Home National अफसरों के खिलाफ FIR के लिए CBI को नहीं लेनी होगी राज्य की सहमति, हाई कोर्ट का फैसला हुआ रद्द

अफसरों के खिलाफ FIR के लिए CBI को नहीं लेनी होगी राज्य की सहमति, हाई कोर्ट का फैसला हुआ रद्द

by Live Times
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SC Decision : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के अफसरों के खिलाफ बड़ा फैसला सुनाया है. उन्होंने कहा कि सीबीआई को केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज करने के लिए राज्यों की सहमति लेने की जरूरत नहीं है.

SC Decision : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के अफसरों के खिलाफ बड़ा फैसला सुनाया है. उन्होंने कहा कि सीबीआई को केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज करने के लिए राज्यों की सहमति लेने की जरूरत नहीं है.

SC Decision : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) जांच के लिए बेहद अहम फैसला सुनाया है. इस दौरान उन्होंने कहा कि CBI को राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में तैनात केंद्र के अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए राज्य सरकारों की अनुमति की आवश्यकता नहीं है. CBI बिना किसी राज्य सरकार की मंजूरी के भी शिकायत दर्ज कर सकती है.

पीठ ने सुनाया फैसला

जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने 2 जनवरी को आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के उस आदेश को पलट दिया जिसमें भ्रष्टाचार के मामले में 2 केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ CBI जांच को रद्द कर दिया गया था. उन्होंने कहा कि तैनाती के स्थान पर ध्यान दिए बिना पूर्वोक्त तथ्यात्मक स्थिति ये दर्शाती है कि वे केंद्र सरकार के कर्मचारी थे, उन्होंने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत गंभीर अपराध किया है, जो एक केंद्रीय अधिनियम है.

CBI की याचिका पर लिया गया फैसला

ये मामला आंध्र प्रदेश में कार्यरत केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ CBI की ओर से दर्ज की गई प्राथमिकी से उत्पन्न हुआ. उन्होंने CBI के अधिकार क्षेत्र को आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें तर्क दिया गया था कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 (डीएसपीई अधिनियम) के तहत अविभाजित आंध्र प्रदेश राज्य ने CBI को दी गई सामान्य सहमति, विभाजन के बाद नवगठित आंध्र प्रदेश राज्य पर स्वतः लागू नहीं होती.

हाई कोर्ट का फैसला किया रद्द

SC ने आरोपितों से सहमति जताते हुए कहा कि जिन पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था उसके लिए प्राथमिकी रद्द कर दी और इस बात पर जोर दिया कि आंध्र प्रदेश से नए सिरे से सहमति लेना आवश्यक है. जस्टिस रविकुमार, जिन्होंने 32 पृष्ठ का निर्णय लिखा था, SC की व्याख्या से असहमत थे. इसके बाद से उन्होंने फैसला सुनाया है.

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