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असम में हिमंता सरकार का बड़ा फैसला, मुस्लिम विवाह और तलाक रजिस्ट्रेशन कानून रद्द; बाल विवाह पर कही बड़ी बात

by Live Times
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असम में हिमंता सरकार का बड़ा फैसला, मुस्लिम विवाह और तलाक रजिस्ट्रेशन कानून रद्द; बाल विवाह पर कही बड़ी बात

Assam Muslim Marriage Act : असम की हिमंता सरकार ने राज्य में बाल विवाह को रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं. मुस्लिम विवाह-तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 को रद्द करना इनमें से ही एक है.

19 July, 2024

Assam Muslim Marriage and Divorce Registration Act : असम की हिमंता बिस्वा सरमा की सरकार ने सामाजिक बदलाव लाने के लिए बड़ा कदम उठाया है. सरकार ने बाल विवाह को रोकने के लिए मुस्लिम विवाह-तलाक पंजीकरण अधिनियम एवं 1935 को रद्द करने के लिए मंजूर दे दी है. यह कानून कुछ विशेष परिस्थितियों में मुस्लिम समाज के लोगों को कम उम्र में निकाह करने की अनुमति देता था. मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा (CM Himanta Biswa Sarma) ने कहा कि हमारा कठोर मिशन न केवल सामाजिक बदलाव ला रहा है, बल्कि हमारी लड़कियों को स्वस्थ एवं सशक्तिकरण की ओर अग्रसर कर रहा है.

‘निरसन विधेयक 2024’ को किया गया अधिकृत

असम विधानसभा के मॉनसून सत्र के दौरान सरकार की ओर से ‘निरसन विधेयक 2024’ पेश किया जाएगा. इस साल की शुरूआत में ही हिमंता बिस्वा की कैबिनेट ने अधिनियम को समाप्त करने की मंजूरी दी. इसके बाद गुरुवार को कैबिनेट की बैठक में निरसन विधेयक को अधिकृत किया गया. मंत्रिपरिषद की बैठक के बाद सीएम हिंमता ने अपने एक एक्स पोस्ट में लिखा कि हमने बाल-विवाह के खिलाफ एक्शन लेकर सामाजिक न्याय को बढ़ावा दिया और अपनी बेटियों के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाएं हैं. उन्होंने आगे कहा कि बाल विवाह 80 प्रतिशत अल्पसंख्यक समुदाय में और 20 फीसदी अन्य समुदाय में होते हैं. लेकिन यह हमारे लिए सिर्फ यह धार्मिक मामला नहीं है, बल्कि सामाजिक मामला भी है.

क्या थे पुराने कानून में प्रावधान?

मुस्लिम विवाह में नियम बनाने के लिए असम मुस्लिम मैरिज एंड डायवोर्स रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1935 लाया गया था. यह कानून मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुरूप बनाया गया था. इसमें मुस्लिम विवाह और तलाक के पंजीकरण को लेकर प्रावधान थे. साल 2010 में संशोधन के साथ इसमें ‘स्वैच्छिक’ शब्द जोड़ा गया, जिसकी वजह से राज्य में मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया. दूसरी तरफ इस कानून को आधुनिक सामाजिक नियमों के अनुसान नहीं दिखाया गया. मुस्लिम मैरिज एंड डायवोर्स के मुताबिक, देश के संविधान में दिए गए लड़के और लड़की की 21 और 18 उम्र को भी अनिवार्य नहीं माना गया था.

यह भी पढ़ें- कांवड़ यात्रा को लेकर सीएम योगी का बड़ा फैसला, अब पूरे उत्तर प्रदेश में कांवड़ मार्गों पर दुकानों में लगानी होगी ‘नेमप्लेट’

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