'तुम न तौबा करो जफाओं से...' पढ़ें साहिर होशियारपुरी के सदाबहार शेर.
जब बिगड़ते हैं बात बात पे वो,
वस्ल के दिन करीब होते हैं.
जब बिगड़ते हैं
कौन कहता है मोहब्बत की जबां होती है,
ये हकीकत तो निगाहों से बयां होती है.
मोहब्बत की जबां
फिर किसी बेवफा की याद आई,
फिर किसी ने लिया वफा का नाम.
बेवफा की याद
तुम न तौबा करो जफाओं से,
हम वफाओं से तौबा करते हैं.
तौबा करो
हम करीब आ कर और दूर हुए,
अपने अपने नसीब होते हैं.
अपने नसीब
अब तो एहसास-ए-तमन्ना भी नहीं,
काफिला दिल का लुटा हो जैसे.
एहसास-ए-तमन्ना