Iran-Israel War: ईरान ने हमास चीफ इस्माइल हानिया और हिज्बुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह की मौत का बदला लेते हुए इजराइल पर लगभग 180 बैलिस्टिक मिसाइल दागे हैं. ईरान के इस हमले से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह युद्ध दोनों देशों के लिए महंगा और विनाशकारी हो सकता है.
5 October, 2024
Iran-Israel War: ईरान और इजराइल एक बार फिर से जंग के मैदान में आमने-सामने आ गए हैं. ईरान ने हमास चीफ इस्माइल हानिया और हिज्बुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह की मौत का बदला लेते हुए इजराइल पर लगभग 180 बैलिस्टिक मिसाइल दागे हैं. ईरान के इस हमले से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह युद्ध दोनों देशों के लिए महंगा और विनाशकारी हो सकता है. हालांकि, इजराइल और उसके सहयोगी संयुक्त राज्य अमेरिका ने ईरान के अधिकांश मिसाइलों को मार गिराया है. इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) ने ईरान से हमले का बदला लेने की कसम खाई है. उन्होंने इसे एक बड़ी गलती कहा है. उन्होंने कहा कि ईरान को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी.
इजराइल के साथ युद्ध से अराजकता पैदा होगी
यह हमला ईरान के समीकरणों में एक नाटकीय बदलाव को दर्शाता है, क्योंकि पिछले कुछ सप्ताहों से इजराइल ने गाजा और लेबनान में उसके छद्म समूहों हमास और हिजबुल्लाह के नेताओं तथा उनकी सेनाओं पर हमले बढ़ा दिए थे. ईरान ने पारंपरिक रूप से अपनी लड़ाई हिजबुल्लाह और हमास को सौंपी है. वह इस बात को लेकर बहुत चिंतित है कि उसे इजराइल के साथ सीधे टकराव में घसीटा जा सकता है, क्योंकि सत्तारूढ़ शासन के लिए इसके दुष्परिणाम हो सकते हैं. इजराइल के साथ किसी भी युद्ध से आंतरिक असंतोष और अराजकता पैदा हो सकती है. जब जुलाई के अंत में तेहरान में हमास के राजनीतिक नेता इस्माइल हनीयेह की हत्या की गई, तो ईरान के नेताओं ने कहा था कि वे उचित तरीके से इसका जवाब देंगे. उन्होंने मूल रूप से ऐसा करने का काम हिजबुल्लाह पर छोड़ दिया था.
इजराइल से लड़ना राज्य की पहचान का एक अहम स्तंभ है
ईरानी दृष्टिकोण से ऐसा लग रहा था कि ईरान सिर्फ तटस्थ बैठा था और इजराइल को चुनौती देने में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका नहीं निभा रहा था. इसलिए, काफी हद तक ईरान को तथाकथित प्रतिरोध की धुरी के नेता के रूप में अपनी भूमिका निभानी पड़ी और लड़ाई में उतरना पड़ा. इजराइल से लड़ना ईरान में राज्य की पहचान का एक अहम स्तंभ है. ईरानी राजनीतिक प्रतिष्ठान संयुक्त राज्य अमेरिका को चुनौती देने और इजराइल द्वारा कब्जाए गए फिलिस्तीनी भूमि को मुक्त कराने के सिद्धांत पर स्थापित है. ये चीजें ईरानी राज्य की पहचान में अंतर्निहित हैं. इसलिए, यदि ईरान इस सिद्धांत पर काम नहीं करता है, तो उसकी अपनी पहचान को कमजोर करने का गंभीर जोखिम भी है.
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