'जुदा थे हम तो मयस्सर थीं कुर्बतें कितनी...' पढ़ें फैज अहमद फैज के मशहूर शेर.
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी,
सुनते थे वो आएंगे सुनते थे सहर होगी.
दर्द ऐ दिल
जुदा थे हम तो मयस्सर थीं कुर्बतें कितनी,
बहम हुए तो पड़ी हैं जुदाइयां क्या क्या.
मयस्सर थीं कुर्बतें
और भी दुख हैं जमाने में मोहब्बत के सिवा,
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
.
मोहब्बत के सिवा
जवां-मर्दी उसी रिफअत पे पहुंची,
जहां से बुजदिली ने जस्त की थी.
बुजदिली ने जस्त
ये दाग दाग उजाला ये शब-गजीदा सहर,
वो इंतिजार था जिस का ये वो सहर तो नहीं
.
शब-गजीदा सहर
सब कत्ल हो के तेरे मुकाबिल से आए हैं,
हम लोग सुर्ख-रू हैं कि मंजिल से आए हैं.
मुकाबिल से आए