UP Board of Madarsa Education Act-2004: CJI डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ इस पर फैसला सुनाएगी.
UP Board of Madarsa Education Act-2004: उत्तर प्रदेश मदरसा कानून को लेकर मंगलवार (5 नवंबर) को अहम सुनवाई होने वाली है.
उत्तर प्रदेश मदरसा कानून को असंवैधानिक घोषित करने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट अपना अहम फैसला सुना सकता है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ इस पर फैसला सुनाएगी.
UP Board of Madarsa Education Act-2004: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लगाई रोक
दरअसल, 22 मार्च को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस उत्तर प्रदेश मदरसा कानून को असंवैधानिक और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला घोषित किया था.
इसके साथ ही हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार को मदरसे में पढ़ने वाले छात्रों को औपचारिक स्कूली शिक्षा प्रणाली में शामिल करने का निर्देश दिया था.
इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 8 याचिकाएं दाखिल की गई थी. इस पर सुनवाई करते हुए 5 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने UP बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट-2004 पर रोक लगा दी थी.
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रूख अपनाते हुए केंद्र की NDA सरकार और उत्तर प्रदेश की सरकार से जवाब भी तलब किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी कि इससे 17 लाख छात्रों पर असर पड़ेगा. छात्रों को दूसरे सरकारी स्कूलों में ट्रांसफर करने का आदेश देना ठीक नहीं है.
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मदरसों की शिक्षा व्यवस्था को ठीक करना था उद्देश्य
सुनवाई के दौरान CJI ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा था कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है जियो और जीने दो. उन्होंने यह भी कहा था कि मदरसों को नियंत्रित करना राष्ट्रीय हित में है.
अल्पसंख्यकों के लिए अलग-थलग जगह बनाकर भारत देश की सैकड़ों सालों की पुरानी मिलीजुली संस्कृति को खत्म नहीं किया जा सकता है. सुनवाई के दौरान भारत को संस्कृतियों और धर्मों के मिश्रण के रूप में संरक्षित करने का भी आह्वान किया गया था.
साथ ही कहा था कि देश में धार्मिक शिक्षा कभी भी अभिशाप नहीं रहे हैं. बता दें कि UP बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट-2004 उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से एक पारित कानून था.
इसे पूरे राज्य के मदरसों की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के लिए बनाया गया. इस कानून के तहत मदरसों को बोर्ड से मान्यता प्राप्त करने के न्यूनतम मानकों को पूरा करना जरूरी किया गया था.
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