07 January, 2025
Introduction
Irrfan Khan: दिवंगत इरफान खान हिंदी सिनेमा के सबसे बेहतरीन एक्टर्स में से एक थे. 7 जनवरी, 1967 को राजस्थान के टोंक में पैदा हुए इरफान बचपन में एक क्रिकेटर बनने का सपना देखते थे. हालांकि, धीरे-धीरे उनकी दिलचस्पी एक्टिंग की तरफ बढ़ती रही. उनके पिता का नाम यासीन अली खान था जो टायर का बिजनेस करते थे. इरफान खान ने जयपुर से स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई की. फिर साल 1984 में दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन लिया और एक्टिंग सीखी.
- Table of Content
- मिथुन की वजह से एक्टिंग की लत
- टीवी से हुई शानदार शुरुआत
- नेगेटिव रोल में हिट
- अनुराग बासु की फिल्म ने बदली किस्मत
- हॉलीवुड में बनाई पहचान
- और भी मिले अवॉर्ड
- पर्सनल लाइफ
- जब छोड़ना चाहते थे एक्टिंग
- पिता को कभी नहीं बता पाए ये बात
- मां ने भी देखा था सपना
- नवाबों के खानदान से हैं इरफान
मिथुन की वजह से एक्टिंग की लत
अपने एक पुराने इंटरव्यू में इरफान खान ने बताया था कि जब मिथुन चक्रवर्ती की पहली फिल्म ‘मृग्या’ आई तब किसी ने उनसे कहा कि तुम्हारा फेस मिथुन से मिलता है. ये सुनकर इरफान खान को भी लगा कि वो भी हीरो बन सकते हैं. कई दिनों तक तो इरफान मिथुन दा का हेयरस्टाइल कॉपी करके घूमे थे. उस वक्त इरफान ने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन वो खुद ट्रेंड सेटर बन जाएंगे.
टीवी से हुई शानदार शुरुआत
दिल्ली के बाद इरफान खान ने मुंबई का रुख किया. उन्होंने ‘चाणक्य’, ‘चंद्रकांता’, ‘बनेगी अपनी बात’, ‘सारा जहां हमारा’ और ‘भारत एक खोज’ जैसे कई टेलिविजन शोज में काम किया और लोगों के दिलों में जगह बनाई. लोगों ने उन्हें ‘चंद्रकांता’ में ‘बद्रीनाथ’ के किरदार में नोटिस किया. उसी दौरान फिल्म मेकर मीरा नायर ने उन्हें अपनी फिल्म ‘सलाम बॉम्बे’ में एक छोटा सा रोल ऑफर किया. हालांकि, जब ये फिल्म रिलीज हुई तब उसमें से इरफान के ज्यादातर सीन काट दिए गए थे. लेकिन कुछ सेंकेड के सीन में इरफान ने सड़क किनारे बैठे एक लड़के का रोल किया जो लोगों की चिट्ठियां लिखता है. उस सीन में इरफ़ान ने एक लाइन बोली- ‘बस-बस 10 लाइन पूरी. आगे लिखने का 50 पैसा लगेगा. मां का नाम-पता बोल’. ये वो सीन था जब लोगों ने इरफान खान को पहली बार सिल्वर स्क्रीन पर देखा था. हालांकि, इससे उनके करियर को खास फायदा नहीं मिला. फिर साल 1991 में फिल्म ‘एक डॉक्टर की मौत’ में शबाना आजमी और पंकज कपूर के साथ उन्हें एक छोटा सा रोल करने का मौका मिला. इस फिल्म में इरफान ने एक न्यूज रिपोर्टर बनकर फैन्स का दिल जीत लिया.
नेगेटिव रोल में हिट
पहली फिल्म के लिए वाहवाही लूटने के बाद भी इरफान खान को मनचाहा काम नहीं मिला. इसके बाद उन्होंने ‘वादे इरादे’, ‘बड़ा दिन’, ‘घात’, ‘प्राइवेट डिटेक्टिव’ और ‘प्रथा’ जैसी कई आर्ट फिल्मों में काम किया. कई फ्लॉप देने के बाद इरफान ने नेगेटिव रोल करने शुरू कर दिए. फिर साल 2004 में रिलीज हुई फिल्म ‘हासिल’ में अपने नेगेटिव किरदार के लिए उन्हें फिल्मफेयर का बेस्ट विलेन अवॉर्ड दिया गया. इस फिल्म में जिमी शेरगिल, आशुतोष राणा, मुराद अली और ऋषिता भट्ट जैसे कलाकार लीड रोल में थे. फिर उसी साल इरफान खान की मकबूल और चरस जैसी फिल्में रिलीज हुई जिनकी वजह से उन्होंने लोगों के दिलों के साथ-साथ फिल्म मेकर्स के बीच भी अपनी पहचान बनाई.
अनुराग बासु की फिल्म ने बदली किस्मत
साल 2007 में रिलीज हुई फिल्म ‘लाइफ इन मेट्रो’ के बाद इरफान खान की वाकई में लाइफ बदल गई. अनुराग बासु के डायरेक्शन में बनी इस फिल्म में शिल्पा शेट्टी, केके मेनन, कंगना रनौत, कोंकणा सेन शर्मा, इरफान खान, नफीसा अली, धर्मेंद्र, शाइनी आहूजा और शरमन जोशी जैसे कलाकार अहम भूमिका में थे. इस मल्टी स्टारर फिल्म में इरफान ने ‘मोंटी’ का किरदार निभाकर फैन्स को खूब एंटरटेन किया. इसके बाद इरफान ने ‘पान सिंह तोमर’, ‘हिंदी मीडियम’, ‘द लंच बॉक्स’, ‘सात खून माफ’, ‘करीब करीब सिंगल’, ‘पीकू’, ‘थैंक यू’, ‘न्यूयॉर्क’ और ‘अंग्रेजी मीडियम’ जैसी कई बेहतरीन फिल्मों में काम किया.
हॉलीवुड में बनाई पहचान
बॉलीवुड के साथ-साथ इरफान खान ने हॉलीवुड में भी अपनी पहचान बनाई. उन्होंने ‘द नेमसेक’, ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’, ‘इन्फर्नो’ और ‘द अमेजिंग स्पाइडर मैन’ जैसी हॉलीवुड फिल्मों में काम कर चुके हैं. साल 2011 में इरफान खान को भारत सरकार की तरफ से पद्मश्री अवॉर्ड दिया गया. अपनी फिल्म ‘हिंदी मीडियम’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर का बेस्ट एक्टर का पुरस्कार मिला. साल 2020 में रिलीज हुई ‘अंग्रेजी मीडियम’ इरफान खान की आखिरी फिल्म थी. 29 अप्रैल, 2020 को 53 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था. दिवंगत एक्टर इरफान खान ने कम उम्र में ही दुनिया को अलविदा कह दिया. वो ऐसे कलाकार थे जो अपनी फिल्मों के जरिए दशकों तक लोगों को एंटरटेन करते रहेंगे.
और भी मिले अवॉर्ड
इरफ़ान खान को अपनी दमदार एक्टिंग के लिए कई अवॉर्ड मिले. साल 2012 में रिलीज हुई उनकी फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ के लिए इरफान खान को खूब तारीफ मिली. साथ ही उन्हें बेस्ट एक्टर का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इसके अलावा ‘हैदर’ और ‘पीकू’ जैसी फिल्मों के लिए उन्हें बेस्ट स्पोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया.
पर्सनल लाइफ
इरफान खान की पर्सनल लाइफ भी काफी दिलचस्प है. उन्होंने सुतापा सिकदर से शादी की. सुतापा और इरफान के दो बेटे हैं बाबिल और अयान खान. इरफान और सुतापा की शादी साल 1995 में हुई थी. दोनों की लव स्टोरी भी काफी फिल्मी है जिसकी शुरुआत दिल्ली के मंडी हाउस में हुई. दरअसल, दोनों दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एक्टिंग करते-करते एक दूसरे को दिल दे बैठे. जब इरफान खान जयपुर से दिल्ली आए तो उन्होंने देखा कि यहां लड़कियां भी दोस्त हो सकती हैं. ऐसी दोस्त जिनसे दिल खोलकर बातें कर सकते हैं. तब इरफान की दोस्ती सुतापा से हुई. उस वक्त दोनों खूब बातें किया करते थे. धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती गहरी होती गई जो जल्द ही प्यार में बदल गई. इसके बाद इरफान और सुतापा लिव-इन में रहने लगे. उस वक्त दोनों अपने करियर पर फोकस कर रहे थे लेकिन तभी सुतापा प्रेग्नेंट हो गईं. तब इरफान और सुतापा एक कमरे के घर में रहते थे. इरफान को लगा कि अब परिवार बढ़ रहा है तो दो कमरों का घर लेना चाहिए. घर ढूंढ़ने में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा क्योंकि वो जहां भी जाते लोग पूछते कि आप शादीशुदा हो? बस इन सवालों से परेशान होकर इरफान खान और सुतापा ने 23 फरवरी, 1995 को शादी कर ली. एक इंटरव्यू में इरफान खान ने ये भी बताया था कि उस वक्त वो सुतापा सिकदर से शादी करने के लिए अपना धर्म तक बदलने के लिए तैयार थे, लेकिन उन्हें ऐसा करने की जरूरत नहीं पड़ी.
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जब छोड़ना चाहते थे एक्टिंग
कम ही लोग जानते हैं कि इरफान खान 90 के दशक में एक्टिंग छोड़ने की सोच चुके थे. इरफान ने एक इंटरव्यू में कहा- ‘हां मैं एक्टिंग छोड़ने के बारे में सोच रहा था. मैं टीवी पर जिस तरह की एक्टिंग करता था, उससे ऊब गया था. इसलिए मैंने सोचा कि मैं डायरेक्शन करूंगा क्योंकि इसमें एक्टिंग से कहीं ज्यादा करने के लिए होता है. मगर फिर कुछ ऐसा हुआ कि मैंने एक्टिंग पर ही फोसक किया’.
पिता को कभी नहीं बता पाए ये बात
इरफान खान के पिता हमेशा से चाहते थे कि बेटा उनका टायर का बिजनेस संभाले. मगर इरफान का मन एक्टिंग में रम चुका था. एक इंटरव्यू में इरफान खान ने अपने पिता को याद करते हुए कहा था- ‘वो मेरे लिए मुश्किल समय था. मैं जयपुर में नाटक कर रहा था. उस वक्त मैंने एक्टिंग सीखने के लिए दिल्ली जाने का मन बना लिया था. इससे पहले कि मैं अपने पिता को बता पाता उनकी मृत्यु हो गई. मैंने कभी इस तरह का दुख नहीं झेला. उस वक्त मेरा दूसरा दुख ये था कि अब मेरी प्लानिंग का क्या होगा.’ इरफान ने कहा – ‘मुझे लगा कि अब मैं दिल्ली नहीं जा पाऊंगा क्योंकि मैं बड़ा बेटा था तो मुझे परिवार की देखभाल करनी थी. तब मेरे लिए जीने मरने वाली सिचुएशन थी. तब मैं एक दिन भी जयपुर में नहीं रहना चाहता था. मैं सोचता था, अगर मुझे इस साल NSD (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) में एंट्री नहीं मिली, तो मैं पागल हो जाऊंगा’. हालांकि, धीरे-धीरे चीजें ठीक हुईं और इरफान खान अपना सपना पूरा करने के लिए दिल्ली आ गए. इसके बाद इरफान के छोटे भाई ने पिता के टायर बिजनेस को संभाल लिया.
मां ने भी देखा था सपना
जिस तरह से इरफान खान के पिता उन्हें फैमिली बिजनेस चलाते हुए देखना चाहते थे, वैसे ही उनकी मां ने भी बेटे के लिए कुछ सपने देखे थे. इरफान ने बताया था कि उनकी मां चाहती थीं कि वो एक लेक्चरर बनें. दिल्ली जाने के लिए भी इरफान ने मां को बेवकूफ बनाया. एक्टर ने बताया कि जब वो NSD जा रहे थे तो उन्होंने मां से कहा- ‘एक बार यहां से कोर्स करने के बाद इसे मास्टर डिग्री माना जाएगा. हालांकि, ये सच था. उन्होंने मां से कहा कि जयपुर वापस आकर वो ड्रामा टीचर बन सकते हैं.’
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नवाबों के खानदान से हैं इरफान
भले ही इरफान खान का शाही परिवार से ताल्लुक है लेकिन उनके परिवार ने हमेशा ही एक मिडिल क्लास जिंदगी जी. दरअसल, इरफान अली खान का जन्म टोंक के साहबजादे के रूप में हुआ. उनकी मां सईदा बेगम खान शाही टोंक हकीम फैमिली से थीं. हालांकि, इरफान के पिता यासीन अली खान ने रॉयल फैमिली से कुछ भी नहीं लिया. यासीन ने सब कुछ अपनी मेहनत से बनाया और कमाया. इरफान ने इस बारे में बात करते हुए एक इंटरव्यू में कहा कि हम अमीर नहीं थे, हम मध्यम वर्ग के लोग थे. मेरे पिता एक बिजनेसमैन थे, लेकिन उन्होंने कभी भी बिजनेस को वैसे नहीं संभाला जैसे बाकी करते हैं. मेरे पिता एक इमोशनल इंसान थे. उन्हें शिकार करना पसंद था, इसलिए वो अक्सर करते थे. इरफान ने बताया था कि एक दिन सुबह मैंने देखा कि बिल्ली डरी हुई थी. मुझे अंदाजा हो गया कि मतलब पिताजी एक तेंदुआ घर लाए हैं. मरे हुए तेंदुए की गंध से भी बिल्ली डर जाती थी.
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