'ये माना जिंदगी है चार दिन की...' पढ़ें फिराक गोरखपुरी के बेहतरीन शेर.
अब तो उन की याद भी आती नहीं,
कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयां.
तन्हाइयां
जो उन मासूम आंखों ने दिए थे,
वो धोके आज तक मैं खा रहा हूं.
मासूम आंखों
बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मालूम,
जो तेरे हिज्र में गुजरी वो रात रात हुई.
हिज्र में गुजरी
ये माना जिंदगी है चार दिन की,
बहुत होते हैं यारो चार दिन भी.
चार दिन
जिंदगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त,
सोच लें और उदास हो जाएं.
जिंदगी क्या है
सांस लेती है वो जमीन 'फिराक',
जिस पे वो नाज से गुजरते हैं.
सांस लेती है