मिर्जा गालिब के पढ़ें दिल छू लेने वाले शेर.

इश्क से तबीअत ने जीस्त का मजा पाया, दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया.

इश्क से तबीअत

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक, कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ के सर होते तक.

ज़ुल्फ के सर

आईना क्यूं न दूं कि तमाशा कहें जिसे, ऐसा कहां से लाऊं कि तुझ सा कहें जिसे.

कहां से लाऊं

मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यूं रात भर नहीं आती.

नींद क्यूं

 ये कहां की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह, कोई चारासाज होता कोई गम-गुसार होता.

कहां की दोस्ती

बाजीचा-ए-अतफाल है दुनिया मिरे आगे, होता है शब-ओ-रोज तमाशा मिरे आगे.

दुनिया मिरे आगे