Home Entertainment Zakir Hussain ने तय किया तबला वादक से ‘उस्ताद’ तक का सफर, जानें उनकी खास बातें

Zakir Hussain ने तय किया तबला वादक से ‘उस्ताद’ तक का सफर, जानें उनकी खास बातें

by Preeti Pal
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zakir hussain

17 December, 2024

Introduction

Zakir Hussain : जाकिर हुसैन की गिनती महान तबला वादकों में की जाती है. यही वजह है कि उनके नाम के आगे उस्ताद लगाया जाता है. वैसे उनका एक तबला वादक से उस्ताद जाकिर हुसैन बनने का सफर काफी दिलचस्प है. महज 12 साल की उम्र में अमेरिका को अपने तबले की धुन के जरिये मंत्र मुग्ध करने वाले जाकिर हुसैन को ये कला विरासत में मिली, जिसे उन्होंने मरते दम तक सहेज कर रखा. तबले की थाप पर संगीत की धुन रचने वाले जाकिर हुसैन ने अपने जीवन के 73 सालों में पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे सम्मान अपने नाम किए. घुंघराले बालों के साथ हंसमुख चेहरा जाकिर हुसैन का अलग ही व्यक्तित्व दर्शाता था. जो भी उनसे मिलता प्रभावित होता और अगर बात कर ले तो उनका दीवाना हो जाता था.

यही वजह है कि उस्ताद जाकिर हुसैन के सिर्फ फैन्स और दीवाने ही मिलेंगे लेकिन आलोचक नहीं. 15 दिसंबर, 2024 को अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में महान तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन ने दुनिया को अलविदा कह दिया. जाकिर हुसैन फेफड़ों से जुड़ी एक गंभीर बीमारी और हाई ब्लड प्रेशर के मरीज थे. भारतीयों की नजर में ‘वाह उस्ताद’ का रुतबा हासिल कर चुके जाकिर हुसैन अब इस दुनिया में नहीं रहे. ऐसे में हम आपके लिए उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से लेकर आए हैं, जिनके बारे में आप शायद ही जानते होंगे.

Table of Content

  • जाकिर हुसैन का बचपन
  • जाकिर का हेयर स्टाइल
  • तबले से करते थे बात
  • जब सीखी गणेश वंदना
  • 5 रुपये से 5 लाख तक ली फीस
  • विकेटकीपिंग करते थे जाकिर
  • मुगल-ए-आज़म
  • फिल्मों में भी किया काम

जाकिर हुसैन का बचपन

जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च, 1951 को मुंबई में हुआ था, जो तब बोम्बे हुआ करता था. उनके पिता उस्ताद अल्ला रक्खा खान भी एक मशहूर तबला वादक थे. मुंबई में पले-बढ़े होने के कारण जाकिर हुसैन को हर तरह का संगीत सुनने का मौका मिला. साथ ही उनके पिता भी दुनिया में घूमते थे और तरह-तरह के टेप जाकिर को सुनने के लिए देते थे. ऐसे में जाकिर को कम उम्र में ही काफी एक्सपोज़र मिलने लगा. वैसे इसका श्रेय जाकिर हुसैन अपने पिता को ही देते हैं. पिता के सहयोग से 12 साल की उम्र में जाकिर हुसैन गुलाम अली, आमिर खां और ओंकारनाथ ठाकुर जैसे बड़े कलाकारों के साथ तबला बजा रहे थे. मुंबई के माहिम में सेंट माइकल स्कूल से पढ़ाई करने के बाद जाकिर हुसैन ने सेंट जेवियर कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरी की. 1973 में जाकिर हुसैन अपना पहला एलबम लेकर आए, जिसका नाम था ‘लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड’. इसके बाद उन्होंने खुद के लिए संगीत की दुनिया में एक अलग जगह बनाई.

जाकिर का हेयर स्टाइल

जाकिर हुसैन का हेयर स्टाइल भी काफी पॉपुलर हुआ था. हैरानी की बात है कि उन्होंने इसके बारे में कभी सोचा ही नहीं था. लोगों के साथ-साथ मीडिया ने ये एहसास कराया तो उन्होंने भी अपना हेयर स्टाइल नोटिस किया. अपने इस हेयर स्टाइल को लेकर उनका कहना था कि काम पर जाने की जल्दी में उन्हें बाल सुखाने और उन्हें कंघी करने का मौका ही नहीं मिलता था. वो नहा धोकर ऐसे ही घर से बाहर निकल जाया करते थे. अपने एक इंटरव्यू में जाकिर ने कहा था कि उन दिनों अमेरिका में लंबे बालों और दाढ़ी का हिप्पी स्टाइल चल रहा था. हालांकि, तब मैंने इस पर ध्यान नहीं दिया. जाकिर ने बताया कि उन्हीं दिनों ताज चाय वालों के साथ मेरा कॉन्ट्रैक्ट हुआ, जिसमें उन्होंने शर्त रखी कि आप बाल नहीं कटवाएंगे. कह सकते हैं कि ये मेरी मजबूरी भी बन गई थी.

तबले से करते थे बात

जाकिर हुसैन की संगीत के लिए दीवानगी देखिए कि वो अपने तबले से बातचीत करते थे. वो अक्सर उससे पूछते थे कि तुम्हें कोई तकलीफ़ तो नहीं. उसकी सफाई का काम जाकिर खुद किया करते थे. दरअसल, बचपन में एक बार जाकिर पंडित किशन महाराज का कार्यक्रम सुनने गए जो बिरजू महाराज के साथ तबला बजा रहे थे. जब किशन महाराज स्टेज पर जा रहे थे तब जाकिर ने उन्हें गुड लक कहा. इसके जवाब में किशन महाराज ने कहा- ‘देखते हैं बेटा आज साज क्या कहेगा.’ उस छोटी सी उम्र में जाकिर हुसैन को इन शब्दों का मतलब नहीं पता था, लेकिन बाद में एहसास हुआ कि साज की भी जुबान है. अगर वो नहीं बोलेगा तो जो चाहे कर लो, कुछ नहीं होगा.

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जाकिर हुसैन संगीत को सरस्वती का वरदान, शिवजी का डमरू और कृष्णा की बांसुरी कहते थे. शुरुआती दिनों में जाकिर हुसैन ट्रेन से यात्रा किया करते थे. पैसे बचाने के लिए वो जनरल कोच में चढ़ जाते थे. जब भी सीट मिलती तो अखबार बिछाकर वहीं सो जाते थे. तबले पर किसी का पैर न लगे, इसलिए पूरे सफर में उसे अपनी गोद में लिए रहते थे. किसी छोटे बच्चे की तरह जाकिर हुसैन अपने तबले को गोद में उठाए रखते थे. यह तबले के प्रति उनकी दीवानगी थी कि उनकी सोशल मीडिया पर अधिकतर फोटोज तबले के साथ ही मिलेंगीं. यह बहुत कम लोग जानते होंगे कि वह अपने तबले से बर्तन और रेलगाड़ी तक की आवाज निकालते थे.

जब सीखी गणेश वंदना

जाकिर हुसैन सुबह 3 बजे उठकर पिता के साथ 6 बजे तक रियाज किया करते थे. बचपन में सुर, लय और ताल के साथ जाकिर ने कई श्लोक और मंत्र भी सीखे. पिता ने उन्हें सरस्वती और गणेश वंदना भी सिखाई. जहां उनके पिता बेटे को एक बड़ा संगीतकार बनाना चाहते थे तो वहीं दूसरी तरफ जाकिर हुसैन की मां बीवी बेगम चाहती ही नहीं थीं कि उनका बेटा तबला बजाये. वो तो बेटे को इंजीनियर या डॉक्टर बनते देखना चाहती थीं, लेकिन तबला और जाकिर एक-दूजे के लिए ही बने थे. दोनों का साथ ऐसा बना कि जिंदगी भर नहीं टूटा.

5 रुपये से 5 लाख तक ली फीस

मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन को संगीत में महारत हासिल हो गई थी. उन्होंने बचपन से ही पिता से तबला वादन के गुर सीखे. पढ़ाई खत्म करने से पहले ही कंसर्ट करने लगे. किसी को भी यह जानकर ताज्जुब हो सकता है कि उन्होंने 12 साल की उम्र में ही अमेरिका में अपनी पहली परफॉर्मेंस दी थी. इसके लिए जाकिर हुसैन को सिर्फ 5 रुपये मिले थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस छोटी सी शुरुआत के बाद उनका नाम दुनियाभर में मशहूर हो गया था. एक समय जब 5 रुपये परफॉर्मेंस के लिए मिले थे, लेकिन दौर ऐसा भी आया जब उनकी फीस 5-10 लाख रुपये तक पहुंच गई. कुल 12 फिल्मों में अभिनय करने वाले जाकिर हुसैन ने 5 ग्रैमी अवॉर्ड्स अपने नाम किए.

विकेटकीपिंग करते थे जाकिर

उस्ताद जाकिर हुसैन का बचपन में मन क्रिकेट खेलने में खूब रमता था. स्कूल के दिनों में जाकिर हुसैन टीम में बतौर विकेटकीपर खेलते थे. हालांकि, उनके मन में सिर्फ संगीत ही बसा था. उसी के साथ आगे बढ़ते हुए जाकिर हुसैन ने वो मुकाम हासिल किया जो भारत में किसी संगीतकार के पास नहीं है. 1988 में जब जाकिर हुसैन को पद्म श्री अवॉर्ड दिया गया था तब उनकी उम्र सिर्फ 37 साल थी. फिर साल 2002 में उन्हें संगीत की दुनिया में अपने योगदान के लिए पद्म भूषण से नवाजा गया. उन्हें 1992 और 2009 में म्यूजिक की दुनिया के सबसे बड़े सम्मान ग्रैमी अवॉर्ड से नवाजा गया. वर्ष 2023 जाकिर हुसैन को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया था.

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मुगल-ए-आज़म

के. आसिफ की फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ में जाकिर हुसैन के पिता अल्लाह रक्खा म्यूजिक कंपोज कर रहे थे. उस वक्त जाकिर को सलीम का किरदार ऑफर किया गया था. दिलीप कुमार को भी इस पर कोई आपत्ति नहीं थी, मगर जाकिर हुसैन के पिता इसके लिए राजी नहीं हुए. उनका मानना था कि इससे जाकिर अपने काम पर ध्यान नहीं दे पाएगा. पिता की एक ना की वजह से जाकिर हुसैन हिंदी सिनेमा की कल्ट फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ का हिस्सा बनते-बनते रह गए. हालांकि, उसके बाद जाकिर हुसैन ने 12 फिल्मों में काम किया.

फिल्मों में भी किया काम

वैसे आपको जानकर हैरानी होगी कि जाकिर हुसैन ने कुछ फिल्मों और अमेरिकी टेलीविजन शोज में भी काम किया. साल 1983 में रिलीज हुई फिल्म ‘हीट एंड डस्ट’ में उन्होंने शशि कपूर के साथ काम किया. इसके बाद जाकिर हुसैन 1998 में रिलीज हुई फिल्म ‘साज’ में भी दिखाई दिए. इस फिल्म में उनके साथ शबाना आजमी लीड रोल में थीं. ‘द परफेक्ट मर्डर’ (1988), ‘मिल बीट्टीज चिल्ड्रन’ (1992), ‘जाकिर एंड हिट फ्रेंड्स’ (1998) और ‘मंकी मैन’ जैसी 12 फिल्मों में काम करने के बाद जाकिर इस नतीजे पर पहुंचे कि वो एक्टर की बजाय अच्छे तबला वादक हैं.

Conclusion

वर्ष 2016 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ऑल स्टार ग्लोबल कॉन्सर्ट का आयोजन किया. इस कॉन्सर्ट में हिस्सा लेने वाले जाकिर हुसैन पहले भारतीय संगीतकार थे. 1979 से 2007 तक ज़ाकिर हुसैन अलग-अलग इंटरनेशनल समारोहों और एलबमों में अपने तबले का दम दिखाते रहे. यही वजह है कि वो जितने मशहूर भारत में रहे उतने ही विदेश में भी रहे. 73 साल की उम्र में जाकिर हुसैन ने इस दुनिया को अलविदा कह अपने करोड़ों फैन्स का दिल तोड़ दिया. भले ही उस्ताद जाकिर हुसैन अब हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन वो सदियों तक लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे.

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