Introduction
SC Important Decision 2024 : हर साल की तरह इस साल भी सुप्रीम कोर्ट ने कई अहम फैसले दिए हैं. इस साल को खत्म होने में कुछ ही दिन बाकी हैं. ऐसे में इस आर्टिकल के जरिए बताएंगे कि आखिर इस साल सुप्रीम कोर्ट ने कौन-कौन से अहम फैसले लिए हैं. इस कड़ी में 1अगस्त, 2024 को ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की श्रेणियों में सब कैटेगरी बनाने की इजाजत दी. इसका उद्देश्य समाज में असमानता को दूर करना है, ताकि इसका फायदा सभी को बराबर मिल सके.
Table Of Content
- भेदभाव दूर करने पर दिया जोर
- केंद्रीय कानून मंत्री का बयान
- निजी संपत्ति पर दिया बड़ा फैसला
- एक्सपर्ट ने दी सलाह
- शैक्षणिक संस्थानों को लेकर दी राहत
- नागरिकता अधिनियम, 1955
- बिलकिस बानो का मुद्दा रहा काफी चर्चित
- चुनावी बॉन्ड से मची हलचल
- बुलडोजर कार्रवाई पर लिया एक्शन
भेदभाव दूर करने पर दिया जोर
पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने भेदभाव को दूर करने पर जोर दिया. उन्होंने आगे कहा कि सब कैटेगरी की जरूरत नहीं थी. पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के इस फैसले ने राजनीतिक बहस को जन्म दिया. इसका कुछ नेताओं ने समर्थन तो कुछ ने विरोध किया था.
केंद्रीय कानून मंत्री का बयान
इस मुद्दे पर बात करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा था कि बाबा साहब ने जो संविधान बनाया उसमें क्रीमी लेयर की कोई बात नहीं है. हम बाबा साहब के संविधान को ही मानेंगे. बाबा साहब ने संविधान में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का आरक्षण किया है. डायरेक्शन और ऑब्जर्वेशन में बहुत फर्क होता है. डिसीजन में और ऑब्जर्वेशन में भी फर्क होता है.
निजी संपत्ति पर दिया बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति को लेकर भी अहम फैसला सुनाया है. ओनर्स एसोसिएशन बनाम महाराष्ट्र सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार निजी संपत्तियों को सामुदायिक संसाधन के रूप में लेबल करके जब्त नहीं कर सकती. सुप्रीम कोर्ट का ये ऐतिहासिक फैसला किसी भी व्यक्ति के संपत्ति के अधिकार को बनाए रखता है और राज्य की मनमानी कार्रवाई से बचाता है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पूरे देश में संपत्ति मालिकों की जीत करार दिया गया. यहां तक कि कोर्ट ने सरकारों के लिए निजी संपत्तियां अधिगृहीत करने के लिए सख्त शर्तें रखीं हैं. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के दायरे से संबंधित एक मामले में सुनाया है. यह फैसला पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा, जस्टिस बीवी नागरत्ना,और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह ने लिया था. फैसला 7:2 के बहुमत से हुआ था.
एक्सपर्ट ने दी सलाह
इस पर बात करते हुए कानून के एक्सपर्ट संजय हेगड़े ने कहा कि समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार बांटा जाए कि सामान्य लक्ष्य को पूरा किया जा सके. मेरे पास कुछ संपत्ति हो सकती है. आपके पास कुछ संपत्ति हो सकती है, लेकिन वो आपकी व्यक्तिगत संपत्ति है. समाज की बेहतर सेवा करने के लिए उस धन का उपयोग या उसका बंटवारा करने की जरूरत हो. उदाहरण के लिए युद्ध के समय में हो सकता है कि हर किसी को योगदान करना होगा.
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शैक्षणिक संस्थानों को लेकर दी राहत
धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को बड़ी राहत दी. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी शैक्षणिक संस्थान की अल्पसंख्यक स्थिति कानून, स्थापना की तारीख या संस्थान के प्रशासन में मौजूद गैर-अल्पसंख्यक व्यक्तियों से प्रभावित नहीं होती है. उन्होंने आगे कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में दर्जा हासिल करने के लिए इसे सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय की ओर से ही स्थापित किया जाना चाहिए. इस फैसले ने साफ कर दिया कि अल्पसंख्यक संस्थान अपनी स्थिति बनाए रख सकते हैं. भले ही उन्हें गैर-अल्पसंख्यक सदस्य चला रहे हों. कोर्ट ने अपने फैसले में संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने पर जोर दिया.
चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के कुलपति फैजान मुस्तफा ने इस मामले में कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और देश के हजारों अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता था. हमें याद रखना चाहिए कि अल्पसंख्यक संस्थान सिर्फ धार्मिक अल्पसंख्यकों के नहीं हैं. हिंदुओं के सैकड़ों भाषाई अल्पसंख्यक संस्थान हैं. उन्होंने आगे कहा कि कुछ केंद्र शासित प्रदेशों और उत्तर-पूर्वी राज्यों में हिंदू भी धार्मिक अल्पसंख्यक हैं.
नागरिकता अधिनियम, 1955
साल 2024 में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से दिए गए ऐतिहासिक फैसलों में नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखना भी शामिल है. ये धारा साल 1966 और साल 1969 के बीच असम में आए भारतीय मूल के प्रवासियों को नागरिकता देती है. उच्चतम न्यायालय का ये फैसला उन लोगों के लिए राहत है जो लंबे समय से असम के सांस्कृतिक ताने-बाने का हिस्सा रहे हैं. जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस मनोज मिश्रा की तीन जजों की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि असम में प्रवासियों की स्थिति देश के बाकी हिस्सों की तुलना में अलग है. उन्होंने आगे कहा कि इस मुद्दे को विशेष रूप से संबोधित करने के लिए एक कानून बनाना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं होगा.
बिलकिस बानो का मुद्दा रहा काफी चर्चित
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से साल 2024 में लिए गए अहम फैसलों में बिलकिस बानो सामूहिक दुष्कर्म का फैसला काफी चर्चा में रहा है. आरोपियों को रिहा करने का मामला भी शामिल है. न्यायालय ने गुजरात सरकार के रिहाई के आदेश को रद्द कर दिया था. जिसके बाद से काफी हंगामा हुआ था. बिलकिस बानो सामूहिक दुष्कर्म के 11 दोषियों की रिहाई के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था.
क्या था मामला?
यहां बता दें कि 21 साल की उम्र में बिलकिस बानो का सामूहिक दुष्कर्म किया गया था. गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद साल 2002 में गुजरात में हुए दंगों के दौरान सामूहिक दुष्कर्म किया गया था. इस दौरान उनके परिवार के 7 सदस्यों को मार दिया गया था. इसमें 3 साल की बेटी भी शामिल थी. अदालत ने इस मामले में कुल 11 लोगों को दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.
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चुनावी बॉन्ड से मची हलचल
सुप्रीम कोर्ट की ओर से चुनावी बॉन्ड को लेकर भी अहम फैसला लिया गया. न्यायालय ने साल 2018 की चुनावी बॉन्ड योजना को अमान्य कर दिया, ताकि देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष तरह से चुनाव हो सकें और चुनावी चंदे में पारदर्शिता आ सके. पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की पीठ ने इस फैसले को सुनाया था. चुनावी बॉन्ड को लेकर डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि वोटर्स को पार्टियों की फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है. कोर्ट ने माना कि गुमनाम चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1) (ए) का उल्लंघन करता है.
बुलडोजर कार्रवाई पर लिया एक्शन
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई को लेकर भी फैसला सुनाया. ऐसे में मनमानी कार्रवाई पर ब्रेक लगा दिया है. अदालत ने अवैध बुलडोजर विध्वंस को रोकने, मौलिक अधिकारों को मजबूत करने, जवाबदेही को बढ़ाने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे. इन फैसलों ने सामूहिक रूप से न्याय और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखने में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को उजागर किया है. कोर्ट ने कहा कि मामला कोई भी हो आरोपी होने या दोषी ठहराए जाने पर भी घर तोड़ना सही नहीं है. इस पर सुप्रीम कोर्ट के वकील संजय हेगड़े ने कहा कि आप लोगों की संपत्तियों को सिर्फ इसलिए बर्बाद नहीं कर सकते, क्योंकि वे किसी आरोपी का है. इसने (सुप्रीम कोर्ट ने) आगे विस्तृत आदेश दिया है कि कैसे वैध विध्वंस किया जाना है. अतिक्रमण के मामले हो सकते हैं. विध्वंस की जरूरत है, लेकिन वहां भी आपको ये सभी सावधानियां बरतनी होंगी.
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