CAG Report : दिल्ली में अस्पतालों की हालत इतनी खराब है इसकी जानकारी का खुलासा CAG रिपोर्ट से हुआ है. रिपोर्ट की मानें तो अस्पतालों में डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिकल कर्मियों की भारी कमी है.
CAG Report : आम आदमी पार्टी की सरकार राजधानी में विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करने का दावा करती रही, लेकिन CAG रिपोर्ट ने कई सारे चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. CAG रिपोर्ट की मानें तो राजधानी की स्वास्थ्य सुविधाएं चरमराई हुई हैं, क्योंकि दिल्ली सरकार के अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों, नर्स और पैरामेडिकल कर्मियों की कमी है. वहीं, दिल्ली सरकार के अस्पतालों में 10 हजार बेड बढ़ाने की घोषणा की गई थी जो अभी तक पूरी नहीं हुई है. इतना ही नहीं साल 2016-17 से 2021-22 के दौरान स्वास्थ्य परियोजनाओं के लिए आवंटित बजट 13.29 से 78.41 प्रतिशत तक बचा रह गया.
होने लगे हैं कई खुलासे
दिल्ली में नई सरकार के गठन के साथ ही लंबे समय से पेंडिंग CAG की 14 रिपोर्ट्स के सामने आने का सिलसिला भी शुरू हो गया है. सरकार एक-एक करके इन सभी रिपोर्ट्स को विधानसभा के पेश कर रही है. इस बीच प्रशासनिक सूत्रों ने बताया कि पब्लिक हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन पर CAG की रिपोर्ट से दिल्ली में सरकारी अस्पतालों की खस्ता हालत और लचर प्रबंधन का भी खुलासा हुआ है.
इन दावों का भी हुआ खुलासा
जानकारी की मानें तो 31 मार्च, 2022 को खत्म हुए साल के लिए CAG की ओर से तैयार की गई इस रिपोर्ट के अनुसार सरकारी अस्पतालों में मरीजों को दी जाने वाली जरूरी दवाओं की लिस्ट (EDL) हर साल तैयार करना जरूरी है, लेकिन पिछले 10 सालों में केवल तीन बार ही यह लिस्ट तैयार की गई. कमिटी ने पाया कि दिल्ली सरकार के अस्पतालों के लिए जरूरी दवाएं और उपकरण मुहैया कराने का जिम्मा सेंट्रल प्रोक्योरमेंट एजेंसी (CPA) को सौंपा गया था, लेकिन वह इस सेवा को मुहैया कराने में नाकाम रहे. इसकी वजह से वर्ष 2016-17 से 2021-22 के बीच अस्पतालों को 33 से 47 प्रतिशत दवाएं खुद सीधे सप्लायरों से खरीदनी पड़ी.
दिल्ली असेंबली में पेश रिपोर्ट
दिल्ली विधानसभा में CAG रिपोर्ट पेश की गई. रिपोर्ट की मानें तो राष्ट्रीय राजधानी के 21 मोहल्ला क्लीनिक में टॉयलेट नहीं हैं. 15 में पावर बैकअप नहीं है. 6 में जांच के लिए टेबल नहीं है. 12 मोहल्ला क्लिनिक दिव्यांगों के लिए सुलभ नहीं हैं. आयुष डिस्पेंसरी की बात करें तो 49 में से 17 में पावर बैकअप नहीं है. 7 में शौचालय नहीं है. 14 में पीने के पानी की सुविधा नहीं है.
इन खुलासो पर भी देना है ध्यान
यहं बता दें कि EDL में दर्ज 33 से 47 प्रतिशत दवाएं लोकल केमिस्ट से खरीदनी पड़ीं. वहीं, CPA के 86 में से 24 टेंडर आवंटित हुए, समय पर दवा नहीं खरीदीं. हीमोफीलिया और एंटी रेबीज इंजेक्शन की कमी पाई गई. CPA ने दवाओं की गुणवत्ता जांच के लिए ड्रग टेस्टिंग लैब को पैनल में शामिल करने में देरी की. दवाओं की आपूर्ति अस्पतालों को होने के बाद CPA की ओर से गुणवत्ता जांच के लिए सैंपल लिए गए. CPA से दवा मिलने और उसकी गुणवत्ता जांच की रिपोर्ट आने में दो से तीन माह का अंतर दिखाई दिया.
ब्लैकलिस्टेड और प्रतिबंधित फर्म से भी दवाएं खरीदी गईं.
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