Hool diwas: देशभर में 30 जून को हूल दिवस मनाया गया. संथाली भाषा में हूल शब्द का अर्थ विद्रोह होता है. इसे अंग्रेजों के खिलाफ पहली क्रांति के नाम से भी जाना जाता है.
01 July, 2024
Hool diwas: हर साल 30 जून को हूल दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसे संथाल विद्रोह के नाम से भी जानते हैं. यह दिन उन आदिवासियों के संघर्ष की गाथा और बलिदान को बयान करता है, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के खिलाफ लोहा लिया था. कृषि कानूनों के खिलाफ धरने पर बैठे सदस्य भी आज इस दिन यानी ‘आजादी की पहली लड़ाई’ को सेलिब्रेट कर रहे हैं.
अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की पहली लड़ाई
अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की पहली लड़ाई 1857 में हुई क्रांति को माना जाता है, लेकिन झारखंड के आदिवासियों द्वारा सन् 1855 में ही अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत हो चुकी थी. इस विद्रोह की शुरुआत सिद्धू और कान्हू के नेतृत्व में 30 जून, 1855 को मौजूदा साहिबगंज जिले के भगनाडीह गांव से हुई थी. विद्रोह का नारा था, ‘करो या मरो, अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो.’
हूल क्रांति का मतलब
हूल शब्द का अर्थ संथाली भाषा में विद्रोह होता है. वर्ष 1855 में हुए इस विद्रोह में 400 गांवों के 50,000 से ज्यादा लोगों ने भाग लिया और झारखंड के भोलनाडीह गांव पहुंचकर जंग का एलान किया. आदिवासी भाई सिद्धू-कान्हू के नेतृत्व में छिड़े इस विद्रोह में संथालों द्वारा अंग्रेजों को मालगुजारी न देने के साथ ही हमारी माटी छोड़ो का ऐलान किया.
संथालों ने जमकर किया विरोध
विद्रोह के दौरान संथालों ने अंग्रेज सरकार की तरफ से आए जमीनदारों और सिपाहियों का डटकर मुकाबला किया. इस क्रांति को रोकने के लिए अंग्रेजों ने क्रूरता की सारी सीमाएं लांघ दी थीं. फिर सिद्धू और कान्हू दोनों पकड़े गए जिनको 26 जुलाई, 1855 के दिन भोगनाडीह गांव में पेड़ से लटका फांसी पर चढ़ा दिया गया. इन्हीं शहीदों को याद करते हुए हर साल 30 जून को हूल दिवस के रूप में मनाया जाता है. करीब 20 हजार लोगों ने इस महान क्रांति में शहादत दी थी.
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