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Indian Foreign Policy In 2025: नए साल में कैसी होगी भारत की ‘पड़ोसी प्रथम नीति’?

by Divyansh Sharma
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Introduction

Indian Foreign Policy In 2025: अब साल 2024 खत्म होने को है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि नए साल यानी 2025 में भारत की पड़ोसी प्रथम नीति किस तरह से प्रभावित होगी. दरअसल, भारत के पड़ोसी देशों में भारी उथल-पुथल देखने को मिल रहा है. संसद के शीतकालीन सत्र 2024 के दौरान कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने केंद्र सरकार से पूछा कि आने वाले समय में पड़ोसी प्रथम नीति में भारत को किस तरह की चुनौती देखने को मिल सकती है. इस पर भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने बड़ा जवाब दिया था. उन्होंने कहा था कि केंद्र की सरकार पड़ोसी देशों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुसार जरूरी विकास सहायता और क्षमताओं के निर्माण की पहल कर रही है. साथ ही इन पहल से पड़ोसी देशों के आर्थिक विकास में योगदान मिल रहा है.

Table OF Content

  • चीन: विश्वास बढ़ाने पर जोर
  • बांग्लादेश: शेख हसीना का निष्कासन और उसके बाद के हालात
  • मालदीव: मोहम्मद मुइजू के तेवर पड़े ढीले
  • नेपाल: चीन का लगातार बढ़ता प्रभाव
  • पाकिस्तान: भारत के साथ तनाव बरकरार
  • भूटान: गहरे संबंध जारी
  • अफगानिस्तान: दिलचस्प घटनाक्रम से गुजरता देश
  • म्यांमार: भारत कर रहा दोनों पक्षों के साथ बातचीत
  • श्रीलंका: पुराने संबंधों को संतुलित रखना

साल 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान , जब प्रचार अपने चरम पर था तब नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि उनकी विदेश नीति का एक सबसे अहम हिस्सा सौहार्दपूर्ण संबंधों के साथ सकारात्मक आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए पड़ोसी पहले होगा. वैसे तो पड़ोसी प्रथम नीति आजादी के बाद यानी साल 1947 से भारतीय विदेश नीति का अभिन्न अंग रही है. इस नीति का उद्देश्य अपने पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंधों को बढ़ावा देते हुए क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाना और साझा चिंताओं को दूर करना है. नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस नीति पर और भी ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा. इस नीति के तहत भारत सरकार बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, म्यांमार, मालदीव, पाकिस्तान और अफगानिस्तान सहित दक्षिण एशिया के देशों के साथ सहयोग को प्राथमिकता देती है.

हालांकि, इस नीति को साल 2024 में कड़ी परीक्षा का सामना करना पड़ा है. इसका कारण है कि भारत के कई पड़ोसी देशों में राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई है. बांग्लादेश और नेपाल में तो मौजूदा हालात और भी खराब है. कई विदेश मामलों के जानकारों का मानना है कि यह दक्षिण एशिया में बढ़ते चीन के प्रभाव के कारण हुआ है. बांग्लादेश में अभी हाल में ही तख्तापलट देखने को मिला. नेपाल में कुछ दिनों में ही प्रधानमंत्री और सरकार बदल जाती है. मालदीव में चीन के कट्टर समर्थक मोहम्मद मुइजू के राष्ट्रपति बनते ही भारी तनाव देखने को मिला था. ऐसे में इस खबर में भारत के पड़ोसी देशों के साथ बदलते रिश्तों और इनके प्रभावों पर चर्चा करेंगे. साथ ही यह जानना भी अहम है कि भारत नए साल में इन चुनौतियों का सामना करने के लिए कितना तैयार है.

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नरेन्द्र मोदी और जिनपिंग

चीन: विश्वास बढ़ाने पर जोर

भारत और चीन के बीच सीमा समझौते के बाद से दोनों देशों के बीच रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलने लगी है. रूस के कजान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिंनपिंग की द्विपक्षीय वार्ता से पहले LAC यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा से दोनों देशों के सैनिक बफर जोन से पीछे हट गए. दोनों देशों के उच्चस्तरीय अधिकारी इस बात पर जोर देते रहे हैं कि विश्वास के बल पर दोनों देशों के बीच संबंध फिर से बहाल हो सकते हैं. साल 2025 में भी अगर दोनों देशों के बीच विश्वास बढ़ता है, तो दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ सकता है.

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कई चीनी मीडिया आउटलेट्स ने भी कहा है कि साल 2025 में भारत और चीन राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ में मनाने जा रहे हैं. ऐसे में देशों के बीच संबंधों में और मधुरता आने की उम्मीद है. हाल में ही विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच भी मुलाकात हुई है. इस बैठक में दोनों नेताओं ने एक दूसरे के सहयोग की बात कही साथ ही है. चीनी मीडिया आउटलेट्स ने इस बात पर जोर दिया है कि चीन के राष्ट्रपति और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुराना कनेक्शन है, क्योंकि दोनों ही देशों के राष्ट्राध्यक्ष अपने देशों की कमान लंबे समय से संभाल रहे हैं.

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नरेन्द्र मोदी और शेख हसीना

बांग्लादेश: शेख हसीना का निष्कासन और उसके बाद के हालात

बांग्लादेश में शेख हसीना के प्रधानमंत्री रहते हुए 15 सालों में भारत ने जो रिश्ते बनाए थे, वह एक झटके में खत्म हो गया है. साल 2024 के जुलाई-अगस्त महीने में शेख हसीना के खिलाफ उठे तूफानों ने उनकी सत्ता को उखाड़ फेंक दिया था. सत्तावाद के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के बीच 5 अगस्त को शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. इसके बाद सेना के हस्तक्षेप से बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार स्थापित की गई. अंतरिम सरकार के सत्ता संभालते ही भारत के साथ 15 साल पुराने संबंध खराब हो गए. शेख हसीना के भारत में शरण लेते ही बांग्लादेश में चरमपंथी तत्वों का उदय भी देखने को मिला. इन चरमपंथी तत्वों की ओर से अल्पसंख्यकों, खास तौर पर हिंदुओं के खिलाफ हिंसा बड़े पैमाने पर हमले किए जाने लगे. इससे भारत की चिंताएं बढ़ गई.

मुहम्मद यूनुस

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बांग्लादेश में जारी तनाव उस समय और बढ़ गया, जब बांग्लादेश में इस्कॉन मंदिर के धर्मगुरु और प्रमुख हिंदू नेता चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी को गिरफ्तार कर लिया गया. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने शेख हसीना के बयानों का इसका कारण बताया. इसका नतीजा यह हुआ कि द्विपक्षीय संबंधों के बिगड़ गए और भारत की ओर से कई परियोजनाएं रुक गई. हालातों को सामान्य करने के लिए विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने इस साल बांग्लादेश का दौरा किया. इससे कुछ हद तक सामान्य स्थिति बहाल करने में मदद मिली. हालांकि, 16 दिसंबर को बांग्लादेश के विजय दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के X पोस्ट को लेकर बांग्लादेश में अंतरिम सरकार में कानूनी सलाहकार आसिफ नजरुल अपने एक फेसबुक पोस्ट पर विरोध जताया. इस बीच बढ़ती तल्खी के बाद भी व्यापार जारी है और हाल में ही भारत ने 27 हजार टन चावल की पहली खेप भेजी है. इससे नए साल में दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य हो की संभावना जताई जा रही है.

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नरेन्द्र मोदी और मोहम्मद मुइज्जू

मालदीव: मोहम्मद मुइजू के तेवर पड़े ढीले

साल 2023 में चीन के कट्टर समर्थक नेता मोहम्मद मुइज्जू के सत्ता संभालने के बाद ही भारत की पड़ोसी पहले नीति को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. मोहम्मद मुइज्जू ने मालदीव की सत्ता ‘इंडिया आउट’ के नारे की वजह से सत्ता में आए थे. गौरतलब है कि मालदीव के पहले के राष्ट्रपति सत्ता संभालने के बाद भारत का दौरा करते थे, लेकिन उन्होंने चीन की यात्रा कर इस परंपरा को तोड़ दिया. उन्होंने सत्ता में आते ही भारत की ओर से दिए गए तीन विमानन प्लेटफॉर्म का संचालन कर रहे लगभग 90 भारतीय सैन्यकर्मियों को वापस बुलाने पर जोर दिया था.

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मोहम्मद मुइज्जू और एस जयशंकर

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भारत ने भी 10 मई तक अपने सभी सैन्यकर्मियों को वापस बुला लिया था. हालांकि, उनकी जगह भारत ने डोर्नियर विमान और दो हेलीकॉप्टर के संचालन के लिए असैन्य कर्मियों को तैनात कर दिया था. इस बीच विवाद तब और ज्यादा बढ़ गया, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 3 जनवरी को लक्षद्वीप का दौरा किया और इसे पर्यटन को बढ़ावा देने वाला बताया था. इस पर मालदीव के कुछ मंत्रियों ने तीखी प्रतिक्रिया दी और भारत की जमकर आलोचना की. बाद में जब मोहम्मद मुइज्जू पर दबाव बढ़ने लगा, तब उन्होंने उन मंत्रियों को निलंबित कर दिया.

इन सब के बीच मार्च से मालदीव के साथ भारत के रिश्ते सामान्य होने लगे. भारत ने भी अपने सलाना बजट में 400 करोड़ रुपये की विकास सहायता जारी रखी. इसके साथ ही दोनों पक्षों की ओर से उच्च स्तरीय यात्राएं भी जारी रही. बता दें कि इसी साल अक्टूबर में विदेश मंत्री एस जयशंकर की यात्रा के दौरान रक्षा और आर्थिक सहयोग के साथ ही बड़े पैमाने पर आर्थिक और समुद्री सुरक्षा पर एक संयुक्त विजन दस्तावेज सहित महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं. ऐसे में नए साल में मालदीव से रिश्ते सामान्य रह सकते हैं.

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शी जिनपिंग और केपी शर्मा ओली

नेपाल: चीन का लगातार बढ़ता प्रभाव

नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता और चीन का बढ़ता प्रभाव भारत की पड़ोसी पहले नीति के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. अस्थिर गठबंधन और भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद बहुदलीय प्रणाली प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल (प्रचंड) को सत्ता से हटा दिया. उनकी जगह नेपाल की CPN-UML यानी कम्युनिस्ट पार्टी-एकीकृत मार्क्सवादी के नेता केपी शर्मा ओली ने नेपाली कांग्रेस के साथ गठबंधन की सरकार बना ली है. अब सत्ता संभालते ही पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए केपी शर्मा ओली भारत की जगह चीन की यात्रा कर सभी को चौंका दिया.

इसके साथ ही चीन के महत्वाकांक्षी BRI यानी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजनाओं को लागू करने के लिए एक रूपरेखा समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसके साथ ही उन्होंने चीन से लोन और BRI परियोजनाओं के लिए अनुदान की मांग की. गौरतलब है कि कई मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन मौजूदा समय में आर्थिक मोर्चे पर मुश्किलों का सामना कर रहा है. फिर भी चीन नेपाल के साथ संबंधों को और गहरा करने पर जोर दे रहा है. विदेशी मामलों के जानकारों का मानना है कि इससे आने वाले समय में भारत को और परेशानी हो सकती है. भारत पहले ही चीन के CPEC यानी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के PoK यानी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से गुजरने और श्रीलंका और पाकिस्तान की ओर से सामना किए जा रहे ऋण बोझ को लेकर चिंताओं के कारण BRI का विरोध करता है.

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शहबाज शरीफ

पाकिस्तान: भारत के साथ तनाव बरकरार

भारत और पाकिस्तान का तनाव जारी है. कश्मीर विवाद, सीमा पार आतंक को बढ़ावा देना और राजनीतिक तनाव जैसे मुद्दों के कारण दोनों देशों के रिश्तों पर बर्फ जमी हुई है. बता दें कि भारत में उरी आतंकी हमले के बाद से पाकिस्तान के साथ रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं. इसके बाद से दोनों देशों के बीच किसी भी तरह ही उच्चस्तरीय वार्ता नहीं हुई है. इस बीच अक्टूबर में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने SCO यानी शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन के लिए पाकिस्तान का दौरा किया था. इस दौरान उन्होंने पाकिस्तान की धरती पर कश्मीर विवाद और सीमा पार से आतंक को बढ़ावा देने के मुद्दे पर जमकर सुनाया था. इस दौरान भी दोनों देशों के बीच किसी तरह की आधिकारिक द्विपक्षीय बातचीत नहीं हुई. हालांकि, इस साल भारत और पाकिस्तान के बीच LoC पर शांति देखने को मिला है. फिर भी नए साल में भी भारत के साथ पाकिस्तान के रिश्तों में गरमाहट की उम्मीद नहीं की जा सकती है.

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नरेन्द्र मोदी और भूटान के राजा

भूटान: गहरे संबंध जारी

भूटान के साथ भारत के संबंध हमेशा की तरह घनिष्ठ और सौहार्दपूर्ण रहे हैं. नए साल में भी भूटान के साथ भारत के संबंध सौहार्दपूर्ण बने रह सकते हैं. चीन के दबाव के बाद भी भूटान हिमालयी क्षेत्र में सबसे बड़ा विकास सहायता साझेदार बना रहा. इसी साल भारत की ओर से वित्तपोषित एक और मेगा बांध के चालू होने के साथ ही द्विपक्षीय संबंधों में और भी मजबूती देखने को मिली है. भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक ने इस साल दो बार भारत का दौरा किया. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन के बाद उन्हें श्रद्धांजलि देने भी पहुंचे थे. गौरतलब है कि भारत ने इस साल शुरू हुई भूटान की 13वीं पंचवर्षीय योजना में भी महत्वपूर्ण वित्तीय योगदान देकर विश्वास जारी रखा है.

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अफगानिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री

अफगानिस्तान: दिलचस्प घटनाक्रम से गुजरता देश

साल 2021 में अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद तालिबान सरकार ने सत्ता संभाली. इसके बाद से भारत ने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है. हालांकि, इस साल कुछ दिलचस्प घटनाक्रम देखने को मिले हैं, जैसे कि विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव जेपी सिंह की ओर से पिछले महीने अफगानिस्तान दौरा किया गया. इस दौरान उन्होंने अफगानिस्तान के कार्यवाहक रक्षा मंत्री मुल्ला मुहम्मद याकूब के साथ-साथ पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और अन्य वरिष्ठ मंत्रियों से मुलाकात भी की.

इस पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बताया कि जेपी सिंह ने अफगानिस्तान में लोगों को भारत की ओर से दी जा रही मानवीय सहायता और अफगानिस्तान में व्यापारिक समुदाय द्वारा अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए ईरान के चाबहार बंदरगाह का उपयोग करने के तरीकों के बारे में चर्चा की गई थी. इसमें भारत ने महत्वपूर्ण निवेश किया है. तालिबान सरकार ने हाल में ही अंतरराष्ट्रीय कानून के पोस्ट-डॉक्टरल छात्र इकरामुद्दीन कामिल को मुंबई में इस्लामिक अमीरात का कार्यवाहक वाणिज्यदूत नियुक्त किया है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा की भारत और अफगानिस्तान के बीच यह संबंध किस तरह आगे बढ़ते हैं.

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नरेन्द्र मोदी और मिन आंग ह्लाइंग

म्यांमार: भारत कर रहा दोनों पक्षों के साथ बातचीत

गृहयुद्ध से त्रस्त म्यांमार की स्थिति भारत के लिए लंबे समय से सर दर्द बनी हुई है. भारत सरकार मणिपुर में जारी हिंसा को शांत करने के लिए और उग्रवाद को नियंत्रित करने के लिए म्यांमार में सैन्य जुंटा के साथ बातचीत कर रही है. इसकी वजह से भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट अधर में अटका हुआ है. यह प्रोजेक्ट पश्चिम बंगाल के हल्दिया बंदरगाह को म्यांमार के सित्तवे बंदरगाह से जोड़ता है. इसमें भारत ने भारी निवेश किया है. सित्तवे बंदरगाह सहित परियोजना के सभी काम पूरे हो चुके हैं, लेकिन निर्माणाधीन जोरिनपुई-पलेतवा सड़क काम पूरा नहीं हो पाया है. यह काम गृहयुद्ध के कारण काम रुका हुआ है. नवंबर में जातीय सशस्त्र संगठनों के प्रतिनिधियों को बातचीत के लिए नई दिल्ली में एक सेमिनार के लिए आमंत्रित किया था.

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नरेन्द्र मोदी और अनुरा कुमारा दिसानायके

श्रीलंका: पुराने संबंधों को संतुलित रखना

श्रीलंका अभी तक भारत का एक ऐसा पड़ोसी देश है, जिसके साथ भारत सत्ता परिवर्तन के बावजूद अपने संबंधों को संतुलित रखने में कामयाब रहा है. इसी साल हुए चुनाव में अनुरा कुमारा दिसानायके श्रीलंका के नए राष्ट्रपति बने हैं. मार्क्सवादी-लेनिनवादी पार्टी के नेता होते हुए भी उन्होंने भारत के साथ के संबंधों को सामान्य रखा. हालांकि, भारत ने इस साल की शुरुआत में ही श्रीलंका के बदलते राजनीतिक परिदृश्य में अनुरा कुमारा दिसानायके के उदय को भांप लिया था और उन्हें राष्ट्रपति चुनाव से बहुत पहले उन्हें दिल्ली बुला लिया था. अनौपचारिक बातचीत में कई मुद्दों पर चर्चा हुई थी. सत्ता संभालने के बाद अनुरा कुमारा दिसानायके ने दिसबंर महीने में भारत की पहली राजकीय यात्रा की. इस दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अनुरा कुमारा दिसानायके ने साझा भविष्य के लिए साझेदारी को बढ़ावा देने पर एक संयुक्त भाषण भी दिया.

Conclusion

पड़ोसी प्रथम नीति के मद्देनजर कुल मिलाकर साल 2024 भारत के लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा. पड़ोसी देशों की राजनीतिक अस्थिरता, क्षेत्रीय विवाद के साथ ही चीन के बढ़ते प्रभाव ने भारत के लिए नए समीकरण तैयार किए हैं. चीन के साथ सीमा विवाद और विश्वास बहाली, बांग्लादेश में शेख हसीना का निष्कासन, मालदीव में मोहम्मद मुइजू के तेवर और नेपाल में चीन के बढ़ते प्रभाव जैसी घटनाओं ने भारत को सचेत रहने के संकेत दिए हैं. नए साल में भी यह भारत के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं. हालांकि, भारत ने अपनी विदेश नीति को बनाए रखा.

साथ ही परिपक्वता और दूरदर्शिता दिखाते हुए कई मामलों में सौहार्दपूर्ण रिश्तों को बनाए रखने का सफल रहा. पाकिस्तान के साथ लगातार सीमा पर तनाव और आंतक, म्यांमार में गृहयुद्ध की स्थिति, और अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के साथ सीमित संपर्क भारत की पड़ोसी प्रथम नीति के लिए प्रमुख मुद्दे साबित होंगे. वहीं, भूटान और श्रीलंका के साथ मजबूत संबंध भारत के लिए सकारात्मक साबित हो सकते हैं. नए साल में भारत को अपनी पड़ोसी प्रथम नीति को पूरी तरह से सफल बनाने के लिए नया रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाना पड़ेगा. अगर भारत अपनी पड़ोसी प्रथम नीति के तहत इन चुनौतियों का सामना कर लेता है, तो यह न केवल दक्षिण एशिया में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकता है.

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