'न जाने क्यूं अधूरी ही मुझे तस्वीर जचती है...' पढ़ें अनवर जलालपुरी के खास शेर.
अब नाम नहीं काम का काएल है जमाना,
अब नाम किसी शख्स का रावन न मिलेगा.
काम का काएल
चाहो तो मिरी आंखों को आईना बना लो,
देखो तुम्हें ऐसा कोई दर्पन न मिलेगा.
आंखों को आईना
वो जिस को पढ़ता नहीं कोई बोलते सब हैं,
जनाब-ए-'मीर' भी कैसी जबान छोड़ गए.
जिस को पढ़ता
न जाने क्यूं अधूरी ही मुझे तस्वीर जचती है,
मैं कागज हाथ में लेकर फकत चेहरा बनाता हू.
क्यूं अधूरी
मैं ने लिख्खा है उसे मर्यम ओ सीता की तरह,
जिस्म को उस के अजंता नहीं लिख्खा मैं ने.
मैं ने लिख्खा
मेरा हर शेर हकीकत की है जिंदा तस्वीर,
अपने अशआर में किस्सा नहीं लिख्खा मैं ने.
जिंदा तस्वीर