'खींचों न कमानों को न तलवार निकालो', पढ़ें अकबर इलाहाबादी के सदाबहार शेर

 अकबर दबे नहीं किसी सुल्तां की फौज से, लेकिन शहीद हो गए बीवी की नौज से.

सुल्तां की फौज

इश्क के इजहार में हर-चंद रुस्वाई तो है, पर करूं क्या अब तबीअत आप पर आई तो है.

हर-चंद रुस्वाई

बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है, तू दिल में तो आता है समझ में नहीं आता.

तिरी पहचान

खींचों न कमानों को न तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो.

खींचों न कमानों

गजब है वो जिद्दी बड़े हो गए, मैं लेटा तो उठ के खड़े हो गए.

गजब है वो जिद्दी

वस्ल हो या फिराक हो 'अकबर', जागना रात भर मुसीबत है.

जागना रात