'धुआं जो कुछ घरों से उठ रहा है...' पढ़ें Javed Akhtar के मशहूर शेर.

तब हम दोनों वक्त चुरा कर लाते थे, अब मिलते हैं जब भी फुर्सत होती है.

दोनों वक्त

ऊंची इमारतों से मकां मेरा घिर गया, कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए.

ऊंची इमारतों

धुआं जो कुछ घरों से उठ रहा है, न पूरे शहर पर छाए तो कहना.

घरों से उठ

इसी जगह इसी दिन तो हुआ था ये एलान, अंधेरे हार गए जिंदाबाद हिन्दोस्तान.

जिंदाबाद हिन्दोस्तान

मैं पा सका न कभी इस खलिश से छुटकारा, वो मुझ से जीत भी सकता था जाने क्यूं हारा.

खलिश से छुटकारा

इस शहर में जीने के अंदाज निराले हैं, होंटों पे लतीफे हैं आवाज में छाले हैं.

जीने के अंदाज