Introduction
Former PM HD Deve Gowda : भारतीय राजनीति के इतिहास में 90 का दशक काफी उथल-पुथल भरा रहा. जहां पर देश में 1991 से लेकर अक्टूबर 1999 तक 8 सालों में 6 प्रधानमंत्रियों को शपथ दिलानी पड़ी थी. राजनीतिक अस्थिरता आने की वजह से देश के आर्थिक विकास में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था और उस वक्त राजनीतिक विश्लेषक भी दावा नहीं कर पा रहे थे कि यह संकट कब खत्म होगा. इसी संकट की घड़ी में थर्ड फ्रंट से प्रधानमंत्री पद के लिए एचडी देवगौड़ा का नाम सामने आया वह उस वक्त दक्षिण की राजनीति में एक बड़ा चेहरा थे और कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद पर भी विराजमान थे. उनसे पहले पामुलपर्थी वेंकट नरसिम्हा राव (PV Narasimha Rao) की अगुवाई वाली सरकार ने 1991-1996 तक 5 सालों का कार्यकाल पूरा किया. लेकिन जब देश में 11वीं लोकसभा के लिए इलेक्शन हुआ तो उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी की नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी 161 सीटों जीतने के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. हालांकि BJP बहुमत का आंकड़ा छू नहीं पाई और 13 दिन बाद ही सरकार गिर गई क्योंकि उस दौरान पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी लोकसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाए थे. वहीं, वाजपेयी मोर्चे का पतन होने के बाद कांग्रेस ने सरकार बनाने से मना कर दिया और उसके बाद थर्ड फ्रंट उभरकर सामने आया. देश में दो राष्ट्रीय दलों की सरकार नहीं बनने के बीच इस फ्रंट में जनता दल, द्रविड़ मुनेत्र कडगम (DMK), समाजवादी पार्टी, तेलुगू देशम पार्टी (TDP) समेत 13 दलों के समर्थन से संयुक्त मोर्चा बनाया गया और इसका नेता एचडी देवगौड़ा को बनाया गया जहां उन्होंने कर्नाटक के सीएम पद से इस्तीफा देने के बाद 1 जून, 1996 को देश के 11वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली.
Table Of Content
- VP सिंह और ज्योति बसु को भी दिया ऑफर
- पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा का जीवन
- ऐसा रहा पूर्व प्रधानमंत्री का करियर
- पीएम के लिए किसने आगे बढ़ाया नाम
- राजनीति में आने से पहले क्या करते थे देवगौड़ा
VP सिंह और ज्योति बसु को भी दिया ऑफर
देश की दो राष्ट्रीय पार्टियों (BJP और कांग्रेस) की सरकार नहीं बनने के बाद देश में संयुक्त मोर्चा या थर्ड फ्रंड के रूप उभरकर आया जहां उन्होंने सबसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह और वामपंथी नेता ज्योति बसु को ऑफर दिया लेकिन दोनों नेताओं ने ऑफर को ठुकरा दिया. वहीं, वीपी सिंह से बार-बार अनुरोध किया गया कि वह प्रधानमंत्री पद ग्रहण करें लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया. इसी बीच जनता दल के वरिष्ठ नेता एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बनाने का फैसला लिया गया और उस दौरान वह कर्नाटक के मुख्यमंत्री भी थे. इसके बाद एचडी देवगौड़ा को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिलवाया गया और संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा का सदस्य बनाकर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया दिया. इस सरकार को बाहर से कांग्रेस ने समर्थन दिया. लेकिन कांग्रेस की तरफ से समर्थन वापस लेने के महज 10 महीने के बाद ही 21 अप्रैल, 1997 को देवगौड़ा सरकार गिर गई. बता दें कि उस वक्त यह हैरान कर देने वाली बात यह थी कि जिस जनता दल को 11वीं लोकसभा में मात्र 46 सीटों पर जीत दर्ज की हो उस पार्टी का उम्मीदवार प्रधानमंत्री बन जाए तो इसे चमत्कार ही कहा जाएगा. जब एचडी देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाया गया तो उस वक्त नारा गूंजा ‘रेस कोर्स से दौड़ा-घोड़ा, देवगौड़ा-देवगौड़ा’. वहीं, इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को 161, कांग्रेस को 141 और जनता दल को 46 सीटों पर जीत मिली थी. इसी बीच सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते BJP को सरकार बनाने का न्योता दिया गया जहां उसने 13 दिनों के बाद सहयोगी दलों की तरफ से समर्थन वापस लेने के बाद सरकार गिर गई.
पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा का जीवन
पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा का जन्म 18 मई 1933 को कर्नाटक राज्य के हासन जिले के होलेनारासिपुरा तालुक के हरदनहल्ली गांव में हुआ था. साल 1950 में उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग डिप्लोमा प्राप्त किया और मात्र 20 साल की उम्र में पढ़ाई पूरी करने के बाद देवगौड़ा ने राजनीति में एंट्री कर दी. जहां उन्होंने 1953 में कांग्रेस ज्वाइन कर ली और इस दौरान उन्होंने साल 1962 तक सदस्य के रूप में कर्नाटक में जमीनी स्तर पर काम किया. देवगौड़ा का जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था जहां उनको विभिन्न प्रकार की आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. यही वजह थी कि उन्होंने अपनी राजनीतिक क्षेत्र में किसानों, वंचित और शोषित वर्गों की आवाज उठाने का काम किया था. इसी बीच देवगौड़ा ने अन्जनेया सहकारी सोसायटी के अध्यक्ष और होलेनारासिपुरा के तालुक तहसील विकास बोर्ड के सदस्य के रूप में अलग पहचान बनाई और राजनीतिक क्षेत्र में ऊंचाइयों पर पहुंचने लगे. उन्होंने हमेशा से ही ऐसा सपना देखा जहां पर किसी भी प्रकार की असमानता समाज के अंदर न हो.
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ऐसा रहा पूर्व प्रधानमंत्री का करियर
साल 1962 में 28 साल की उम्र में देवगौड़ा ने कर्नाटक विधानसभा का चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ा और जीतने के बाद पहली बार विधानसभा पहुंचे. इस दौरान वक्ता के रूप में उन्होंने अन्य राजनीतिक पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं को प्रभावित किया. इसके बाद वह लगातार तीन बार होलेनारसिपुर निर्वाचन क्षेत्र से (1967-1971), (1972-1977) और (1978-1983) चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. इसके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री ने मार्च 1972 से मार्च 1976 और 1976 से दिसंबर 1977 तक प्रतिपक्ष नेता के रूप में भी लोगों को ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. साथ ही देवेगौड़ा ने 22 नवंबर 1982 को छठी विधानसभा की सदस्यता छोड़ दी. 7वीं और 8वीं विधानसभा सदस्य का सदस्य रहते हुए लोक निर्माण और सिंचाई मंत्री पद संभाला. सिंचाई मंत्री रहते हुए उन्होंने कई परियोजनाओं को अंजाम दिया और 1987 में सिंचाई के लिए अपर्याप्त धन आवंटन करने के चलते विरोध का सामना करना पड़ा और उसके बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. स्वतंत्रता और समानता के समर्थक गौड़ा को 1975-76 में केंद्र सरकार की नाराजगी का सामना करना पड़ा और उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार करने के बाद जेल में डाल दिया जहां उन्होंने अपना पूरा समय अध्ययन करने में दिया. जेल में गंभीर अध्ययन करने के बाद जब वह जेल से छूटे तो उनके व्यक्तित्व में एक बड़ा बदलाव देखा गया. जेल से बाहर आने के बाद वह एक परिपक्व और दृढ व्यक्तित्व के साथ अपनी राजनीति का झंडा गाढ़ने का काम किया.
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पीएम के लिए किसने आगे बढ़ाया नाम
वाजपेयी सरकार गिरने के बाद प्रधानमंत्री पद को लेकर तमिलनाडु भवन में बैठक हुई जहां किसी ने अचानक एचडी देवगौड़ा का नाम ले लिया और उसके बाद वह नाम लोगों के जहन में बैठ गया. देवगौड़ा विरोध करने वाले उनके साथी रामकृष्ण हेगड़े थे लेकिन बाद में वह भी मान गए थे. इसके अलावा उस मीटिंग में मौजूद मुलायम सिंह और लालू प्रसाद यादव समेत बाकि तमाम वरिष्ठ नेताओं ने उनके नाम पर मुहर लगा दी. साथ ही वामपंथी दल, चंद्रबाबू नायडु और मूपनार किसी भी तरफ से कोई विरोध नहीं किया गया. इसी बीच थर्ड फ्रंट ने देवगौड़ा को अपना नेता मान लिया ने गौड़ा अपने नेता मान लिया और वह इस तरह भारत के 11वें प्रधानमंत्री बन गए. बता दें कि देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाने में लालू यादव ने किंगमेकर की भूमिका निभाई थी उस दौरान लालू कहने लगे थे कि मैं किंग तो नहीं बना लेकिन किंगमेकर जरूर बन गया. उस दौरान लालू बिहार के मुख्यमंत्री थे और दिल्ली में अपना दबदबा बनाए हुए थे, गौड़ा की सरकार में उन्होंने अपने कई नेताओं को मंत्री पद दिलाने का काम किया था. उस वक्त लालू की पार्टी के कई उम्मीदवार सांसद का चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे.
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राजनीति में आने से पहले क्या करते थे देवगौड़ा
एचडी देवगौड़ा राजनीति में कदम रखने से पहले निर्माण कार्यों का ठेका लिया करते थे. साथ ही कार्य के प्रति लगनशील गौड़ा विधानमंडल पुस्तकालय में पुस्तक और पत्रिकाएं पढ़ा करते थे ताकि अपने ज्ञान का विस्तार कर सकें. बता दें कि साल 1991 में हासन लोकसभा सीट से जनता पार्टी से चुनाव लड़ा और वह जीतकर केंद्र की राजनीति में आ गए. इसके बाद उन्होंने 1998 में जनता दल के टिकट चुनाव लड़ा और जीतने में कामयाब रहे. इसी बीच जनता दल में बिखराव हो गया और उन्होंने जनता दल सेकुलर (JDS) एक नई पार्टी बना दी, लेकिन साल 1999 में उन्होंने अपनी पार्टी से चुनाव लड़ा तो वह हार गए.
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Conclusion
मध्यम वर्गीय परिवार से संबंधित रखने वाले एचडी देवगौड़ा भारत के 11वें प्रधानमंत्री बने और उन्होंने यह पद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद ग्रहण किया. समानता और किसानों के उत्थान के समर्थक रहे थे. कर्नाटक में सिंचाई मंत्री के दौरान उन्होंने किसानों के लिए कई कार्य किए. इसके बाद वह कर्नाटक में चार विधायक का चुनाव जीते जिसके बाद वह दक्षिण भारत की राजनीति का एक मुख्य चेहरा बन गए थे. कर्नाटक में वह दो बार प्रतिपक्ष नेता भी रहे जहां उन्होंने अपने वक्तव्य से सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. आपको बताते चलें कि 91 वर्षीय एचडी देवगौड़ा राजनीति में सक्रिय हैं और जनता दल सेक्युलर (JDS) के अध्यक्ष हैं. साथ ही मोदी लहर के दौरान 2014 में उन्होंने एक बार फिर हासन सीट से जीत दर्ज की, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में देवगौड़ा तुमकुर सीट से हार गए. उन्हें भारतीय जनता पार्टी (BJP) के उम्मीदवार रहे जीएस बासवराज ने हरा दिया था. हालांकि इसके बाद वह राज्यसभा के माध्यम से संसद में दाखिल हो गए. बता दें कि देवगौड़ की शादी चेन्नम्मा नाम की महिला से हुई है और उनके उससे 4 बेटे और 2 बेटियां हैं. देवगौड़ा का एक बेटा कुमारस्वामी भी राज्य के दो बार मुख्यमंत्री रहे हैं. एक समय ऐसा भी था जब देवगौड़ा की नेतृत्व वाली पार्टी JDS BJP के खिलाफ मुखर होकर चुना लड़ती थी लेकिन बदलते वक्त में उन्होंने उसी पार्टी के साथ गठबंधन करके विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ा.
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