'आग का क्या है पल दो पल में लगती है...' पढ़ें कैफ भोपाली के शानदार शेर.
तुझे कौन जानता था मिरी दोस्ती से पहले,
तिरा हुस्न कुछ नहीं था मिरी शाइरी से पहले.
जानता था
तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है,
तेरे आगे चांद पुराना लगता है.
कितना सुहाना
आग का क्या है पल दो पल में लगती है,
बुझते बुझते एक जमाना लगता है.
पल दो पल
साया है कम खजूर के ऊंचे दरख्त का,
उम्मीद बांधिए न बड़े आदमी के साथ.
ऊंचे दरख्त का
इक नया जख्म मिला एक नई उम्र मिली,
जब किसी शहर में कुछ यार पुराने से मिले.
नया जख्म
इधर आ रक़ीब मेरे मैं तुझे गले लगा लूं,
मिरा इश्क बे-मजा था तिरी दुश्मनी से पहले.
इश्क बे-मजा