'हजार कोस निगाहों से दिल की मंजिल तक...' अदा जाफरी के वह शेर जिन्हें पढ़कर आप गुफ्तुगू करने लग जाएं.

मैं आंधियों के पास तलाश-ए-सबा में हूं, तुम मुझ से पूछते हो मिरा हौसला है क्या.

आंधियों के पास

 होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए, आए तो सही बर-सर-ए-इल्जाम ही आए.

बर-सर-ए-इल्जाम

हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है, कभी अखबार पढ़ लेना कभी अखबार हो जाना.

अखबार पढ़ लेना

 बड़े ताबां बड़े रौशन सितारे टूट जाते हैं, सहर की राह तकना ता सहर आसां नहीं होता.

सहर आसां

जिस की जानिब 'अदा' नजर न उठी, हाल उस का भी मेरे हाल सा था.

मेरे हाल सा

 हजार कोस निगाहों से दिल की मंजिल तक, कोई करीब से देखे तो हम को पहचाने.

निगाहों से दिल