Introduction
28 March, 2025
The Hidden Treasure of Indian Sarees: साड़ी का नाम सुनते ही ज़हन में बनारसी की चमक, कांजीवरम की शान या पटोला की बारीकी का ख्याल आता है. ये साड़ियां हिंदुस्तान की शान हैं, जो सदियों से महिलाओं की खूबसूरती में चार चांद लगाती आई हैं. हालांकि, इन मशहूर नामों से परे एक ऐसी दुनिया भी है, जहां कई ऐसी साड़ियों की किस्म हैं जो अपनी खामोश खूबसूरती और कारीगरी से सबका दिल जीतने के लिए तैयार हैं. बोमकाई, चंदेरी, कोटा डोरिया, पोचमपल्ली और संबलपुरी- साड़ियों की वेराइटी के ये वो अनमोल रतन हैं जो बाजार में अक्सर अनदेखी रह जाती हैं. आप इन्हें अपनी अलमारी और दिल में जगह दें, इसलिए आज आपके लिए इनकी कीमत से लेकर साड़ियों के पीछे छिपी कहानियां लेकर आए हैं.
Table of Content
- कोटा डोरिया
- बोमकाई साड़ी
- चंदेरी साड़ी
- पोचमपल्ली साड़ी
- संबलपुरी साड़ी

कोटा डोरिया
कोटा डोरिया साड़ी हल्की होती हैं जिन्हें ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना के गांवों में तैयार किया जाता है. फैक्ट्रियों की मशीनों से नहीं, बल्कि इन साड़ियों को कारीगर बनाते हैं. इनकी कीमतें 800 से शुरू होकर 40 हजार रुपये तक जाती हैं. यानी जितनी आपकी जेब इजाज़त दे उस हिसाब से कोटा डोरिया साड़ी को खरीद सकते हैं. कॉलेज की लड़की हो या स्कूल में पढ़ाने वाली टीचर, हर उम्र की महिलाओं के लिए ये साड़ियां तोहफा हैं. राजस्थान के कोटा से आई ये साड़िया 17वीं सदी में राव किशोर सिंह के दरबार से मशहूर हुईं. उस समय मैसूर के बुनकरों को बुलाकर बनवाई गई ये साड़ियां रेगिस्तान की गर्मी में राहत देती थीं. राजपूत महिलाएं इन्हें खासतौर से त्योहारों पर पहनती थीं. चौखट वाली बुनाई इस साड़ी की पहचान है. सूत और रेशम के धागों को मिलाकर बनी इस साड़ी के किनारों पर ज़री या कढ़ाई से काम किया जाता है. एक साड़ी को बनने में हफ्तों लग जाते हैं. सादी कोटा डोरिया की कीमत 800 – 3 हजार और ज़री वाली की 3,500 -10 हजार रुपये रहती है.

बोमकाई साड़ी
ओडिशा का आदिवासी खजाना कही जाने वाली बोमकाई साड़ी जिसकी जड़ें वहां के जंगलों और गांवों में भोटरा और भूलिया कबीले तक जाती हैं. गंजम ज़िले के बोमकाई गांव से ही साड़ी का नाम बोमकाई पड़ा. कभी ये साड़ियां स्थानीय रानियों के लिए बुनी जाती थीं. मछली, मोर और फूल की नक्काशी वाली ये साड़ियां आज भी पसंद की जाती हैं. आज भी बोमकाई साड़ियां ओडिशा के कोनों में चुपचाप बुनी जा रही हैं. बोमकाई साड़ी बनाने के लिए गांवों के कारीगर पुराने खड्डियों पर सूती या रेशमी के धागों से काम शुरू करते हैं. हल्दी, नील और मेंहदी से रंगे धागे इन साड़ियों को ज़मीन से जोड़े रखते हैं और ज़री की चमक इन्हें रॉयल बनाती है. एक साड़ी को बनाने में कई दिन लग जाते हैं. जहां सूती बोमकाई साड़ी की कीमत 1,500 – 5,000 रुपये तक होती है तो वहीं, रेशमी बोमकाई 8 हजार से शुरू होकर 25 हजार तक मिलती है.

चंदेरी साड़ी
मध्य प्रदेश के चंदेरी कस्बे की ये साड़ियां 13वीं सदी में मुगल बादशाहों के दरबार में जन्मीं. शाही खानदान के लिए बुनी गई ये साड़ियां हल्केपन और चमक के लिए मशहूर हुईं. कभी दरबारों की शान रही ये साड़ियां आज के ज़माने में पीछे छूट गईं. हालांकि, अब इनकी वापसी हो रही है. चंदेरी साड़ी में बारीकी का खेल है. सूत, रेशम या चंदेरी सिल्क को खड्डियों पर बुना जाता है. इसमें इस्तेमाल में लाए गए धागे इतने पतले होते हैं कि हवा में लहराते हैं. किनारों पर ज़री से नक्काशी की जाती है, मगर बीच का हिस्सा सादा छोड़कर इसकी सादगी को बरकरार रखा जाता है. एक साड़ी 10-15 दिन में तैयार होती है. सूती चंदेरी की कीमत 1-4 हजार और रेशमी चंदेरी की कीमत 5- 20 हजार रुपये रहती है.
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पोचमपल्ली साड़ी
तेलंगाना के पोचमपल्ली गांव से निकली ये साड़ियां 19वीं सदी में बननी शुरू हुईं. तब दक्षिण-पूर्व एशिया से आए इकत तरीके को यहां के कारीगरों ने अपनाया. गांव की महिलाओं के लिए बनी ये साड़ियां धीरे-धीरे मशहूर हुईं. इन्हें बनाने के लिए इकत तरीके से धागों को पहले रंगकर बांधा जाता है, फिर खड्डी पर बुना जाता है. फिर हीरे, ज़िगज़ैग और फूल बनाते हैं. सूत और रेशम से बनी पोचमपल्ली साड़ी 20-30 दिन में बनकर तैयार होती है.
सूती पोचमपल्ली की कीमत 2- 6 हजार और रेशमी पोचमपल्ली की 7- 30 हजार रहती है.

संबलपुरी साड़ी
संबलपुर की ये साड़ियां 600 साल पुरानी हैं. भूलिया कबीले ने इन्हें मंदिरों और रस्मों के लिए बनाया था. इकत से बनी ये साड़ियां शंख, चक्र और फूलों वाले डिजाइन से सजी होती हैं. इनके बॉर्डर और पल्लू पर बंधा कला चमकती है. सूती संबलपुरी साड़ी की कीमत 2,500- 7 हजार और रेशमी संबलपुरी की कीमत 10- 40 हजार के बीच में होती है.
Conclusion
ऊपर हमने जितनी भी साड़ियों के बारे में बात की उनमें आपको देश की महक के साथ-साथ शाही टच भी मिलेगा. ये ऑफिस से शादी, त्योहार और किसी भी पार्टी में पहनने के लिए परफेक्ट हैं. इस तरह की साड़ियों को खरीदने पर उन्हें बनाने वाले कारीगरों को भी सहारा मिलता है. हाथ से तैयार की गईं ये साड़ियां बेहद ही खास होती है. मगर नई पीढ़ी का मशीनों पर ज्यादा भरोसा करना और कला से मुंह मोड़ना चिंता की बात है. यही वजह है कि धीरे-धीरे साड़ियों की ये वेराइटी मार्केट से गायब हो रही हैं. हालांकि, अब भी कुछ डिजाइनर ऐसे हैं जो इन धरोहरों को संजों कर रखे हुए है, जो वाकई में तारीफ के काबिल हैं. अगली बार जब आप साड़ी खरीदें तो भारत के इन अनमोल रत्नों को एक मौका जरूर दें. ये सिर्फ कपड़ा नहीं, भारत की धरोहर हैं. ऐसी साड़ियों को पहनकर आप इन्हें बनाने वाले कारीगर और कारीगरी को ज़िंदा रखने में मदद कर सकते हैं.
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