'मौत का एक दिन मुअय्यन है...' पढ़ें गालिब के सदाबहार शेर.

इशरत-ए-कतरा है दरिया में फना हो जाना, दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना.

इशरत-ए-कतरा

वो आए घर में हमारे खुदा की कुदरत है, कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं.

खुदा की कुदरत

इश्क से तबीअत ने जीस्त का मजा पाया, दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया.

जीस्त का मजा

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक, कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ के सर होते तक.

इक उम्र

मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यूं रात भर नहीं आती.

नींद क्यूं

पूछते हैं वो कि 'गालिब' कौन है, कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या.

कोई बतलाओ