12 January, 2025
Introduction
Amrish Puri: ‘मोगेंबो खुश हुआ’, ‘जा सिमरन जा जी ले अपनी जिंदगी’ और ‘डॉन्ग कभी रॉन्ग नहीं होता’ जैसे शानदार डायलॉग आज भी लोगों की जुबां पर रहते हैं. जब भी हम ये डायलॉग सुनते हैं तो जहन में सिर्फ अमरीश पुरी की ही तस्वीर आती है. आए भी क्यों ना, उन्होंने अपनी दमदार आवाज में जिस तरह से इन डायलॉग्स को बोला है, शायद ही कोई दूसरा उस तरह का करिश्मा क्रिएट कर पाता. 22 जून, 1932 में लाहौर (अब पाकिस्तान में) में पैदा हुए अमरीश पुरी बॉलीवुड में एक हीरो बनने का सपना लेकर आए थे. हालांकि, उनका ये सपना चकना चूर हो गया. लेकिन हार मानना अमरीश पुरी ने सीखा ही नहीं था. ऐसे में हीरो ना सही लेकिन विलेन बनकर उन्होंने हिंदी सिनेमा में ऐसा नाम कमाया कि आज भी उन्हें लोग याद करते हैं.
Table of Content
- जब फेल हुए अमरीश पुरी
- सालों बाद मिली पहचान
- हीरो की जगह बन गए विलेन
- दमदार आवाज के मालिक
- जब मुडवाया अमरीश पुरी ने सिर
- जब बने बेस्ट विलेन
- जब पिता बनकर अमरीश ने जीता दिल
- कॉमेडी में भी आजमाया हाथ
- मिल चुके हैं कई अवॉर्ड
- गूगन ने भी बनाया डूडल
जब फेल हुए अमरीश पुरी
कम ही लोग जानते हैं कि अमरीश पुरी अपने जमाने के मशहूर सिंगर और एक्टर केएल सहगल के चचेरे भाई थे. अमरीश 5 भाई बहन थे.उनके दोनों बड़े भाई चमन पुरी और मदन पुरी एक्टर थे. उनकी एक बड़ी बहन थी जिसका नाम था चंद्रकांता और एक छोटा भाई हरीश पुरी था. केएल सहगल और अपने दोनों बड़े भाईयों की पॉपुलैरिटी देखकर अमरीश पुरी भी फिल्मों में किस्मत आजमाने के लिए 1950 के दशक में मुंबई चले आए. हालांकि, तब भी माया नगरी में अपने लिए जगह बनाना आसान नहीं था. ऐसे में अमरीश पुरी भी अपने पहले स्क्रीन टेस्ट में फेल हो गए. इस बीच अमरीश पुरी को कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) में नौकरी मिल गई. अपने एक्टिंग के शौक को पूरा करने के लिए वो एक नाटक मंडली का भी हिस्सा बन गए. उस वक्त अमरीश पुरी की लाइफ अच्छी कट रही थी.
सालों बाद मिली पहचान
अमरीश पुरी की नाटक मंडली अक्सर सत्यदेव दुबे के लिखे नाटक पृथ्वी थिएटर में करती थी. वहां अमरीश पुरी इतने मशहूर हुए कि 1979 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार दिया गया. धीरे-धीरे उनकी पॉपुलैरिटी इतनी बढ़ी कि अमरीश पुरी को टेलीविजन विज्ञापनों में काम मिलना शुरू हो गया. टीवी के बाद उन्हें फिल्मों के भी ऑफर आने लगे. तब तक अमरीश पुरी की उम्र 40 की हो चुकी थी. उनकी पहली फिल्म का नाम था ‘प्रेम पुजारी’ जो साल 1970 में रिलीज हुई थी. शुरुआत की कुछ फिल्मों में अमरीश पुरी के पास बोलने के लिए शायद ही कोई डायलॉग था. फिर भी वो फिल्मों के ऑफर कुबूल करते रहे. अमरीश ने सरकारी नौकरी के साथ, थिएटर और फिल्मों में छोटे-मोटे रोल करने जारी रखे. खैर, ‘प्रेम पुजारी’ के बाद उन्होंने ‘हलचल’, ‘रेशमा’ और ‘शेरा’, ‘हिन्दुस्तान की कसम’, ‘सलाखें’, ‘निशांत’, ‘मंथन’, ‘सावन को आने दो’, ‘जानी दुश्मन’, और ‘आक्रोश’ जैसी कई फिल्मों में काम किया. लेकिन उन्हें पहचान मिली साल 1980 में रिलीज हुई फिल्म ‘हम पांच’ से जिसमें अमरीश पुरी ने मेन विलेन ‘वीर प्रताप सिंह’ का किरदार निभाया था. इसके बाद उन्हें एक के बाद एक विलेन के रोल मिलने लगे.
हीरो की जगह बन गए विलेन
अमरीश पुरी के बेटे राजीव पुरी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके पिता हीरो बनने के लिए मुंबई आए थे. लेकिन फिल्म मेकर्स ने उनसे कहा कि तुम्हारा चेहरा हीरो वाला नहीं है. इसे लेकर वो शुरुआत में काफी निराश भी हुए. इस रिजेक्शन के बाद ही अमरीश पुरी ने थिएटर में काम करना शुरू किया. उस वक्त तक उन्हें भी अंदाजा नहीं था कि एक दिन वो हिंदी सिनेमा के सबसे महंगे विलेन बन जाएंगे. वो अपने किरदारों में इतने फिट बैठते थे कि लोग असल जिंदगी में भी उन्हें विलेन के रूप में ही देखते थे.
दमदार आवाज के मालिक
अमरीश पुरी ने ‘मेरी जंग’, ‘तेरी मेहरबानियां’, ‘नगीना’ और ‘असली नकली’ जैसी कई हिट फिल्मों में विलेन बनकर फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह पक्की कर ली. सिर्फ हिंदी ही नहीं बल्कि उन्होंने पंजाबी, मराठी, कन्नड़, मलयालम, तमिल और तेलुगु भाषा से लेकर हॉलीवुड फिल्मों में भी काम किया. साल 1982 में रिलीज हुई सुभाष घई की फिल्म ‘विधाता’ में अमरीश पुरी ने विलेन बनकर खूब वाहवाही लूटी. इसके बाद उन्होंने अमिताभ बच्च और दिलीप कुमार स्टारर फिल्म ‘शक्ति’ में भी खलनायक का किरदार निभाया. फिर जैकी श्रॉफ की डेब्यू फिल्म ‘हीरो’ में भी अमरीश ने मेन विलेन का रोल किया. विलेन के रोल में अमरीश पुरी को लोगों ने इतना पसंद किया कि वो 80 के दशक में हिंदी सिनेमा के सबसे पॉपुलर और महंगे विलेन बन गए. कहा जाता है कि वो अपने जमाने में एक फिल्म के लिए 1 करोड़ रुपये फीस लेने वाले इकलौते विलेन थे. खासतौर से उनकी पॉपुलैरिटी बढ़ी फिल्म ‘मिस्टर इंडिया’ के बाद जिसमें उन्होंने ‘मोगेंबो’ का रोल किया. फिल्म से उनका डायलॉग ‘मोगेंबो खुश हुआ’ आज भी लोगों की जुबां पर रहता है.
जब मुडवाया अमरीश पुरी ने सिर
बॉलीवुड में अपना दबदबा बनाने के साथ-साथ अमरीश पुरी ने हॉलीवुड में भी काम किया. साल 1984 में उन्होंने स्टीवन स्पीलबर्ग और जॉर्ज लुकास की फिल्म ‘इंडियाना जोन्स एंड द टेंपल ऑफ डूम’ नाम की हॉलीवुड फिल्म में काम किया. इस फिल्म के लिए अमरीश पुरी को अपना सिर मुंडवाना पड़ा था. उन्हें इस फिल्म में अपना लुक इतना पसंद आया कि बाद में भी अमरीश ने अपना सिर मुंडवाए ही रखा. गंजे होने की वजह से उन्हें कई और बॉलीवुड फिल्मों में विलेन के रोल ऑफर हुए. इसके अलावा उनके पास अलग-अलग लुक ट्राई करने की भी सुविधा हो गई थी. वैसे कम ही लोग जानते हैं कि अमरीश पुरी ने इसके बाद अपनी हर फिल्म में विग पहनी थी. वहीं, इसके बाद उन्होंने रिचर्ड एटनबरो की फिल्म ‘गांधी’ में काम किया.
जब बने बेस्ट विलेन
स्टीवन स्पीलबर्ग अमरीश पुरी की एक्टिंग से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने एक बार कहा था कि अमरीश पुरी मेरे फेवरेट विलेन हैं. खैर, ‘मिस्टर इंडिया’, ‘मेरी जंग’, ‘त्रिदेव’, ‘घायल’, ‘घातक’, ‘दामिनी’, ‘करण अर्जुन’, ‘गदरः एक प्रेम कथा’, ‘नायक’ और ‘विधाता’ जैसी बड़ी फिल्मों में अमरीश पुरी ने खलनायक बनकर खूब रंग जमाया. ऐसा नहीं है कि अमरीश पुरी ने सिर्फ विलेन बनकर ही फिल्म इंडस्ट्री में वाहवाही लूटी, बल्कि सॉफ्ट रोल करके भी उन्हें खूब कामयाबी मिली.
जब पिता बनकर अमरीश ने जीता दिल
आदित्य चोपड़ा के डायरेक्शन में बनी फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ शाहरुख खान और काजोल के करियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई. लेकिन इसी फिल्म ने दुनिया को अमरीश पुरी के एक अलग रूप से भी परिचित करवाया. इस फिल्म में अमरीश ने काजोल के पिता ‘चौधरी बलदेव सिंह’ का किरदार निभाया था. एक सख्त पिता होकर जब फिल्म के अंत में अमरीश ने नम आंखों के साथ कहा- ‘जा सिमरन जा, जी ले अपनी जिंदगी’ तब उन्होंने अपनी विलेन वाली छवी भी तोड़ दी. इसके बाद अमरीश पुरी ने ‘विरासत’, ‘बादल’, ‘चोरी चोरी चुपके चुपके’, ‘लक्ष्य’, ‘ऐतराज’, ‘मुझे कुछ कहना है’ जैसी फिल्मों में सॉफ्ट किरदार निभाए और यहां भी लोगों का दिल जीत गए.
कॉमेडी में भी आजमाया हाथ
अमरीश पुरी ने अपने लंबे करियर में 400 से ज्यादा फिल्मों में काम किया. उन्हें हर जॉनर की फिल्मों में कामयाबी मिली. इस बीच अमरीश पुरी ने कई कॉमेडी फिल्मों में भी काम किया. इनमें ‘झूठ बोले कौआ काटे’, ‘चाची 420’, ‘हलचल’, ‘बादशाह’ और ‘मुझसे शादी करोगी’ जैसी फिल्मों के नाम शामिल हैं. अमरीश पुरी की आखिरी फिल्म थी ‘किसना’ जो साल 2005 में रिलीज हुई थी. उसी साल यानी 12 जनवरी, 2005 को अमरीश पुरी का कैंसर की वजह से निधन हो गया. निधन के वक्त अमरीश पुरी की उम्र 72 साल थी. काफी वक्त से उनका इलाज चल रहा था. 27 दिसंबर, 2004 को उन्हें हिंदुजा हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया था जहां उनकी कई सर्जरी हुईं. कुछ दिनों बाद वो कोमा में चले गए. आखिरकार उन्होंने जिंदगी से हार माल ली और 12 जनवरी, 2005 को अपनी अंतिम सांस ली.
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मिल चुके हैं कई अवॉर्ड
हम सभी जानते हैं कि अमरीश पुरी हिंदी सिनेमा के सबसे बेहतरीन कलाकारों में से एक थे. उनके जैसा ना कोई एक्टर था और ना ही होगा. यही वजह है कि अमरीश पुरी के काम को दर्शकों के साथ-साथ क्रिटिक्स ने भी खूब पसंद किया. कई फिल्मों के लिए अमरीश को अवॉर्ड मिले. साल 1986 में रिलीज हुई फिल्म ‘मेरी जंग’ के लिए अमरीश पुरी को बेस्ट सपोर्टिंग रोल के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया. इसके अलावा ‘घातक’ के लिए उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग रोल का स्क्रीन अवॉर्ड और फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला. ‘विरासत’ के लिए भी उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया. ‘त्रिदेव’, ‘सौदागर’, ‘तहलका’, ‘गर्दिश’, ‘दामिनी’, ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, ‘करण अर्जुन’, ‘कोयला’, ‘गदरः एक प्रेम कथा’ और ‘ताल’ जैसी फिल्मों के लिए भी अमरीश पुरी को सम्मानित किया जा चुका है.
Conclusion
हिंदी सिनेमा का एक ऐसा विलेन जिसकी आवाज से गूंजते थे थिएटर्स. उस खलनायक का नाम था अमरीश पुरी. कभी हीरो बनने आए अमरीश पुरी ने विलेन बनकर वो मुकाम हासिल किया जिसकी लोग सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं. आज भले ही अमरीश पुरी हमारे बीच मौजूद नहीं हैं लेकिन अपनी फिल्मों के जरिए वो हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे. वैसे भी उनके जैसा कलाकार सदियों में एक बार ही होता है. यही वजह है कि अमरीश पुरी की 87वीं बर्थ एनिवर्सरी पर गूगन ने भी डूडल के जरिए उन्हें याद किया. 22 जून, 2019 को गूगन ने अमरीश पुरी का डूडल बनाकर एक्टर को याद किया. तब गूगन ने अमरीश पुरी की फोटो पर लिखा था- ‘पहली बार में अगर आपको सक्सेस नहीं मिलती तो फिर से कोशिश करें. आप इंडियन फिल्म एक्टर अमरीश पुरी की तरह बन सकते हैं. उन्होंने शुरुआती असफलताओं को पार करके अपना फिल्मों में काम करने का सपना पूरा किया था’.
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