Reported By Rajeev Ojha
चुनाव दर चुनाव खिसकते जनाधार के बीच बसपा में जारी उठापटक थमने का नाम नहीं ले रही है. लंबे समय तक परिवारवाद से बचती रहीं बसपा सुप्रीमो मायावती अब कभी परिवार के मोह में पड़ती दिखती हैं तो कभी मोह से बाहर निकलने की कोशिश करती दिखती हैं.
LUCKNOW: चुनाव दर चुनाव खिसकते जनाधार के बीच बसपा में जारी उठापटक थमने का नाम नहीं ले रही है। लंबे समय तक परिवार से बचती रहीं बसपा सुप्रीमो मायावती अब कभी परिवार के मोह में पड़ती दिखती हैं तो कभी मोह से बाहर निकलने की कोशिश करती दिखती हैं. कभी अपने भाई आनंद कुमार की जगह भतीजे आकाश आनंद को तवज्जो देती हैं तो कभी भतीजे को बाहर का रास्ता दिखाकर फिर से भाई पर भरोसा जताती हैं. पार्टी के इस पूरे विवाद में भतीजे आकाश आनंद के ससुर डॉक्टर अशोक सिद्धार्थ मायावती की नजर में खलनायक बनकर उभरे हैं.

आकाश आनंद की लांचिंग के साथ ही पड़ गई पार्टी में विवाद की नींव
बसपा में विवाद की यह कहानी शुरू होती है आकाश आनंद की लांचिंग के साथ. आकाश आनंद की बसपा में एंट्री हुई तो मान लिया गया कि वह मायावती के उत्तराधिकारी होंगे. उनके तेवर भी ऐसे ही दिख रहे थे. लोकसभा चुनाव के दौरान जब आकाश आनंद का भाषण सुर्खियों में आया तो मायावती ने तत्काल उन्हें पीछे खींच लिया. तब माना गया कि मायावती आकाश को विवादों से बचाकर रखना चाहती हैं और हुआ भी ऐसा ही. लोकसभा चुनाव के बाद वह अपनी भूमिका में फिर से लौट आए थे. अब पहली बार परिवारवाद में फंसी मायावती ने डैमेज कंट्रोल के लिए भी अपना पुराना तरीका ही फिर आजमाया.
बहनजी के तेवर भांप भाई आनंद ने खुद ही दायित्व लेने में जता दी असमर्थता
बसपा सुप्रीमो ने बड़ा फैसला लेते हुए अपने बड़े भतीजे आकाश आनंद को पहले पार्टी के सभी पदों से हटा दिया और फिर उनको पार्टी से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया. फिर आकाश आनंद की जगह अब उनके पिता यानि बसपा सुप्रीमो के भाई आनंद कुमार और रामजी गौतम को नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाया. बाद में आनंद कुमार ने नेशनल कोऑर्डिनेटर के रूप में काम करने में असफलता जताई तो बसपा सुप्रीमो को इसका बुरा नहीं लगा. मायावती ने रणधीर बेनीवाल को आनंद कुमार की जगह नेशनल कोऑर्डिनेटर बना दिया. आनंद कुमार अब केवल राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में काम करेंगे.

मेरी आखिरी सांस तक अब पार्टी में मेरा कोई भी उत्तराधिकारी नहींः बहनजी
बसपा सुप्रीमो ने यह सब फैसला लेते हुए कहा कि मेरे जीते जी, मेरी आखिरी सांस तक अब पार्टी में मेरा कोई भी उत्तराधिकारी नहीं होगा. मायावती ने कहा कि फैसले का पार्टी के लोगों ने दिल से स्वागत किया है. मेरे लिए पार्टी पहले है. मायावती के इस फैसले की अब समीक्षा भी शुरू हो गई है. इसको दो तरह से देखा जा रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पार्टी के घटते जनाधार और वोटबैंक के लिए मायावती ने एक ऐसे शख्स को जिम्मेदार बता दिया जिसका राजनीति से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है. बसपा के किसी कार्यक्रम में आकाश आनंद की पत्नी डॉक्टर प्रज्ञा नहीं दिखी हैं. वह एक डॉक्टर हैं और उनकी अपनी अलग दुनिया है. मायावती के फैसले से ये तो तय है कि बसपा सुप्रीमो पार्टी और परिवार दोनों की लगाम अपने हाथ में रखना चाहती हैं.
आकाश के ससुर डॉक्टर सिद्धार्थ को भी नहीं छोड़ा, पार्टी से बाहर का दिखा दिया रास्ता
मायावती के बयानों से साफ लग रहा है कि वह आकाश के ससुर डॉक्टर अशोक सिद्धार्थ से काफी नाराज हैं. आकाश आनंद और डॉक्टर प्रज्ञा की शादी को अभी दो साल भी पूरे नहीं हुए कि खबरें आने लगीं कि आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ और उनकी बेटी डॉक्टर प्रज्ञा से बसपा सुप्रीमो की दूरियां बढ़ने लगी हैं. अभी कुछ दिनों पहले ही बसपा सुप्रीमो ने आकाश आनंद के ससुर और डॉक्टर प्रज्ञा के पिता अशोक सिद्धार्थ को, जो दक्षिण भारत में पार्टी का काम देख रहे थे, को पार्टी से बाहर कर दिया था.

गुटबाजी और परिवारवाद के खिलाफ बहनजी ने उठाया कदम
मायावती ने तब ये कहा था कि बसपा के वरिष्ठ नेताओं द्वारा मुझे ये जानकारी दी गई थी कि अशोक सिद्धार्थ दक्षिण भारत में पार्टी का विस्तार करने की बजाय चुनावी राज्यों में ज्यादा सक्रिय रहते हैं, जहां उनको कोई दायित्व नहीं दिया गया है. मुझे ये भी बताया गया था कि अशोक सिद्धार्थ हरियाणा और दिल्ली के विधानसभा चुनाव में कैंडिडेट तय करने से लेकर प्रचार करने तक की प्रक्रिया को प्रभावित कर रहे थे. इसी वजह से पार्टी को दोनों राज्यों में बुरी तरह असफलता मिली थी. आकाश आनंद के पार्टी में वापसी के बाद से अशोक सिद्धार्थ की सक्रियता बढ़ गई थी. उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की वजह से वो लगातार पार्टी हित की जगह अपना हित देख रहे थे. अतः मैं गुटबाजी और पार्टी के अंदर परिवारवाद के पनपने के खिलाफ थी, इसलिए अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से बाहर किया.
राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि अशोक सिद्धार्थ की वजह से छोटे भतीजे ईशान आनंद अलग-थलग न पड़े और पार्टी में ससुर-दामाद गठजोड़ न दिखे, इसको लेकर भी ये कार्रवाई हुई है. अशोक सिद्धार्थ, जो कभी बसपा सुप्रीमो के भरोसेमंद हुआ करते थे, पहले उनको बाहर किया गया और अब आकाश आनंद को भी हाशिए पर डाल दिया गया. अभी माना जाता है कि आकाश आनंद मायावती के सामने बिल्कुल ‘एस मैन’ वाली भूमिका में फिट नहीं बैठते. वह पार्टी के भीतर एक ऊर्जावान युवा नेता के तौर पर उभर रहे थे.
आकाश पर कार्रवाई महज बहाना, चाहिए हां में हां मिलाने वाला कार्यकर्ता
मायावती को आनंद कुमार और रामजी गौतम जैसे नेता चाहिए जो आंख बंद करके मायावती के फैसले को पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच ले जाएं. मायावती को आकाश आनंद के खिलाफ कार्रवाई का बहाना चाहिए था और डॉक्टर प्रज्ञा के सिर पर ठीकरा फोड़ दिया गया .कुल मिलाकर बसपा सुप्रीमो के इस फैसले को पार्टी और परिवार पर अपना नियंत्रण बनाए रखने के रूप में देखा जा रहा है. पार्टी उत्तर प्रदेश में अपना जनाधार बचाए रखने की बड़ी चुनौती झेल रही है. हर चुनाव में उसके मतों का ग्राफ लगातार नीचे ही जा रहा है. पार्टी की इस दशा का लाभ उठाने के लिए विपक्षी दल भी सक्रिय हो गए हैं. भाजपा से लेकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी तक यूपी में दलित मतों पर अपनी दावेदारी मजबूत करने में जुट गए हैं. अल्पसंख्यकों के बीच भी बसपा संदिग्ध हो चुकी है. चुनाव में अक्सर उसे भाजपा की ‘बी टीम’ के रूप में प्रचारित कर दिया जाता है.
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