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मौत के वक्त बाबा साहेब के पास थी कितनी किताबें? जानिये संविधान निर्माता के बारे में 15 रोचक बातें

by JP Yadav
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मौत के वक्त बाबा साहेब के पास थी कितनी किताबें? जानिये संविधान निर्माता के बारे में 15 रोचक बातें - Live Times

Introduction

Bhimrao Ramji Ambedkar: संविधान का प्रारूप तैयार करने में कई प्रबुद्ध लोगों का योगदान था, लेकिन डॉ. भीमराव अंबेडकर को संविधान निर्माता माना जाता है. वह संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष थे. यह बात बहुत कम लोगों को पता होगी कि संविधान का प्रारूप तैयार करने की जिम्मेदारी अकेले अंबेडकर पर आ गई थी. यह बात प्रारूप समिति के एक सदस्य टीटी कृष्णामाचारी ने संविधान सभा के सामने स्वीकार भी की थी. टीटी कृष्णामाचारी ने नवंबर, 1948 में संविधान सभा में कबूला था कि मृत्यु, बीमारी और कुछ अन्य वजहों से कमेटी के अधिकतर सदस्यों ने प्रारूप तैयार करने में पर्याप्त योगदान नहीं दिया था. इसके चलते संविधान तैयार करने का बोझ डॉ. अंबेडकर पर आ गया. आखिरकार लंबी जद्दोजहद के बाद 26 जनवरी, 1950 को देश में संविधान लागू हुआ. इससे पहले 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने भारतीय संविधान को अपनाया था. इसके बाद 26 नवंबर वह तारीख बन गई, जिसे संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है. प्रत्येक वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस दरअसल संविधान के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है. डॉ. भीमराव अंबेडकर को संविधान निर्माता क्यों कहा जाता है? अंबेडकर पर अक्सर राजनीति क्यों शुरू हो जाती है? इस स्टोरी में जानेंगे हर सवाल का जवाब?

Table of Content

  • सिर्फ 2.3 साल में पूरी की 8 साल की पढ़ाई
  • कौन-कौन सी डिग्रियां की हासिल
  • अंबेडकर ने अकेले ही तैयार किया था संविधान का प्रारूप
  • यूं बदली अंबेडकर की जिंदगी
  • जानिये बाबा साहेब के बारे में रोचक और सच्ची बातें

सिर्फ 2.3 साल में पूरी की 8 साल की पढ़ाई

भीम राव अंबेडकर अपने माता-पिता की 14वीं और अंतिम संतान थे. उनके पिता सूबेदार रामजी मालोजी सकपाल थे. 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के महू में जन्मे भीम राव अंबेडकर पढ़ाई में काफी अच्छे थे. उनमें पढ़ाई के प्रति जुनून भी था, इसलिए उस दौर में सामाजिक तिरस्कार और आर्थिक विपन्नता के बावजूद उन्होंने पढ़ाई को तवज्जो दी. अंबेडकर को बचपन में ही छुआछूत का सामना करना पड़ा. शिक्षक उन्हें स्कूल में एक कोने में अकेले बैठाते थे. ऐसा कहा जाता है कि अंबेडकर स्कूल में जिस बोरे पर बैठते थे, उस बोरे को स्कूल की सफाई करने वाला नौकर भी नहीं छूता था. इसके पीछे का कारण उनका दलित समाज से होना था, क्योंकि वह उस दौर में अछूत ही माने जाते थे. कमोबेश यही हालात अब भी हैं. अंबेडकर की पहली शादी रमाबाई से सिर्फ 14 वर्ष की उम्र में हो गई थी. पत्नी ने हर कठिनाई में अंबेडकर का साथ दिया और पढ़ाई करने के प्रति हौसला भी बढ़ाया. डॉ. भीमराव अंबेडकर को सिर्फ समाज सुधारक या राजनीतिज्ञ के रूप में देखना-समझना गलत होगा, क्योंकि उन्हें शिक्षा के एक महान आदर्श के रूप में भी सराहना मिलती रही है.

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कौन-कौन सी डिग्रियां की हासिल

उन्होंने शुरुआती पढ़ाई यानी प्राथमिक शिक्षा एल्फिंस्टन स्कूल से की. उच्च शिक्षा की कड़ी में उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिज्ञ विज्ञान में डिग्री हासिल की. पढ़ाई की लगन ही उन्हें विदेश यानी अमेरिका और ब्रिटेन तक ले गई. विदेश जाकर उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से एमए और पीएचडी की. इसके बाद डॉ. अंबेडकर ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से मात्र दो साल तीन महीने में 8 साल की पढ़ाई पूरी कर ‘डॉक्टर ऑफ साइंस’ की डिग्री ली. हैरत की बात है कि यह डिग्री हासिल करने वाले वह दुनिया के प्रथम व्यक्ति थे.

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यह भी हैरत की बात है कि बचपन से ही पढ़ाई में बहुत होशियार डॉ. अंबेडकर ने कुल 32 शैक्षणिक डिग्रियां हासिल कीं जो एक उपलब्धि के तौर पर देखी जाती है. बॉम्बे यूनिवर्सिटी, कोलंबिया यूनिवर्सिटी, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, उस्मानिया यूनिवर्सिटी, नागपुर यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और बीएचयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों ने उनकी विद्वता को सराहा. इसके अलावा, डॉ. अंबेडकर ने देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से एलएलडी, डीएससी और डीलिट जैसी डिग्रियां प्राप्त कीं. डॉ. अंबेडकर को 9 भाषाओं का ज्ञान था. इसके अलावा मृत्यु के दौरान उनके पास 30 से 35 हजार किताबें थीं.

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अंबेडकर ने अकेले ही तैयार किया था संविधान का प्रारूप

यह किसी को सुनने में अजीब लगे लेकिन यह काफी हद तक सच है कि संविधान का प्रारूप तैयार करने की जिम्मेदारी अकेले अंबेडकर पर आ गई थी, लेकिन उन्होंने बिना सकुचाए इस जिम्मेदारी को उठाया. मिली जानकारी के अनुसार, संविधान सभा की प्रारूप समिति में कुल 7 लोगों को रखा गया था. इनमें से एक सदस्य बीमार हो गए. इसी दौरान 2 सदस्य दिल्ली के बाहर थे, जबकि एक विदेश में थे. वहीं, एक सदस्य ने किन्हीं वजहों से बीच में ही इस्तीफा दे दिया. सातवें सदस्य ने तो ज्वाइन ही नहीं किया. ऐसे में नई मुश्किल खड़ी हो गई. जाहिर है ऐसे में 7 सदस्यों वाली कमेटी में केवल अंबेडकर बचे और उनके कंधों पर संविधान का ड्राफ्ट बनाने की पूरी जिम्मेदारी आ गई.

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लेखक आकाश सिंह राठौर की किताब ‘आंबेडकर्स प्रिएंबल: ए सीक्रेट हिस्ट्री ऑफ़ द कॉन्स्टीट्यूशन ऑफ़ इंडिया’ में इसका जिक्र भी किया गया है. इसमें लिखा गया है कि संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी की बैठकों में सभी सदस्य मौजूद नहीं रहे. दूसरी ओर अंबेडकर ने शुगर और ब्लड प्रेशर से पीड़ित होने के बावूजद संविधान तैयार करने में अपना सबकुछ झोंक दिया. इतना ही नहीं, इसी किताब में लिखा गया है कि अंबेडकर ने करीब 100 दिनों तक संविधान सभा में खड़े होकर संविधान के पूरे ड्राफ्ट को समझाया और पूरी तरह से विचार विमर्श भी किया गया. डॉ. अंबेडकर को अगस्त, 1947 में भारत के संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. इसके बाद संविधान को तैयार करने में कुल 2 साल 11 महीने और 17 दिन लगे. वर्ष 1952 में उन्हें राज्यसभा के लिए नियुक्त किया गया. अपनी मृत्यु तक बाबासाहेब भीम राव अंबेडकर इस सदन के सदस्य रहे.

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यूं बदली अंबेडकर की जिंदगी

भीम राव अंबेडकर का जन्म दलित परिवार में हुआ था. ऐसे में उन्हें बचपन से ही बहुत से सामाजिक भेदभाव झेलने पड़े. पढ़ाई में बहुत अच्छा होने के बावजूद दलित वर्ग से होने के कारण उनके साथ बहुत ही बुरा बर्ताव किया जाता था. उन्हें प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक दलित होने के चलते बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा. जब वह छोटे थे तो छुआछूत जैसी शर्मनाक हरकत उनके साथ हुई थी.

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स्कूल में पढ़ाई के दौरान उनके साथ बहुत भेदभाव होता था. यहां तक कि पानी तक नहीं पीने दिया जाता था. हद तो तब हो जाती थी जब पानी के बर्तन तक नहीं छूने दिए जाते थे. इसके चलते उन्हें घंटों पानी के बिना गुजारा करना पड़ता था और प्यासा ही रहना पड़ता था. यह कम लोग जानते होंगे कि स्कूल में पढ़ाने वालों शिक्षक उन्हें क्लास के अंदर बैठने की इजाजत नहीं देते थे. ऐसे में उन्हें बाहर अलग से एक चटाई पर बैठाया जाता था, जहां पर वह पढ़ाई करते थे. अच्छी बात यह थी कि भीम राव में पढ़ाई के प्रति बहुत चाव था और वह इसी जुजून के चलते सारे भेदभाव सहते रहे.

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जानिये बाबा साहेब के बारे में रोचक और सच्ची बातें

  • भीमराव अंबेडकर अपने माता-पिता की 14वीं और अंतिम संतान थे.
  • पिता सूबेदार रामजी मालोजी सकपाल ब्रिटिश सेना में सूबेदार थे.
  • बाबासाहेब के पिता संत कबीर दास के अनुयायी थे और एक शिक्षित व्यक्ति थे. इसीलिए उन्होंने भीम राव को शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रेरित भी किया.
  • भीमराव रामजी अंबेडकर लगभग दो वर्ष के थे तब उनके पिता नौकरी से रिटायर्ड हो गए. वहीं, 6 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी मां को भी खो दिया.
  • स्कूली शिक्षा के दौरान भीम राव अस्पृश्यता के शिकार हुए.
  • वर्ष 1907 में मैट्रिक की परीक्षा पास होने के बाद उनकी शादी एक बाजार के खुले छप्पर के नीचे हुई.
  • वर्ष 1913 में डॉ. भीम राव अंबेडकर को हायर एजुकेशन के लिए अमेरिका जाने वाले एक विद्वान के रूप में चुना गया. यह उनके शैक्षिक जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ.
  • विदेश से पढ़ाई करके डॉ अंबेडकर मुंबई लौटे तो राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में सिडेनहैम कॉलेज में अध्यापन करने लगे.
  • उन्होंने लंदन में अपनी कानून और अर्थशास्त्र की पढ़ाई फिर से शुरू करने के लिए अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इसके लिए कोल्हापुर के महाराजा ने उन्हें आर्थिक मदद दी.
  • 1923 में, उन्होंने डीएससी डिग्री के लिए अपनी थीसिस पूरी की, जिसका नाम था- ‘रुपये की समस्या : इसका उद्भव और समाधान’.
  • वर्ष 1923 में वकीलों के बार में बुलाया गया.
  • 03 अप्रैल, 1927 को उन्होंने दलित वर्गों की समस्याओं को संबोधित करने के लिए ‘बहिस्कृत भारत’ समाचारपत्र की शुरुआत की.
    वर्ष 1928 में वह गवर्नमेंट लॉ कॉलेज (बॉम्बे) में प्रोफेसर बने.
  • 01 जून, 1935 को वह उसी कॉलेज के प्रिंसिपल बने. वर्ष 1938 में अपना इस्तीफा देने तक उसी पद पर बने रहे.
  • वर्ष 1936 में उन्होंने बॉम्बे प्रेसीडेंसी महार सम्मेलन को संबोधित किया और हिंदू धर्म का त्याग करने की वकालत की.
  • 15 अगस्त, 1936 को दलित वर्गों के हितों की रक्षा करने के लिए ‘स्वतंत्र लेबर पार्टी’ का गठन किया.
  • वर्ष 1938 में कांग्रेस ने अछूतों के नाम में बदलाव करने वाला एक विधेयक प्रस्तुत किया. अंबेडकर ने इसका विरोध किया, क्योंकि उन्हें यह रास्ता ठीक नहीं लगा.
  • 06 दिसंबर, 1956 को उनकी मृत्यु हो गई. डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि को पूरे देश में प्रत्येक वर्ष ‘महापरिनिर्वाण दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.

Conclusion

संविधान तैयार करने में भले ही कई प्रबुद्धजनों का योगदान हो, लेकिन इसका श्रेय बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर को ही जाता है. यही वजह है कि उन्हें संविधान निर्माता कहा जाता है. वर्ष 1990 में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था.

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