'हिन्दू चला गया न मुसलमां चला गया...' पढ़ें मजाज लखनवी के क्रांतिकारी शेर.

बहुत मुश्किल है दुनिया का संवरना, तिरी ज़ुल्फों का पेच-ओ-खम नहीं है.

दुनिया का संवरना

क्या क्या हुआ है हम से जुनूं में न पूछिए, उलझे कभी जमीं से कभी आसमाँ से हम.

हम से जुनूं

आंख से आंख जब नहीं मिलती, दिल से दिल हम-कलाम होता है.

हम-कलाम