'अंदाज-ए-बयां गरचे बहुत शोख नहीं है...' पढ़ें अल्लामा इकबाल के मशहूर शेर.

खिर्द-मंदों से क्या पूछूं कि मेरी इब्तिदा क्या है, कि मैं इस फिक्र में रहता हूं मेरी इंतिहा क्या है.

खिर्द-मंदों

जाहिर की आंख से न तमाशा करे कोई, हो देखना तो दीदा-ए-दिल वा करे कोई.

आंख से न तमाशा

मुझे रोकेगा तू ऐ नाखुदा क्या गर्क होने से, कि जिन को डूबना है डूब जाते हैं सफीनों में.

नाखुदा क्या गर्क

 तेरा इमाम बे-हुजूर तेरी नमाज बे-सुरूर, ऐसी नमाज से गुजर ऐसे इमाम से गुजर.

बे-हुजूर तेरी

तुर्कों का जिस ने दामन हीरों से भर दिया था, मेरा वतन वही है मेरा वतन वही है.

दामन हीरों

अंदाज-ए-बयां गरचे बहुत शोख नहीं है, शायद कि उतर जाए तिरे दिल में मिरी बात.

तिरे दिल