Home National Citizenship Act-1955: नागरिकता देने वाले कानून को SC ने माना वैध, जानें क्या है पूरा मामला

Citizenship Act-1955: नागरिकता देने वाले कानून को SC ने माना वैध, जानें क्या है पूरा मामला

by Divyansh Sharma
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Citizenship Act-1955: Supreme Court ने नागरिकता अधिनियम-1955 यानी Citizenship Act-1955 की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है.

Citizenship Act-1955: असम (Assam) में नागरिकता देने के मामले में बड़ी जानकारी सामने आ रही है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने नागरिकता अधिनियम-1955 यानी Citizenship Act-1955 की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है.

बता दें कि यह धारा असम समझौते को मान्यता देती है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने 4:1 से यह फैसला सुनाया है.

Citizenship Act-1955: 6A सुरक्षा के लिए जरूरी

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई. चंद्रचूड़ ( DY Chandrachud), जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस मनोज मिश्रा की 5 जजों वाली संविधान पीठ ने फैसला सुनाया.

फैसला सुनाते हुए पीठ ने कहा कि असम समझौता बढ़ते प्रवास के लिए बनाया गया था. पहले यह राजनीतिक थी, जिसमें कानूनी समाधान के लिए धारा 6A को जोड़ा गया.

CJI डीवाई. चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस मनोज मिश्रा ने पक्ष में फैसला दिया. वहीं जस्टिस जेबी पारदीवाला ने इस पर असहमति जताई.

CJI ने कहा कि असम में 6A विधायी समाधान था. पीठ ने माना कि धारा 6A स्थानीय आबादी की सुरक्षा के लिए जरूरी और मानवीय चिंताओं को दूर करने के लागू किया गया था.

साथ ही पीठ ने यह भी माना कि असम की बांग्लादेश जैसे सीमावर्ती राज्यों से तुलना गलत है, क्योंकि असम में अप्रवासियों की संख्या इन राज्यों से कहीं ज्यादा है.

25 मार्च, 1971 की डेट सही : संविधान पीठ

पीठ ने कहा कि असम में 40 लाख प्रवासियों का प्रभाव पश्चिम बंगाल में 57 लाख प्रवासियों से कहीं ज्यादा अधिक है. दरअसल, असम में पश्चिम बंगाल के मुकाबले रहने लायक जमीन बेहद कम है.

पीठ ने यह भी कहा कि 25 मार्च, 1971 की डेट सही थी, क्योंकि इसी दिन बांग्लादेश में मुक्ति युद्ध (Bangladesh Mukti Sangram) खत्म हुआ. ऐसे में पीठ ने माना कि 6A जरूरी है.

दरअसल, नागरिकता अधिनियम की धारा 6A को साल 1985 में असम समझौते के दौरान संविधान में जोड़ा गया था.

1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक असम आने वाले बांग्लादेशी अप्रवासी इस कानून के अनुसार खुद को भारतीय नागरिक के तौर पर रजिस्टर कराने के लिए आवेदन कर सकते हैं.

वहीं, 25 मार्च 1971 के बाद आने वालों को नागरिकता नहीं दी जाएगी. भारत सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच 15 अगस्त, 1985 को अवैध अप्रवास को रोकने के लिए असम समझौते पर साइन किया गया था.

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‘राजनीतिक अधिकारों का उल्लंघन’

फैसला सुनाते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ताओं के तर्क खारिज करते हुए कहा कि 6A संविधान की प्रस्तावना के भाईचारे के सिद्धांत का उल्लंघन करती है.

बता दें कि असम के कुछ स्वदेशी समूहों ने इस प्रावधान को चुनौती दी थी. उनका दावा था कि 6A बांग्लादेश से आए हुए अवैध प्रवासियों की घुसपैठ को वैध बना रहा है.

याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि धारा 6A संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन कर रही है. उन्होंने यह भी कहा कि इससे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.

उन्होंने दावा किया कि इससे नागरिकों के राजनीतिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है. याचिकाकर्ताओं की मांग थी कि 6A को असंवैधानिक घोषित किया जाए और असम में आए अप्रवासियों के पुनर्वास के लिए नीति तैयार करने का आदेश जारी करें.

साथ ही उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को असम-बांग्लादेश सीमा पर बाड़ लगाने का काम जल्द से जल्द पूरा करने करना चाहिए.

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