'नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तुजू ही सही...' पढ़ें फैज अहमद फैज के मशहूर शेर.

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के, वो जा रहा है कोई शब-ए-गम गुजार के.

तेरी मोहब्बत

तुम्हारी याद के जब जख्म भरने लगते हैं, किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं.

जख्म भरने

नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तुजू ही सही, नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही.

निगाह में मंजिल

कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी, सुनते थे वो आएंगे सुनते थे सहर होगी.

दर्द ऐ दिल

आए तो यूं कि जैसे हमेशा थे मेहरबान, भूले तो यूं कि गोया कभी आश्ना न थे.

हमेशा थे मेहरबा

वो आ रहे हैं वो आते हैं आ रहे होंगे, शब-ए-फिराक ये कह कर गुजार दी हम ने.

शब-ए-फिराक