BJP-RSS Dispute : देखा जाए तो मोदी की larger than life image (वह व्यक्ति जो भीड़ से अलग दिखता हो, एक बड़ा व्यक्तित्व, जिसे नज़रअंदाज करना मुश्किल हो) RSS को कहीं न कहीं भा नहीं रहा है.
BJP-RSS Dispute : भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) 2 अलग संगठन जरूर हैं, लेकिन RSS ने ही हमेशा BJP के लिए सियासी जमीन तैयार की है. इसका BJP ने राजनीतिक लाभ भी उठाया है. ऐसे में यह कहना कि BJP और आरएसएस का जुड़ाव वैचारिक के साथ-साथ स्वाभाविक भी है, तो गलत नहीं होगा. 1980 में BJP की उत्पत्ति से लेकर आज तक आरएसएस और BJP का एक-दूसरे से लगाव सर्वविदित है.
BJP का नेतृत्व सदैव ऐसे व्यक्ति के हाथों में रहा जो शुरुआत में संघ से जुड़ा रहा हो. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हों या फिर पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी या मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, सभी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत आरएसएस प्रचारक के रूप में की.
BJP का आरएसएस कनेक्शन
2007 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि मैं मूल रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक रहा हूं. हमें राष्ट्र के लिए सोचने के लिए तैयार किया गया है. यह मेरी RSS की परवरिश ही है कि जो भी काम मुझे सौंपा जाता है उसे अच्छे से करने में सक्षम बनाती है. मेरे पास संघ परिवार द्वारा कोई समस्या पैदा करने का एक भी उदाहरण नहीं है. संघ परिवार मेरे साथ है. उन्होंने हमेशा मेरा समर्थन किया, मेरी मदद की, मेरा मार्गदर्शन किया. संघ परिवार मेरी शाश्वत शक्ति है.
लाल कृष्ण आडवाणी भी कर चुके हैं तारीफ
इसी तरह 2000 में प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम में कहा था- ‘मैं आज प्रधानमंत्री हो सकता हूं, कल नहीं हो सकता लेकिन एक चीज जो मुझसे कोई नहीं छीन सकता, वह है स्वयंसेवक होना.’ लालकृष्ण आडवाणी ने भी सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी- अगर मुझमें कोई सराहनीय गुण है तो मैं इसका श्रेय आरएसएस को देता हूं.’
आखिर मतभेद क्यों ?
लोकसभा चुनाव 2024 फिर अब ऐसा क्या हो गया कि BJP के नेताओं और आरएसएस के सुर अलग-अलग सुनाई दे रहे हैं?
हाल के आम चुनाव में BJP के बहुमत से पीछे रहने के बाद अपने पहले संबोधन में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मणिपुर में जारी तनाव के माहौल को खत्म करने और सरकार और विपक्ष के बीच आम सहमति की आवश्यकता पर जोर दिया. मोहन भागवत ने ये भी कहा- ‘एक सच्चा सेवक मर्यादा बनाए रखता है. उसमें अहंकार नहीं होता कि वह कहे कि मैंने ये काम किया.’ भागवत की इस टिप्पणी को कुछ राजनीति के जानकारों ने पीएम मोदी की आलोचना के रूप में देखा. इसके साथ ही BJP और RSS के बीच मतभेद के रूप में इसे देखा जा रहा है.
भागवत के बाद इंद्रेश का हमला
खैर मोहन भागवत की टिप्पणी तो अस्पष्ट थी, लेकिन राजस्थान में एक कार्यक्रम के दौरान आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार ने तो सीधे तौर पर BJP पर निशाना साध दिया. लोकसभा चुनावों में BJP की कम सीटों को लेकर उन्होंने कहा कि जो अहंकारी हो गए हैं उन्हें 241 पर रोक दिया. उन्होंने आगे कहा कि लोकतंत्र में रामराज्य का विधान देखिए, जिन्होंने राम की भक्ति की लेकिन धीरे-धीरे अहंकारी हो गए, वो पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन जो वोट और ताकत मिलनी चाहिए थी वो भगवान ने उनके अहंकार के कारण रोक दी.’
‘ऑर्गनाइजर’ के लेख ने उठाए सवाल
आरएसएस से जुड़ी पत्रिका ‘ऑर्गनाइजर’ के एक लेख में लोकसभा चुनाव परिणामों को अति आत्मविश्वासी BJP नेताओं और कार्यकर्ताओं को आईना दिखाने जैसा बताया गया. इससे पहले लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान BJP अध्यक्ष जे पी नड्डा ने आरएसएस को लेकर कहा था कि BJP को अब चुनाव जीतने के लिए संघ की आवश्यकता नहीं है. भारतीय जनता पार्टी अपने आप में सक्षम है. मोदी के सामने संघ खुद को बौना महसूस कर रहा है. साफ है कि इससे नागपुर और अहमदाबाद (या फिर दिल्ली) के बीच दूरियां बढ़ गई हैं. हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि संघ और BJP एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. साथ रहने में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मनभेद हो जाए फिलहाल ऐसा नहीं दिख रहा है.