Toilet Museum in Delhi: राजधानी दिल्ली में स्थित सुलभ इंटरनेशनल म्यूजियम ऑफ टॉयलेट्स को 1992 में संस्थापक डॉक्टर बिंदेश्वर पाठक द्वारा बनवाया गया था. इसमें आपको दुनियाभर के कई टॉयलेट्स देखने को मिलेंगे.
01 July, 2024
Toilet Museum in Delhi : दिल्ली में सुलभ इंटरनेशनल म्यूजियम ऑफ टॉयलेट्स में तरह-तरह के शौचालयों की नकल देखने को मिलती है. इनका इस्तेमाल सदियों से होता आया है. इनमें ‘सिंहासन शौचालय’ की नकल भी शामिल है. माना जाता है कि इसका इस्तेमाल किंग लुईस-14 दरबार के समय करते थे. इसके अलावा, ब्रिटिश शिकारियों में लोकप्रिय टेबल-टॉप शौचालय, बुक की शेप का शौचालय, यात्रा के अनुकूल पोर्टा पोटिस शौचालय और मोबाइल शौचालयों की भी नकल देखने को मिलती हैं.
कब और कितने बनवाया म्यूजियम
इस म्यूजियम को 1992 में सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉक्टर बिंदेश्वर पाठक ने बनवाया था. यह एक गैर सरकारी संगठन है जो कई दशकों से स्वच्छता के लिए काम कर रहा है. ट्रैवल राइटर और ब्लॉगर्स अक्सर इस म्यूजियम को दुनिया के सबसे अजीब म्यूजियम्स में गिनते हैं. ये लोगों को शौचालयों का इतिहास बताता है. इसमें 4,500 साल पहले हड़प्पा सभ्यता में इस्तेमाल किया गया शौचालय भी शामिल हैं.
सुलभ इंटरनेशनल ने देशभर में बनवाए शौचालय
म्यूजियम रोज सुबह 10 बजे से शाम छह बजे तक खुला रहता है. यहां आने के लिए कोई शुल्क नहीं देना पड़ता. म्यूजियम में डॉक्टर पाठक के आविष्कार किए गए शौचालय भी हैं. यह बिना किसी रसायन का इस्तेमाल किए शौच को प्राकृतिक रूप से खाद में बदल देते हैं. सुलभ इंटरनेशनल ने देश भर में करीब 10,000 सार्वजनिक शौचालय बनवाए हैं. संगठन सफाई और मासिक धर्म के दौरान सफाई को बढ़ावा देता है.
मिला 50 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार
म्यूजियम में इंसानों के शौच के अलग इस्तेमाल का तरीका भी देखने को मिलता है. नए तरीकों में ऊर्जा और पानी का उत्पादन भी शामिल है. इसका इस्तेमाल सिंचाई या दूसरे काम के लिए किया जा सकता है. डॉक्टर बिंदेश्वर पाठक की कोशिशों का देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य और सफाई में सुधार पर काफी असर पड़ा है. इसके लिए उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं. अपने निधन से 2 साल पहले 2021 में उन्हें देश का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार – पद्म विभूषण मिला था. सुलभ इंटरनेशनल से 50,000 से ज्यादा लोगों को रोजगार भी मिला है.
यह भी पढ़ें: Hool diwas : क्या है हूल दिवस? कब और क्यों मनाया जाता है? जानिए इसका भारत की आजादी से कनेक्शन