'जो चुप-चाप रहती थी दीवार पर', पढ़ें आदिल मंसूरी के शानदार शेर.

मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर, उस ने दीवारों को अपनी और ऊंचा कर दिया.

मेरे टूटे हौसले

किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को, कागज बिखर रहे हैं पुरानी किताब के.

जमा कीजिए

वो कौन था जो दिन के उजाले में खो गया, ये चांद किस को ढूंडने निकला है शाम से.

उजाले में खो गया

जो चुप-चाप रहती थी दीवार पर, वो तस्वीर बातें बनाने लगी.

चुप-चाप

जीता है सिर्फ तेरे लिए कौन मर के देख, इक रोज मेरी जान ये हरकत भी कर के देख.

इक रोज मेरी

क्यूं चलते चलते रुक गए वीरान रास्तों, तन्हा हूं आज मैं जरा घर तक तो साथ दो.

क्यूं चलते चलते