UP Politics: पीड़ितों ने खुद दिल्ली पहुंचकर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और सांसद प्रियंका गांधी से मुलाकात कर नई सियासी अटकलों को हवा दे दी है.
UP Politics: उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से सियासी सरगर्मी बढ़ गई है. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के रिश्तों में संभल कांड से एक नया मोड़ लाता दिख रहा है. दरअसल, संभल में जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान भड़की हिंसा के पीड़ितों से मिलने के लिए दोनों दलों को प्रतिनिधियों ने कोशिश की.
हालांकि, उन्हें प्रशासन ने रोक दिया. अब पीड़ितों ने खुद दिल्ली पहुंचकर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और सांसद प्रियंका गांधी से मुलाकात कर नई सियासी अटकलों को हवा दे दी है. सियासी गलियारों में चर्चा शुरू हो गई है कि क्या मुस्लिम समुदाय के लोगों ने समाजवादी पार्टी की बजाए कांग्रेस पर भरोसा जताया है और संभल मामले में समाजवादी पार्टी पिछड़ रही है.
अखिलेश यादव ने चर्चा न करने की अटकलें
दरअसल, 24 नवंबर को संभल के शाही जामा मस्जिद के सर्वे को हिंसा भड़क गई थी. हिंसा में कुल पांच लोगों की मौत हो गई थी. घटना के बाद लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और सांसद प्रियंका गांधी ने 4 दिसंबर को संभल जाने की कोशिश की. हालांकि, दोनों ही नेताओं को दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमा गाजीपुर बॉर्डर पर रोक दिया गया था.
इससे पहले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी के प्रतिनिधिमंडल को संभल भेजने का एलान किया था. इस प्रतिनिधिमंडल को भी प्रशासन ने रास्ते में रोक दिया. विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रसाद पांडे समेत सभी नेताओं लखनऊ में ही रोक लिया गया था. अब सियासी हलकों में चर्चा इस बात की है कि कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के साथ विचार-विमर्श किए बगैर ही राहुल गांधी के संभल जाने का कार्यक्रम घोषित कर दिया था.
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मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर हार भी बनी वजह
इस बात की चर्चा जोरों पर थी कि राहुल गांधी अचानक से 12 दिसंबर को हाथरस भी पहुंच गए और दुष्कर्म पीड़िता के परिवार से मुलाकात कर ली. दावा किया गया कि कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी को विश्वास में लिए बिना ही संभल की तरह ही राहुल गांधी का हाथरस दौरा प्रस्तावित था. राजनीति विश्लेषकों ने भी इस मामले पर बड़ा दावा किया है. उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपने बलबूते ही अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रही है.
वहीं, संभल के हिंसा के पीड़ितों से मुलाकात ने इस दावे को और पुख्ता कर दिया है. ऐसे में राजनीति विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस का अल्पसंख्यकों को लेकर समाजवादी पार्टी के साथ सीधा संघर्ष होगा. गौरतलब है कि हाल में हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर भी हार गई. इस हार के बाद अखिलेश यादव की भी बेचैनी बढ़ी हुई है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह अटकलें यूपी की सियासत में क्या नया रंग दिखाती हैं.
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