Home Regional किसने कराया था अयोध्या का दोबारा निर्माण ? क्या है जैन मत से शहर का कनेक्शन; यहां पढ़िये पूरी स्टोरी

किसने कराया था अयोध्या का दोबारा निर्माण ? क्या है जैन मत से शहर का कनेक्शन; यहां पढ़िये पूरी स्टोरी

by Live Times
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Ayodhya: अयोध्या एक पौराणिक नगर है. बहुत से पुराणों में इस पवित्र नगरी की उत्पत्ति, इसका सौंदर्य, इसके धार्मिक महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया है. अयोध्या का अर्थ है – जिससे कोई युद्ध ना कर सके अर्थात ‘अजेया’.

02 December, 2024

Ayodhya: अयोध्या एक पौराणिक नगर है. बहुत से पुराणों में इस पवित्र नगरी की उत्पत्ति, इसका सौंदर्य, इसके धार्मिक महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया है. अयोध्या का अर्थ है – जिससे कोई युद्ध ना कर सके अर्थात ‘अजेया’. कहा जाता है कि “प्राचीन प्रसिद्धि और महान गुणों वाला अयोध्या का पवित्र नगर ब्रह्मा द्वारा बनाया गया था. इस नगर को ब्रह्मा ने अपने सबसे बड़े पुत्र को सांसारिक निवास स्थान के रुप में दिया था. कहते हैं कि पृथ्वी क्षणभंगुर है अतः ब्रह्मा ने स्वयं के सुदर्शन चक्र में इस नगर की नींव रखी. इसी कारण इस नगर का आकार भी उसी प्रकार का है. इसी क्षेत्र पर भगवान के पुत्र हेतु एक आलीशान राजधानी बसाई गई थी. उसे मंदिरों, महलों, सड़कों, मण्डियों, उपवनों और फलों से लदे पेड़ों से सज्जित किया जो आभूषणों के जैसे जगमगा रहे थे एवं पक्षियों की कलरव से गुंजायमान थे.

प्रसन्न रहती थी प्रजा

जिस तरह से यहां का दिव्य राजा था उसी के उपयुक्त अयोध्या की प्रजा भी थी. यहां सभी पुरुष एवं महिलाएं असाधारणरुप से दिव्य एंव पवित्र थे. प्रजा की पवित्रता के फलस्वरुप उन्हे हाथियों, बैलों, घोड़ों और रथों के रुप में असंख्य धन-सम्पदा प्रदान की गयी. इसकी सीमाएं सरयू नदी, टोंस और लक्ष्मण कुंड से पूर्व और पश्चिम में एक योजन तक तय की गई थीं. वैसे मान्यता ये भी है कि राजा दशरथ के बाद अयोध्या का शासन भगवान श्रीरामचंद्र को मिला. श्रीराम और सीता के छोटे पुत्र कुश ने अयोध्या का पुन: निर्माण करवाया था. यही वजह है कि अयोध्या का इतिहास धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ा हुआ है. यह भी बता दें कि अयोध्या जैन मत से जुड़े लोगों के लिए भी खास महत्व रखता है.

सभी पापों से मुक्त होने का द्वार

मान्यता है कि अयोध्या के दर्शन मात्र से सारे सांसारिक तुच्छ पाप दूर हो जाते हैं. इस नगर तक शरीर पहुंचने मात्र से घोर से घोर पापों का प्रायश्चित हो जाता है. सरयू नदी का पवित्र जल सभी पापों से मुक्ति दे देता है. इसकी पूजा करने से सारे सांसारिक संकटों का निवारण हो जाता है. अयोध्या नगर में निवास करने से आत्मा को देहांतरण के दर्द से छुटकारा मिल जाता है. कहतें हैं कि भारतवर्ष में सात पवित्र स्थान विष्णु के शरीर से बने हैं और उन स्थानों में सबसे प्रमुख स्थान अयोध्या है.

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पुराणों में उल्लिखित है कि अयोध्या को पृथ्वी पर उपस्थित सबसे पवित्र स्थान माना जाता है. कहते हैं जो इस स्थान पर सद्गति को प्राप्त होता है उसे सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होती है एवं उसे एक हज़ार जन्मों के पापों की क्षमा मिलती है.

पूर्णिमा के दिन का महत्व

स्वर्ग के द्वार में सात ‘हर’ या विष्णु प्रतिनिधि हैं- गुप्त हर, चंद्र हर, चक्र हर, विष्णु हर, धर्म हर, बेलमा हर, पुन हर और
चंद्र हर को भगवान विष्णु ने चंद्रमा के सम्मान में निर्धारित किया. पूर्णचन्द्र अर्थात जेठ की पूर्णिमा के दिन जो चन्द्र हर द्वार के दर्शन करता है स्नानादि के पश्चात उपवास करता है और प्रार्थना करता है उसके पाप धुल जाते हैं और उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है.

नवमी का स्नान

एकमात्र अन्य महत्वपूर्ण हर ‘धर्म हर’ है, लेकिन दो हरों के बीच नागेश्वर है. नदी पर ‘धर्म हर’ के सामने जानकी घाट है, जहां वे सावन के अर्धचंद्र की तीज पर स्नान करते हैं और इसके ठीक नीचे राम-घाट है, जहां स्वर्गद्वार जुडते हैं; इसके पूरे दक्षिणी भाग को अयोध्या पीठ कहा जाता है. राम घाट के पीछे राम सभा है, जहां माना जाता है कि राम चंद्र अपने भाइयों से घिरे सिंहासन पर विराजमान होते थे. इसके दक्षिण में धवन कुंड है, जिसमें चैत की नवमी को जो स्नान करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है.

जानकी जी की रसोई

शहर के मध्य में महान राम कोट, राम का किला है, जिसके द्वार उन अमर वानरों द्वारा संरक्षित हैं जो श्रीलंका से लौटने पर उनके साथ थे. इसके पश्चिमी भाग में श्री राम की जन्म भूमि या जन्म स्थान है. राम-नौमी पर यहां की यात्रा करने और स्नान करने से, तीर्थयात्रियों को आत्माओं के आवागमन की पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है. राम के जन्म-स्थान के ठीक बगल में जानकी जी की रसोई है. यह सामान्य भारतीय चूल्हे के आकार की है जिसे हमेशा भोजन से भरा हुआ माना जाता है.

मान्यता है कि इसके दर्शन से हर इच्छा पूर्ण होती है. जानकी की रसोई के निकट ही कैकयी का घर है, जहां भरत जी का जन्म हुआ था. दूसरी ओर सोमित्र का स्थान है, जहां लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ था. इसके दक्षिण-पूर्व में सीता कूप है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका पानी पीने से बुद्धि मिलती है. हनुवंत कुंड के नीचे सोबरना खार है, जिसे लोग सोना-खर कहते हैं. ये वो इतिहास है जो हमारे ऐतिहासिक पुराणों में दिया गया है. नये मंदिर के बन जाने पर अयोध्या आने वाले श्रधालुओं को खूब लाभ मिलेगा. अयोध्या नगरी के दर्शन मात्र से मनुष्य पुण्य फल का भागी होता है.

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