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खैर सीट पर उसी को मिली जीत जिसके हुए जाट, BSP ने तोड़ दिया था जाट उम्मीदवारों की जीत का ट्रेंड

by Rashmi Rani
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UP By-Elections: खैर सीट पर उसी को मिलेगी जीत जिसके हुए जाट

UP By-Elections: यूपी की 9 विधानसभा सीटों पर 13 नवंबर में उपचुनाव होने जा रहा है. ऐसे में सभी सियासी दल गठबंधन की राजनीति के साथ आगे बढ़ रहे हैं.

UP By-Elections: यूपी की 9 विधानसभा सीटों पर 13 नवंबर में उपचुनाव होने जा रहा है. ऐसे में सभी सियासी दल गठबंधन की राजनीति के साथ आगे बढ़ रहे हैं. वहीं, उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ जिले की खैर विधानसभा सीट पर बड़ा सियासी उलटफेर देखने को मिल रहा है. BJP ने इस सीट पर कैंडिडेट बनाने के लिए तीन लोगों का नाम हाईकमान को भेज दिया है. यूं तो यह सीट सुरक्षित है, लेकिन जाट वोटर जिसके साथ खड़े हो जाते हैं जीत उसी के खाते में जाती है. यही वजह है कि इस सीट RLD का कब्जा रहा है.

SP नहीं खोल पाई खाता

इस सीट पर आज तक समाजवादी पार्टी अपना खाता नहीं खोल पाई है. लेकिन हालिया लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखते हुए थोड़ी उम्मीद जागी है. खैर सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. BJP के अनूप प्रधान ने पिछले चुनाव में एकतरफा जीत हासिल की थी. लेकिन हाथरस लोकसभा सीट जीतने के बाद उन्होंने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया और ये सीट खाली हो गई. BJP नेताओं को भरोसा है कि पार्टी ना सिर्फ खैर में, बल्कि यूपी की आठ विधानसभा सीट जीतेगी.

कांग्रेस मांग रही 5 सीट

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि गठबंधन का लिहाज करते हुए समाजवादी पार्टी खैर सीट कांग्रेस को दे सकती है. पिछले चुनावों में ये सीट SP के लिए कमजोर साबित हुई थी. हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद SP ने उत्तर प्रदेश की 10 में से छह विधानसभा सीट पर उम्मीदवारों के नाम का एलान किया है. कांग्रेस उप-चुनाव में पांच सीट मांग रही है. उत्तर प्रदेश की 10 में से नौ विधानसभा सीट पर 13 नवंबर को उप-चुनाव होंगे. वहीं, मिल्कीपुर सीट के लिए उप-चुनाव की तारीख का एलान नहीं किया गया है.

जाट उम्मीदवारों का रहा कब्जा

आजादी के बाद से इस सीट पर जाट उम्मीदवारों का कब्जा रहा है. 1967, 1974 और 1980 में कांग्रेस को इस सीट से जीत मिली. 1985 में लोकदल और 1989 में जनता दल ने जीत अपने नाम की. साल 1991 में पहली बार BJP का खाता खुला और चौधरी महेंद्र सिंह को इस सीट पर जीत मिली. हालांकि 1993 में ये सीट वापस से जनता दल के पास चली गई. 1996 में जब इस सीट पर चुनाव हुए तो BJP ने चौधरी चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती को उम्मीदवार बनाया और जीत अपने नाम कर ली.

BSP ने तोड़ दिया था ट्रेंड

इस सीट पर सबसे बड़ा बदलाव 2002 में देखने को मिला, जब जाट उम्मीदवारों की जीत का ट्रेंड BSP ने तोड़ दिया. BSP के प्रमोद गौड़ ने इस सीट से जीत हासिल की. ब्राह्मण-दलित समीकरण से BSP ने पूरा खेल ही पलटकर रख दिया. हालांकि 2007 में RLD ने ये सीट अपने नाम कर ली. 2008 में यह सीट सुरक्षित हो गई, लेकिन ये सीट RLD की ही रही. 2012 के चुनाव में RLD को ही जीत मिली. इस सीट पर साल 2017 में करीब 23 साल बाद कमल खिला था. अनूप प्रधान ने जीत अपने नाम कर ली और अगले चुनाव में भी उन्हीं को ही जीत मिली.

सीट को जाटलैंड भी कहा जाता है

इस सीट पर लगभग 1.15 लाख जाट और 60 हजार से अधिक ब्राह्मण वोटर और 70 जाटव हैं. एससी वोटरों की बात करें तो उनकी संख्या 1 लाख से अधिक है. सुरक्षित सीट होने के कारण सभी पार्टियां इस सीट पर दलित उम्मीदवार ही उतारते हैं. ऐसे में गैर-दलित वोटरों इस सीट पर अहम भूमिका निभाते हैं. इस सीट पर 35 हजार से अधिक वैश्य और 30 हजार के करीब मुस्लिम वोटर हैं. जाट वोटरों की संख्या ज्यादा होने के कारण इस सीट को जाटलैंड भी कहा जाता है. इस उपचुनाव में अहम बात यह है कि जाटों की सियासत करने वाली RLD फिलहाल BJP के साथ है तो BJP के लिए जीत का रास्ता आसान होता नजर आ रहा है.

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