'हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी', पढ़ें निदा फाजली के बेहतरीन शेर.

कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कहीं जमीन कहीं आसमां नहीं मिलता.

मुकम्मल जहां

 हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी, जिस को भी देखना हो कई बार देखना.

दस बीस आदमी

धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो, जिंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.

घटाओं में नहा

कोशिश भी कर उमीद भी रख रास्ता भी चुन, फिर इस के ब'अद थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर.

मीद भी रख

बच्चों के छोटे हाथों को चांद सितारे छूने दो, चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे.

चांद सितारे

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए.

घर से मस्जिद