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Uttar Pradesh: 200 साल से प्रयागराज में चल रही है घोड़ों की रेस, जो है गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल

by Pooja Attri
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Uttar Pradesh: 200 साल से प्रयागराज में चल रही है घोड़ों की रेस, जो है गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल

Uttar Pradesh News: हर साल सावन के महीने में सोमवार को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में ‘गहरेबाजी’ आयोजित की जाती है, जो घोड़ों की एक दौड़ है.

23 July, 2024

Uttar Pradesh News: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हर साल सावन के महीने में सोमवार को ‘गहरेबाजी’ आयोजित की जाती है, जिसमें सड़क पर घोड़ों को दौड़ाया जाता है. प्रयागराज के लोगों का कहना है कि 200 साल से चली आ रही ‘गहरेबाज़ी’ की इस परंपरा से सभी धर्मों के बीच एकता और भाईचारा बढ़ता है.

गहरेबाजी है 200 साल पुरानी परंपरा

गहरेबाजी के आयोजक विष्णु महाराज का कहना है कि यह लगभग 200 साल पुरानी परंपरा है. यह गंगा-जमुनी तहजीब को दर्शाती है. यहां हिंदू, मुसलमान, सिख और ईसाई सभी धर्म के लोगों के घोड़े हैं. सभी लोग प्यार से घोड़े हांकते हैं. साल भर इसकी तैयारी चलती है. यहां सब अपने-अपने घोड़े का प्रदर्शन करते हैं. यह कोई रेस नहीं, बस एक प्रदर्शन है.

गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल

गहरेबाजी के एक दर्शक शिखर गुप्ता का कहना है कि हम लोग ‘गहरेबाजी’ को देखने के लिए काफी उत्साहित रहते हैं. यह यहां की कई सौ साल पुरानी परंपरा है. यह प्रदर्शिनी गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल है. इसमें हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई सभी धर्मों के लोग भाग लेते हैं.

यह है कदमबाजी की रेस

दरअसल, गहरेबाज़ी में घोड़ों को स्पीड से नहीं, बल्कि उनके कदमों से आंका जाता है. घोड़ा मालिक बदरे आलम ने बताया कि इस कॉम्पिटिशन में घोड़े को बारी-बारी कदम रखना होता है. दरअसल, यह कदमबाजी की रेस है. अगर सरपट हुए तो फाउल होगा. सरपट रेस रेसकोर्स में होती है. कदमबाजी की इस रेस में हिस्सा लेने के लिए घोड़ों का सालभर रियाज होता है.

घोड़ों को तैयार करना है खर्चीला

प्रयागराज में आज भी इस परंपरा को कुछ लोगों ने बिना किसी पैसे या इनाम की चाहत के जीवित रखा है. हर साल कई घोड़ेवाले गहरेबाज़ी में हिस्सा लेते हैं, लेकिन असल में गहरेबाजी में घोड़ों को तैयार करने में काफी खर्च होता है. इसके लिए पूरे साल घोड़ों को ट्रेनिंग देने के लिए ट्रेनर रखा जाता है.

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