अनजाने बनवा दी हेमंत सोरेन की सरकार !
राजनीतिक प्रभाव
झारखंड की राजनीति में जयराम महतो का निर्णय बड़ा असर डाल सकता है. कहा जा रहा है कि विधानसभा में जब बिल पेश किए जाएंगे, तो जयराम का समर्थन या विरोध सरकार की स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण होगा. अब यह देखना होगा कि टाइगर जयराम अपनी राजनीतिक रणनीति के तहत किस ओर रुख करते हैं. उनका यह फैसला झारखंड की राजनीतिक दिशा को प्रभावित करने की क्षमता रखता है. यह आने वाले विधानसभा सत्र में ही स्पष्ट होगा.
यह भी पढ़ें: ‘महल’ जैसे भवन में रहकर भी सोते थे चटाई पर, राष्ट्रपति को क्यों मांगने पड़े थे अपनी ही पत्नी के जेवर