Introduction Of Betrayal of America
Betrayal of America: अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने एक बार कहा था कि अमेरिका का दुश्मन होना खतरनाक है, लेकिन दोस्त होना घातक है. अब बड़ा सवाल यह है कि क्या अमेरिका ने यूक्रेन समेत यूरोपीय देशों को बीच मझधार में ला खड़ा कर दिया. क्या अमेरिका ने यूक्रेन को धोखा दिया है.
दरअसल, साल 2022 में जब रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की शुरुआत हुई, तब अमेरिका ने जमकर सहायता दी. युद्ध में अब यूक्रेन पूरी तरह से अमेरिकी सैन्य, फंड और खुफिया सहायता पर निर्भर हो चुका है. अब हालात तेजी से बदलते जा रहे हैं. जो बाइडेन की सत्ता खत्म होते ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पूरी तरह से खेल बदल दिया है. माना जा रहा है कि जल्द ही अमेरिका यूक्रेन को दी जाने वाली सभी तरह की सहायता रोक सकता है.
अब यूक्रेन वर्तमान में उस स्थिति से जूझ रहा है जिसे अमेरिकी वापसी सिंड्रोम कहा जाता है. डोनाल्ड ट्रंप के नए प्रशासन में यूक्रेन समेत यूरोपीय देशों को यह साफ कर दिया है कि यूक्रेन की सुरक्षा के लिए अमेरिका की जगह यूरोपीय साझेदारों को बोझ का बड़ा हिस्सा उठाना चाहिए. वहीं, व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की के साथ हुई तीखी नोकझोंक ने भी मामले को बिगाड़ दिया है.
इसके साथ ही यूक्रेन समेत यूरोपीय देश खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. ऐसे में बता दें कि अमेरिका की ओर से अपने सहयोगियों को छोड़ने या विश्वासघात करने की यह घटना पहली नहीं है. इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जब अमेरिका ने अपने सहयोगियों को मदद की आस दी फिर उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया. इसमें वियतनाम, इराक और अफगानिस्तान जैसे देश शामिल हैं.
Table Of Content
- सबसे पहले ही दोस्त फ्रांस को दिया धोखा
- स्पेन-अमेरिका में भी मारे गए लाखों लोग
- स्वेज संकट में दिखा असली रूप
- वियतनाम में दिया सबसे बड़ा धोखा
- अमेरिकी मंदी में जापान को लगी चपत
- इराक-सद्दाम हुसैन को कैसे मिला धोखा
- दोस्त से दुश्मन बना गद्दाफी
- सीरिया में कुर्द बलों को धोखा
- अफगानिस्तान भी है उदाहरण
Betrayal of America: सबसे पहले ही दोस्त फ्रांस को दिया धोखा
अमेरिका ओर से धोखा देने का पहला मामला साल 1776 में देखने को मिला था. 1776 में ग्रेट ब्रिटेन ने अमेरिका में स्वतंत्रता की घोषणा की. इसके बाद फ्रांस अमेरिका का पहला सहयोगी बन गया था. साल 1778 में दोनों पक्षों की ओर से मित्रता और व्यापार के लिए संधि की गई. फ्रांस ने अमेरिकी क्रांति के दौरान युद्ध का समर्थन किया.

साथ ही अमेरिका को बड़े पैमाने पर सैन्य और आर्थिक सहायता भी दी. कई इतिहासकारों का मानना है कि ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ फ्रांस की सहायता ने सैन्य शक्ति को अमेरिका के पक्ष में झुका दिया था. ऐसे में जॉर्ज वाशिंगटन के नेतृत्व में महाद्वीपीय सेना की जीत का मार्ग प्रशस्त हुआ. लुई सोलहवें ने दिल खोलकर अमेरिका की मदद की. लुई 16वें ने अमेरिकी क्रांति का समर्थन करने के लिए बड़े पैमाने पर जहाज और सेना भी भेजी.
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हालांकि, इससे फ्रांस में लोन बढ़ गया और हालात बद से बदतर हो गए. इससे फ्रांस में राजशाही शासन के खिलाफ लोगों का आक्रोश और ज्यादा भड़क गया. इसी के साथ साल 1789 में फ्रांसीसी क्रांति भड़क उठी. फ्रांसीसी क्रांति के कारण उत्पन्न यूरोपीय देशों में भी तनाव बढ़ने लगा. इससे बचने के लिए अमेरिका ने तटस्थ होने की की स्पष्ट नीति अपनाई. फिर भी साल 1793 में फ्रांसीसी राजा लुई सोलहवें पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें फांसी दे दी गई.
Betrayal of America: स्पेन-अमेरिका में भी मारे गए लाखों लोग
साल 1898 में स्पेन-अमेरिका युद्ध छिड़ गया. क्यूबा के हवाना हार्बर में अमेरिका नौसेना के जहाज USS मेन के डूबने से शुरू हुआ था. इस युद्ध में स्पेनिश उपनिवेश, कैरिबियन द्वीप क्यूबा, प्यूर्टो रिको और फिलीपींस शामिल थे. स्पेन और अमेरिका के बीच पेरिस की संधि पर हस्ताक्षर के साथ युद्ध खत्म हो गया.

अमेरिका के अनुकूल शर्तों वाली संधि में स्पेन ने क्यूबा पर अपना सारा दावा त्याग दिया. इसके साथ ही गुआम और प्यूर्टो रिको पर अमेरिका का कब्जा हो गया. वहीं, स्पेन ने फिलीपींस की संप्रभुता को 20 मिलियन अमेरिकी डॉलर में अमेरिका के हवाले कर दिया. स्पेन के औपनिवेशिक शासन से आजादी की चाहत रखने वाले कई फिलिपींस के नागरिकों ने स्पेनिश सेना को हराने में अमेरिकी सैनिकों की मदद की थी. इसके बदले में स्पेन की तरह ही अमेरिका ने भी द्वीपों पर उपनिवेश बनाना जारी रखने का इरादा किया.
इससे फिलिपींस में आक्रोश पैदा हो गया. आक्रोश ने साल 1899 में युद्ध का रूप ले लिया. यह संघर्ष करीब तीन साल तक चला. बाद में अमेरिका ने फिलीपींस पर औपनिवेशिक शासन शुरू कर दिया. ऐतिहासिक अभिलेखों के मुताबिक अमेरिकी सेना ने कई बार फिलीपींस के गांवों को जला दिया. नागरिकों के लिए डिटेंशन सेंटर बनाए. इस बीच फिलीपींस में हिंसा, अकाल और बीमारी से 2 लाख से ज्यादा फिलिपिनो नागरिक मारे गए.
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Betrayal of America: स्वेज संकट में दिखा असली रूप
स्वेज संकट में भी अमेरिका ने अपना असली रूप दिखाया. साल 1956 में ब्रिटेन ने फ्रांस और इजराइल के साथ मिलकर स्वेज नहर फिर से नियंत्रण पाने के लिए मिस्र पर आक्रमण कर दिया. ब्रिटेन की ओर से अपने इरादों के बारे में न बताने की वजह से अमेरिका नाराज हो गया. अमेरिका का मानना था कि इस हमले से मिडिल-ईस्ट और अफ्रीका का बड़ा हिस्सा सोवियत संघ के कब्जे में जा सकता है.

ऐसे में अमेरिका ने इस युद्ध में शामिल होने से मना कर दिया. फिर अमेरिका ने मित्र राष्ट्रों का अपमान करते हुए सार्वजनिक रूप से निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के लिए मतदान भी किया. साथ ही अमेरिका ने तीनों देशों को धमकी जारी करते हुए कहा कि अगर अभियान जारी रहा, तो वह कड़े आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करेंगे. बता दें कि उस समय ही अमेरिका ने ब्रिटिश पाउंड की भारी बिक्री शुरू की थी. इससे ब्रिटिश पाउंड डॉलर के मुकाबले काफी कमजोर हो गया था.
इसी बीच अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष पर भी दबाव डाला कि वह ब्रिटेन की वित्तीय मदद न करे. अमेरिका के इन कदमों से ब्रिटेन और फ्रांस की सेनाएं पीछे हट गई. फिर इजराइल ने भी अमेरिकी दबाव के आगे झुकते हुए नहर का पूरा नियंत्रण मिस्र को सौंप दिया. स्वेज संकट से ब्रिटेन की गिरती हुई स्थिति दुनिया का सामने आ गई और इसका फायदा उठाते हुए अमेरिका ने विश्व मामलों में अधिक शक्तिशाली भूमिका निभाई.
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Betrayal of America: वियतनाम में दिया सबसे बड़ा धोखा
साल 1955 से 1975 वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिका ने अपनी दोहरी नीति को दिखाया. इस दौरान दक्षिण वियतनाम का समर्थन करते हुए अमेरिका ने भारी मात्रा में धन, आपूर्ति और सैन्य सलाहकार भेजे. ऐसे में अमेरिका पर भी युद्ध का असर दिखने लगा. दबाव के आगे अमेरिका ने पेरिस में उत्तरी वियतनामी प्रतिनिधियों के साथ गुप्त मुलाकात की.

अमेरिका और उत्तरी वियतनाम के बीच गुप्त रूप से हुए समझौते को दक्षिण वियतनाम की ओर से स्वीकार कराने के लिए अमेरिका ने दक्षिण वियतनामी पक्ष को भारी मात्रा में सैन्य सहायता देने का वादा किया, लेकिन यह वादे कभी पूरे ही नहीं हुए. दक्षिण वियतनाम के अमेरिकी समर्थित राष्ट्रपति न्गो दीन्ह दीम की अपनी सेना ने ही उनकी हत्या कर दी थी. इस मामले में दक्षिण वियतनामी पक्ष के पूर्व नेता गुयेन वान थीयू ने बहुत बड़ी बात कही थी. उन्होंने कहा था कि अमेरिका का दुश्मन बनना बहुत आसान है, लेकिन मित्र बनना बहुत कठिन है.
Betrayal of America: अमेरिकी मंदी में जापान को लगी चपत
1980 के दशक की शुरुआत में अमेरिका में मंदी की शुरुआत होने लगी. अपनी समस्याओं को हल करने के लिए अमेरिका ने अन्य देशों पर दबाव डालना शुरू कर दिया. इसमें अमेरिका, जापान, फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन के राष्ट्राध्यक्षों ने न्यूयॉर्क शहर के एक होटल में प्लाजा समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस बैठक में अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करने के लिए जापानी येन और अन्य मुद्राओं के सामने अमेरिकी डॉलर के मूल्य में कमी कर हेरफेर करने के प्रस्ताव पर सहमति बनी.

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सीधे तौर पर अमेरिकी डॉलर को बढ़ावा, अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करना और वैश्विक असंतुलन को ठीक करना समझौते के मुख्य उद्देश्य थे. समझौते के बाद जापानी मुद्रा येन की कीमत में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई, जिससे जापान के मजबूत निर्यात बड़ा नुकसान हुआ. जापान उस समय दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था मानी जाती थी. इससे पूरे पूर्वी एशियाई देश में जापान के अर्थव्यवस्था का पतन हो गया और अमेरिका का प्रभाव फिर से बढ़ गया.
Betrayal of America: इराक-सद्दाम हुसैन को कैसे मिला धोखा
साल 2003 में अमेरिका ने इराक को धोका दे चुका है. अमेरिका के समर्थन के साथ ही सद्दाम हुसैन को इराक का राष्ट्राध्यक्ष बनाया गया था. इराक में यह बात अक्सर दोहराई जाती रही है कि इराकियों की ओर से अमेरिकी सेना का फूलों और मुस्कुराहटों के साथ स्वागत नहीं किया जाता है. क्योंकि अमेरिका ने कभी इराक के लोगों की मदद नहीं की. इराकियों ने साल 1991 में डेजर्ट स्टॉर्म के बाद विद्रोह कर दिया था.

जब सद्दाम हुसैन ने विद्रोह को कुचला तो अमेरिका चुपचाप खड़ा देखता रहा. अमेरिका की ओर से कुवैत से इराकी सेना को बाहर निकालने के बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज हर्बर्ट वॉकर बुश का सद्दाम हुसैन को उखाड़ फेंकने के लिए बगदाद में अमेरिकी सेना को भेजने का कोई इरादा नहीं था. उन्होंने युद्ध गठबंधन में अरबों से वादा किया था कि वह सद्दाम हुसैन की सेना को बस इराक में वापस धकेल देंगे. लाखों लोगों की मौत के बाद बाद में अमेरिका ने ही सद्दाम हुसैन को फांसी के फंदे पर लटका दिया था.
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Betrayal of America: गद्दाफी दोस्त से बना दुश्मन
साल 2010 में जब ट्यूनीशिया से अरब विद्रोह की हवा चलनी शुरू हुई, तो लीबिया में तानाशाह मुअम्मर अल-गद्दाफी भी जनता के निशाने पर आ गया. सद्दाम हुसैन के हालात से सिख ले चुके मुअम्मर अल-गद्दाफी ने अमेरिका साथ पहले से ही संबंध अच्छे कर लिए थे. सैन्य तख्तापलट के जरिए सत्ता हथियाने वाले मुअम्मर गद्दाफी ने अमेरिका और यूरोपीय शक्तियों के साथ रणनीतिक साझेदारी बनने के लिए पूरी कोशिश की.

तेल के भंडार के कारण लीबिया अमेरिका खास बना हुआ था. जैसे-जैसे विद्रोह फैलता गया और उसके शासन के लिए खतरे की गंभीरता स्पष्ट होती गई. विद्रोहियों के पक्ष में NATO के हस्तक्षेप से मामला उल्टा पड़ गया और मुअम्मर गद्दाफी का पतन हो गया. वह NATO हवाई हमले से बचने के लिए एक सुरंग में छिप गया. बाद में लीबिया के लोगों ने उसे पीट-पीटकर मार डाला और सड़कों पर उसकी लाश को घसीटा भी.
Betrayal of America: सीरिया में कुर्द बलों को धोखा
सीरिया में गृह युद्ध के दौरान कुर्द बलों ने ISIS यानि इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक के खिलाफ लड़ने में अमेरिकी सैनिकों की मदद की थी. उन्हें अमेरिका की ओर से एक प्रमुख सहयोगी माना जाता था. दूसरी ओर तुर्की लंबे समय से सीरियाई कुर्द बलों को आतंकी मानता है. तुर्की उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकने का प्रयास करता रहा है.

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साल 2019 में अमेरिका ने कहा कि तुर्की जल्द ही उत्तरी सीरिया में अपने ऑपरेशन के साथ आगे बढ़ेगा. अमेरिकी सेना ऑपरेशन का समर्थन या इसमें शामिल नहीं होगी. साथ ही उन्होंने उस क्षेत्र से सेना को निकाल लिया. उत्तरी सीरिया से अपने सैनिकों को वापस बुलाने के अमेरिकी फैसले के बाद तुर्की ने बड़ा हमला किया. हमले में बड़ी संख्या में कुर्द सैनिक मारे गए. कुर्दों के कई बड़े लीडर ने कहा कि अमेरिका ने उनके साथ विश्वासघात किया है.
Betrayal of America: अफगानिस्तान भी है उदाहरण
साल 2021 में अमेरिका ने युद्धग्रस्त अफगानिस्तान से अपने सैनिकों रातों-रात निकलने का आदेश दे दिया. करीब 20 साल बाद सेना के हटते ही तालिबान ने देश पर फिर से नियंत्रण कर लिया. इसके साथ ही अफगानिस्तान में शरणार्थी संकट पैदा हो गया. कई विदेशी मामलों के जानकारों का मानना था कि इससे आतंकी फिर से अफगानिस्तान को एक सुरक्षित पनाहगाह के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. ऐसा पहले भी अल-कायदा नेता अयमान अल-जवाहिरी के मामले हो चुका था. जिसे देश की राजधानी काबुल में खोजा गया था और अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया था.

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तत्कालीन जो बाइडेन प्रशासन ने डोनाल्ड ट्रंप के पिछले प्रशासन पर आरोप लगाया कि वह अफगान सरकार पर दोष मढ़ने की कोशिश करते हुए अव्यवस्था को पीछे छोड़ गया. अमेरिका के व्हाइट हाउस में तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गनी से मुलाकात के दौरान जो बाइडेन ने पुराना दोस्त बताया था. साथ ही उनकी सरकार को कूटनीतिक और राजनीतिक सहायता देने का वादा किया था, लेकिन अमेरिका सेना के भागने के बाद मोहम्मद अशरफ गनी तक को भी देश छोड़कर भागना पड़ा.
Conclusion Of Betrayal of America:
इस साल की शुरुआत में सत्ता संभालने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने NATO यानि उत्तरी अटलांटिक संधि सैन्य गठबंधन से भी धीरे-धीरे बाहर आने की बात कही है. उन्होंने बार-बार NATO सहयोगियों पर सैन्य खर्च बढ़ाने के लिए दबाव डाला है. इसके अलावा अमेरिका की सत्ता संभालते हुए अपने यूरोपीय देशों, कनाडा और मैक्सिको को धोखा देते हुए टैरिफ वॉर भी छेड़ दिया है.
डोनाल्ड ट्रंप ने यूरोपीय संघ को अपना दुश्मन बताया है. अमेरिका और ब्रिटेन ने साल 2022-23 में त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी के तहत परमाणु ऊर्जा चालित पनडुब्बियां हासिल करने में ऑस्ट्रेलिया का समर्थन करने का फैसला किया था. इससे फ्रांस को बड़ा झटका लगा था. फ्रांस ने इस सौदे को पीठ में छुरा घोंपना बताते हुए अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया दोनों में अपने राजदूतों को वापस बुला लिया था.
कनाडा के साथ कीस्टोन पाइपलाइन प्रोजेक्ट में भी अमेरिका ने कई बार धोखा दिया. साल 2015 में TPP यानि ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप के तहत मुक्त व्यापार समझौते में भी 12 देश शामिल थे. डोनाल्ड ट्रंप ने साल 2017 में सत्ता संभालते ही TPP से वापस हटने का फैसला कर लिया. अमेरिका भारत की पीठ में भी छुरा घोंप चुका है. साल 1999 में अमेरिका ने GPS यानि ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम को ब्लॉक कर खुफिया जानकारी भारत को देने से इन्कार कर दिया था. अब यूक्रेन का भी यही हाल देखने को मिल सकता है, क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमीर जेलेंस्की से पद छोड़ने तक की बात कह चुके हैं.
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