Introduction Of Congo Violence
Congo Violence: DRC यानि कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में विद्रोही गुट M23 ने तांडव मचा दिया है. रवांडा समर्थित M23 विद्रोहियों की ओर से गोमा में कब्जा करने के बाद 2,000 से अधिक लाशें बिछ गई हैं. शवों को दफनाने के लिए भी जगह नहीं मिल रही है. इससे सबसे बड़ा मानवीय संकट भड़क गया है. हालांकि, M23 विद्रोहियों ने एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा की है.
विद्रोहियों ने कहा है कि यह कदम मानवीय आधार पर उठाया गया है. दरअसल, WHO यानि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया था कि 20 लाख लोगों की आबादी वाले शहर गोमा में छिड़ी लड़ाई में कम से कम 900 लोग मारे गए हैं. बताया जा रहा है कि M23 विद्रोहियों ने कहा कि उनका इरादा अन्य क्षेत्रों पर कब्जा करने का नहीं है. फिर भी कुछ निवासियों ने छिटपुट गोलीबारी और लूटपाट की सूचना दी है.
Table Of Content
- इतिहास में डूबा हुआ है Congo Violence
- Congo Violence की क्या है वजह?
- M23 ने शुरू किया Congo Violence
- Congo Violence पर M23 ने क्या कहा?
- Congo Violence में पूर्वी कांगो महत्वपूर्ण क्यों है?
- रवांडा की Congo Violence में क्या है भूमिका ?
- Congo Violence पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया
साथ ही गोलीबारी में फंसे लोगों, अस्पतालों में भीड़ और सड़कों पर पड़े शवों की खबरों के बाद नागरिकों को हुए नुकसान का आकलन अभी भी जारी है. वहीं, विद्रोहियों ने आसपास के क्षेत्रों में भी अपनी उपस्थिति बढ़ा दी है. साथ ही लगभग 1,000 मील (लगभग 1,600 किलोमीटर) दूर राजधानी किंशासा पर चढ़ाई करने की अपनी मंशा की घोषणा कर दी है. ऐसे में आपको बताते हैं क्या कांगो में इस लड़ाई की वजह क्या है.
इतिहास में डूबा हुआ है Congo Violence
वेबसाइट सिफर ब्रीफ ने CIA के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी डेरेल ब्लॉकर (अफ्रीका डिवीजन के पूर्व प्रमुख) के हवाले से बताया कि यह लड़ाई इतिहास में डूबी हुई लड़ाई है. अफ्रीकी देशों रवांडा और बुरुंडी में रहने वाला एक जातीय समूह तुत्सी की रक्षा के M23 ने वादा किया है. बता दें कि DRC की सीमा नौ देशों से लगती है. इसमें रवांडा, तंजानिया, युगांडा और जाम्बिया देश भी शामिल हैं.
रवांडा में तुत्सी और हूतू समुदायों के बीच बहुत समय से विवाद चला आ रहा है. बता दें कि साल 1994 में इन दो जातियों के बीच रवांडा में सबसे बड़ा नरसंहार हुआ था. इस जनसंहार में लगभग आठ लाख लोगों की मौत हुई. तुत्सी रवांडा में अल्पसंख्यक हैं. वहीं, हुतु जाति के लोगों की जनसख्या काफी ज्यादा है. साल 1959 में हूतु ने तुत्सी राजतंत्र को उखाड़ फेंका और फिर शुरू हुआ विवाद. हजारों की संख्या लोग पलायन कर गए.
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बाद में यह लोग रवांडा लौटे और RPF यानि रवांडा पैट्रिएक फ्रंट बनाया. फिर शुरू हुई लड़ाई. नरसंहार के बाद यह शांति समझौते के साथ खत्म हुआ. साल 1994 में रवांडा के राष्ट्रपति जुवेनल हाबयारिमाना और बुरुंडी केपरियल नतारयामिरा के राष्ट्रपति भी विमान दुर्घटना में मारे गए. दोनों नेता हूतु जनजाति से आते थे. ऐसे में माना गया कि RPF ने ही जहाज गिराया है.
जवाबी कार्रवाई के डर से हुतु जनजाति के 20 लाख लोग डर से कांगो में घुस आए. तब से रवांडा के बाद कांगो में हुतु और तुत्सी के बीच तनाव बार-बार बढ़ता रहा है. हालांकि, कई लोग इसके लिए हूतु चरमपंथियों को भी जिम्मेदार मानते हैं. साल 1996 से लेकर साल 2003 तक कांगो में पैर जमाने की होड़ लगी रही. इसे अफ्रीका का विश्व युद्ध भी कहा जाता है. बता दें कि तुत्सी लोगों की आबादी 85 फीसदी के आस-पास है.
Congo Violence की क्या है वजह?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कांगो पृथ्वी पर सबसे अधिक संसाधन संपन्न देश है. ऐसे में कई सशस्त्र गुट कांगो पर कब्जा जमाना चाहते हैं. डेरेल ब्लॉकर के मुताबिक सशस्त्र गुटों के अलावा अमेरिका, रूस और चीन समेत कई देश उसी खनिज संसाधन के लिए लड़ रहे हैं. पूरी दुनिया में 65-70 फीसदी कोबाल्ट यानि पूर्वी कांगो में हैं. इसी इलाके में M23 के लड़ाके लड़ाई लड़ रहे हैं.
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गौरतलब है कि कोबाल्ट का अक्षय ऊर्जा और रक्षा के साथ ही लगभग हर तरह की टेक्नोलॉजी में इस्तेमाल होता है. मैग्नीशियम, सोना और हीरे जैसे महंगे धातुओं की बात करें, तो कांगो इस मामले में भी दुनिया के सबसे संसाधन संपन्न देशों में से एक हैं. डेरेल ब्लॉकर के मुताबिक वर्तमान में अमेरिका, चीन और रूस समेत 47 अलग-अलग देश हैं जिन्होंने कांगो में निवेश किया है या फिर वह सेना, कर्मचारी और नर्स भेज चुके हैं या भेजने वाले हैं.
M23 ने शुरू किया Congo Violence
बता दें कि M23 गुट पूर्वी कांगो में पैर जमाने की होड़ में लगे करीब 100 सशस्त्र गुटों में से एक है. पूर्वी कांगो में लंबे समय से संघर्ष जारी है. बता दें कि M23 समूह मुख्य रूप से जातीय तुत्सी लोगों से बना है. बताया जाता है कि कांगो की सेना में शामिल होने में फेल होने के बाद उन्होंने साल 2012 में कांगो सरकार के खिलाफ एक असफल विद्रोह का नेतृत्व किया था.
साल 2012 में असफल विद्रोह के बाद यह गुट शांत हो गया. करीब 10 सालों तक निष्क्रिय रहने के बाद इस गुट ने फिर से फन फैलाया है. साल 2022 में इस गुट का पुनरुत्थान हुआ है. साल 1996 से 2003 के बीच अफ्रीका का विश्व युद्ध के दौरान कई सशस्त्र समूहों ने धातुओं और रेयर अर्थ मटेरियल जैसे तांबा, कोबाल्ट, लिथियम और सोने तक पहुंच के लिए लड़ते थे. साल 1996 से 2003 के बीच लगभग 60 लाख लोग मारे गए हैं.
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Congo Violence पर M23 ने क्या कहा?
न्यूज एजेंसी AP के मुताबिक M23 का कहना है कि उनकी लड़ाई में प्राकृतिक संसाधनों से कोई लेना-देना नहीं है. जानकारी के मुताबिक M23 के राजनीतिक नेताओं में से एक कॉर्नेल नांगा ने कहा है कि हमारा उद्देश्य कांगो है और हम कांगो के लिए ही लड़ रहे हैं. उन्होंने साफ करते हुए कहा कि हम खनिजों के लिए नहीं लड़ रहे हैं. हम किसी और चीज के लिए नहीं लड़ रहे हैं. हमारा उद्देश्य कांगो को एक असफल राज्य से एक आधुनिक राज्य में बदलना है, जिसके जरिए हम कांगो को एक व्यावसायिक भूमि बनाना चाहते हैं.
गौरतलब है कि रवांडा के कुछ अधिकारियों ने भागे हुए हुतु लोगों पर साल 1994 के नरसंहार में शामिल होने का आरोप लगाया है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि कांगो की सेना ने उनकी रक्षा की. अब M23 का दावा है कि वह रवांडा मूल के तुत्सी और कांगोवासियों को भेदभाव से बचाता है. वहीं आलोचकों का कहना है कि यह रवांडा के लिए पूर्वी कांगो पर आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव हासिल करने का सिर्फ एक बहाना है.
Congo Violence में पूर्वी कांगो महत्वपूर्ण क्यों है?
बता दें कि पूरी दुनिया की इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादक कंपनियां कांगो की धातुओं और रेयर अर्थ मटेरियल पर पहले से कहीं ज्यादा निर्भर है. ऐसे में कांगो में दांव बढ़ गया है. पड़ोसी देश रवांडा और युगांडा के साथ-साथ चीन और अमेरिका के भी कांगो की खदानों में वित्तीय हित शामिल हैं. अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ कॉमर्स की पिछले साल की एक रिपोर्ट के अनुसार कांगो के अधिकांश खनिज संसाधन की अनुमानित कीमत 24 ट्रिलियन डॉलर है.
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इनमें से ज्यादातर को कभी निकाला नहीं गया है. अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ कॉमर्स ने कांगो को विश्व में कोबाल्ट का अग्रणी उत्पादक देश बताया था, जो बैटरी बनाने के लिए महत्वपूर्ण है. इस क्षेत्र की संपदा का बहुत कम हिस्सा ही कांगो के नागरिकों तक पहुंच पाया है. 10 करोड़ निवासियों में 60 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं. इसके बाद भी प्राकृतिक संसाधनों की लड़ाई ने देश पूरी तरह से अस्थिर हो चुका है.
रवांडा की Congo Violence में क्या है भूमिका ?
गौरतलब है कि कांगो और अमेरिका के कई सुरक्षा अधिकारी रवांडा पर M23 के सपोर्ट का आरोप लगाते हैं. साल 2021 में रवांडा के कई सदस्य M23 में शामिल हैं. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार हाल में M23 समूह में लगभग 6,500 से अधिक लड़ाके हैं. हालांकि, रवांडा ने इस आरोपों से इन्कार किया है. फिर भी रवांडा की सरकार ने माना था कि पिछले साल पूर्वी कांगो में उसके सैनिक और मिसाइल सिस्टम तैनात हैं. हालांकि, रवांडा ने कहा था कि वह देश की सुरक्षा के लिए हैं. संयुक्त राष्ट्र का भी मानना है कि कांगो में 4,000 से अधिक रवांडा के सैनिक हैं.
Congo Violence पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया
साल 2012 में भी M23 गुटों ने गोमा शहर पर कब्जा कर लिया था. एक सप्ताह तक गोमा पर कब्जा जारी रहा. बाद में अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने रवांडा पर दबाव बनाना शुरू किया. अमेरिका और ब्रिटेन की ओर से फंडिंग रोकने के बाद और बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया. रवांडा समर्थित विद्रोहियों ने पिछले सप्ताह जब गोमा पर कब्जा कर लिया, तब संयुक्त राष्ट्र के अलावा अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन समेत कई पश्चिमी देशों ने रवांडा की निंदा करते हुए कई घोषणाएं की. हालांकि, इस बार संयुक्त राष्ट्र के अलावा अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन समेत कई पश्चिमी देशों ने पिछली बार की तरह कड़े प्रतिबंध समेत फंडिंग रोकने से परहेज किया है.
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Conclusion Of Congo Violence
बता दें कि पूर्वी कांगो में 40 लाख लोग विस्थापित हैं. साथ ही विद्रोहियों के बढ़ते हमलों के बीच हाल के सप्ताहों में हजारों लोग अपनी जान बचाकर भागे हैं. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार गोमा के बाहरी इलाकों में बने स्थित शिविरों में 3 लाख से अधिक लोगों ने शरण ली थी. हमले के दौरान जब विद्रोहियों ने शहर में प्रवेश किया, वह एक बार फिर हिंसा में फंस गए. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कांगो में संकट शुरू होने के बाद आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के लिए कम से कम दो स्थानों पर बम गिराए गए हैं. इसमें भारी संख्या में लोग मारे गए हैं.
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक कांगो की सेना और M23 समूह के साथ संघर्ष में यौन हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. पूर्वी कांगो में कई एयरपोर्ट और सड़कें बंद हो गई हैं. कई सहायता समूहों ने कहा कि वह जरूरतमंदों को जीवन रक्षक सहायता प्रदान करने में असमर्थ हैं. गोमा में रेड क्रॉस के अस्पताल में गोलियों और भारी तोपखाने से घायल हुए नागरिकों को रखने के लिए टेंट लगाए गए हैं. साथ ही गोमा के अधिकांश हिस्से में पानी और बिजली की आपूर्ति पूरी तरह से बंद हो चुकी है.
स्थानीय निवासियों को किवु झील से पानी लाने के लिए घंटों पैदल चलना पड़ रहा है. बता दें कि कांगो के किंशासा स्थित भारतीय दूतावास ने भी रविवार को एडवाइजरी जारी कर वहां रहने वाले भारतीयों को सतर्क रहने के लिए कहा है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल के अनुसार गोमा में करीब 1,000 भारतीय नागरिक रह रहे हैं. वहीं, पूर्वी कांगो में MONUSCO यानि कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र मिशन के तहत लगभग 1,200 भारतीय सैनिक सेवा कर रहे हैं. ऐसे में यह तनाव काफी घातक हो गया है.
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