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जानें क्या थी ज्योति बसु को लेकर Sitaram Yechury की इच्छा, अब CPM का क्या होगा ?

by Live Times
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जानें क्या थी ज्योति बसु को लेकर Sitaram Yechury की इच्छा, अब CPM का क्या होगा ?

RIP Sitaram Yechury: सीताराम येचुरी की पहचान एक प्रभावशाली और जोशीले वक्ता के साथ एक तेज-तर्रार और बेहतरीन तर्क पेश करने वाली थी. उनके निधन के बाद अब सवाल है कि CPI-M की राजनीति की दिशा और दशा क्या होगी.

नई दिल्ली, धर्मेंद्र कुमार सिंह: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी CPM के महासचिव सीताराम येचुरी (Sitaram Yechury) का 72 साल की उम्र में गुरुवार को निधन हो गया. वह पिछले कुछ समय से बीमार थे. उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया था. वह हंसमुख और मिलनसार शख्स थे. उनकी सारी पार्टियों के नेताओं के साथ दोस्ती थी. CPI-M के दूसरे नेताओं की तरह वह कट्टरपंथी नहीं, नरमपंथी थे. सीताराम येचुरी भारतीय राजनीति के बड़े नामों में से एक थे. वह 32 सालों से CPI-M के पोलित ब्यूरो के सदस्य थे. वह साल 2015 से पार्टी के महासचिव बने. सीताराम येचुरी साल 2005 से 2017 तक राज्यसभा सांसद भी रहे.

ज्योति बसु को पीएम बनाने के पक्ष में थे सीताराम येचुरी

सीताराम येचुरी छात्र जीवन से राजनीति में सक्रिय थे और जब देश में आपातकाल लगाया गया था उन्हें भी जेल जाना पड़ा. जेल से रिहा होने के बाद सीताराम येचुरी एक साल में तीन बार JNU छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए, लेकिन उनकी भूमिका 1989 में हुए लोकसभा चुनाव के दौर से अहम मानी जाती है. साल 1989 के लोकसभा चुनाव में ऐसा गठबंधन हुआ था, जो भारतीय राजनीति के लिए इतिहास बन गया. एक तरफ जनता दल से BJP का गठबंधन था, तो दूसरी तरफ जनता दल का लेफ्ट से भी गठबंधन था. 1989 में वी पी सिंह की सरकार बनी, लेकिन उस सरकार में न तो BJP शामिल हुई थी और न ही लेफ्ट. हालांकि, इसका श्रेय हरकिशन सिंह सुरजीत को जाता था, लेकिन उस दौर में सीताराम येचुरी सक्रिय हो चुके थे और वह हरकिशन सिंह सुरजीत के करीबी थे. उन्हीं से वह सीताराम येचुरी ने राजनीति के गुर सीखे. जब 1996 लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था, लेकिन BJP सबसे बड़ी पार्टी थी, ऐसे में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे, लेकिन बहुमत नहीं होने की वजह से उनकी सरकार 13 दिन में गिर गई थी. उस समय चर्चा चली कि पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनाने की. इसी बीच इस मुद्दे को लेकर CPI-M दो धड़ो में बंट गई थी. खासकर लेफ्ट का केरल लॉबी ज्योति बसु के प्रधानमंत्री बनाने के विरोध में खड़ा हो गया, जबकि हरकिशन सिंह सुरजीत और सीताराम येचुरी बसु के प्रधानमंत्री बनने के पक्ष में थे. हालांकि, ज्योति बसु विरोध के चलते प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नहीं बने. बाद में ज्योति बसु ने पीएम नहीं बनने पर कहा था कि यह एक बड़ी गलती थी. इसके बाद सीताराम येचुरी केंद्र की राजनीति में CPI-M का एक बड़ा चेहरा बन चुके थे और उनकी लगातार कोशिश रहती थी कि केंद्र में BJP की सरकार न बने. यही वजह रही है कि UPA की पहली और दूसरी सरकार बनाने में CPI-M का अहम योगदान रहा. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी सीताराम येचुरी की अहम भूमिका रही. I.N.D.I.A. ब्लॉक के गठबंधन में सीताराम येचुरी अहम सूत्रधार थे. दूसरी पार्टियों को नजदीक लाने और BJP को रोकने के लिए अथक कोशिश की. यही वजह रही है कि BJP 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुमत से दूर रह गई.

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CPI-M का सिकुड़ता जाल

CPI-M की राजनीति कांग्रेस और BJP के विरुद्ध रही है, लेकिन राजनीति ने ऐसी करवट ली कि CPI-M को मजबूरन करवट लेनी पड़ी. CPI-M, BJP को रोकने के लिए कांग्रेस के करीब आ गई. यही वजह रही है कि पार्टी को अपनी मुख्य विचारधारा और मूल एजेंडे से समझौता करना पड़ा. मनमोहन सिंह की उदारवादी नीति लेफ्ट को कमजोर करने वाली थी, लेकिन राजनीति की ऐसी मजबूरी थी कि चाहकर भी CPI-M कांग्रेस से दूरी नहीं बना सकती थी. उदारवादी नीति की वजह से देश में आकांक्षी वर्ग तैयार हुआ, जो लेफ्ट की जमीन को कमजोर करती चली गई. पहले तो CPI-M का गढ़ यानी पश्चिम बंगाल हाथ से साल 2011 में निकल गया और पार्टी का तंबू पश्चिम बंगाल से उखड़ गया. पार्टी अब सिर्फ केरल में पार्टी सांसे गिन रही है. एक जमाने में लोकसभा चुनाव में 44 सीट जीतने वाली CPI-M सिमट कर सिर्फ 4 सीटों पर रह गई है. पश्चिम बंगाल ही नहीं बल्कि त्रिपुरा में भी पार्टी का खात्मा हो चुका है. CPI-M के जमींदोज के लिए प्रकाश करात और सीताराम येचुरी भी जिम्मेदार माने जाते हैं. क्योंकि यह दोनों बौद्धिक ज्यादा थे, जबकि जमीन पर पकड़ नहीं बच गई. हालांकि, दुनिया के देशों में विकास की रफ्तार ने लेफ्ट की रफ्तार कमजोर पड़ गई. यह अलग बात है कि सीताराम येचुरी किसी भी मुद्दे पर पूरी मजबूती के साथ अपनी बात रखते थे. वह स्पष्ट वक्ता थे. वह अंग्रेजी,हिंदी, तेलुगु, तमिल, बांग्ला और मलयालम भी बोल लेते थे. खासकर मोदी सरकार के आर्थिक नीति की आलोचना लगातार करते थे. संसद में सीताराम येचुरी की पहचान एक प्रभावशाली और जोशीले वक्ता के साथ एक तेज-तर्रार और बेहतरीन तर्क पेश करने वाली थी. सभी पार्टियों में उन्हें सम्मान मिलता था. उनके निधन के बाद अब सवाल है कि अब CPI-M की राजनीति की दिशा और दशा क्या होगी.

धर्मेन्द्र कुमार सिंह (इनपुट एडिडर, लाइव टाइम्स)

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