Modi 3.0 Govt : केन्द्र में नरेन्द्र मोदी को केन्द्र में सरकार बनाने के लिए शायद ही नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के समर्थन की जरूरत होती. इसलिए मौजूदा परिदृ्श्य में BJP के सामने भी ये सवाल बड़ा है, आखिर उत्तर प्रदेश में ऐसा क्या हुआ कि राज्य में पार्टी की राजनैतिक लुटिया डूब गई.
08 June, 2024
धर्मेन्द्र कुमार सिंह, इनपुट एडिटर, लाइव टाइम्स : अगर उत्तर प्रदेश में BJP की जीत 2019 की तरह शानदार होती तो नरेन्द्र मोदी को केन्द्र में सरकार बनाने के लिए शायद ही नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के समर्थन की जरूरत होती. इसलिए मौजूदा परिदृ्श्य में BJP के सामने भी ये सवाल बड़ा है कि आखिर उत्तर प्रदेश में ऐसा क्या हुआ जिससे राज्य में पार्टी की राजनीतिक लुटिया डूब गई. ऐसा तब हुआ जब पार्टी को ये भरोसा था कि उत्तर प्रदेश 2019 से भी बड़ी जीत मिलने जा रही है. क्या कारण हैं जो 2019 में 62 सीट जीतने वाली BJP 2024 में 33 सीटों पर पहुंच गई. 2014 के लोकसभा चुनाव से लगातार प्रदेश में जीत का डंका बजाने वाली पार्टी की इतनी बुरी हालत क्यों हो गई?
पहली बड़ी वजह है कि प्रदेश में BJP अगर मजबूत पार्टी मानी जाती थी तो उसके पीछे संगठन के रूप में आरएसएस की भूमिका बड़ी होती थी. लेकिन पहली बार देखने और सुनने को मिल रहा है कि आरएसएस पिछले चुनावों की तरह सक्रिय नहीं था. चाहे लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का या फिर लोकल चुनाव. आरएसएस हर चुनाव में चट्टान की तरह खड़ा हो जाता था, लेकिन इस बार वो बात नहीं दिखी जो पहले दिखा करती थीं. मसलन, इस बार घर-घर प्रचार कम हुआ और वोटरों को पर्ची पहुंचाने की व्यवस्था भी कमजोर दिखी.
दूसरी बड़ी बात है कि हार के बाद पार्टी के लोग पार्टी के भीतर गद्दारी की बात कर रहे हैं. तो सवाल है कि करारी हार के पीछे भितरघात की बात कैसे सामने आ रही है. इसके पीछे जो बात सामने आ रही है उसके मुताबिक, पिछले विधानसभा चुनाव में कुछ सांसदों ने विधायकों को हराने का काम किया और इस बार लोकसभा चुनाव में विधायकों ने सांसदों से बदला ले लिया. यही वजह है कि इस बार 26 सिटिंग सांसद चुनाव हार गए.
तीसरी बड़ी बात है कि प्रदेश में लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे में राज्य के नेताओं की नहीं सुनी गई. बल्कि सारी सीटें और समीकरण दिल्ली से तय किए गए. किससे गठबंधन करना है, किसका टिकट काटना है, आदि-आदि. यही नहीं बाहरी नेताओं को टिकट देने से पार्टी में नाराजगी बढ़ी, जिसकी वजह से कई नेता चुनाव के दौरान निष्क्रिय हो गए.
चौथी बात ये है कि कमंडल की राजनीति में मंडल कमोबेश गायब हो गया था. लेकिन पार्टी को ये पता नहीं चला कि कमंडल की राजनीति कमजोर हो रही है और मंडल BJP के पिटारे से खिसक रहा है. सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे के मुताबिक I.N.D.I.A. गठबंधन ने कोइरी-कुर्मी, नन जाटव दलित और अन्य ओबीसी में सेंध लगाने में कामयाब हो गया. इंडिया गठबंधन को कोइरी-कुर्मी के 34 फीसदी, अन्य ओबीसी के 34 फीसदी और नन जाटव दलित के 56 फीसदी वोट मिले, जबकि यादव और मुस्लिम का एक तरफा वोट गठबंधन को मिला.
जिस राम मंदिर को BJP ने पूरे देश में मुद्दा बनाया उसी राम की नगरी फैजाबाद की सीट भी पार्टी नहीं बचा पाई. BJP को 2019 लोकसभा चुनाव में करीब 50 फीसदी वोट मिले थे लेकिन इस बार पार्टी सिर्फ 41 फीसदी पर सिमट गई. मतलब पार्टी को पिछले चुनाव की तुलना में 9 फीसदी वोटों का नुकसान हुआ.
पांचवीं बात है कि सपा ने इस बार बड़ी चतुराई से BJP के सोशल इंजीनियरिंग में सेंध लगाने के बड़ा खेल किया. पार्टी ने सिर्फ 5 यादव को टिकट दिया वो भी सारे अखिलेश के परिवार के थे लेकिन 32 ओबीसी, 16 दलित, 10 सवर्ण और 4 मुस्लिम को टिकट देकर जातीय समीकरण को साधने में कामयाब हो गई.
छठी बात है कि जब मोदी और योगी प्रदेश में चुनाव का चेहरा थे तो राहुल कैसे मोदी से अधिक लोकप्रिय हो गए. सीएसडीएस-लोकनीति सर्वे के मुताबिक प्रदेश में प्रधानमंत्री की पसंद 36 फीसदी राहुल थे और सिर्फ 32 फीसदी नरेन्द्र मोदी थे. क्या पार्टी को मालूम नहीं था कि प्रदेश में पार्टी की जमीन खिसक रही है? अगर पता था तो समय रहते हुए इसमें सुधार करने के लिए पार्टी ने कोई कदम नहीं उठाया?
सातवीं बात थी कि नरेन्द्र मोदी ने अबकी बार 400 का नारा दिया था. इस नारे से पार्टी को फायदा नहीं बल्कि नुकसान हुआ. दरअसल, अपनी पार्टी के ही नेता संविधान बदलने की बात करने लगे और विपक्ष ने इसे लपक लिया और चारों दिशा में फैला दिया कि 400 सीट पार का मतलब पार्टी संविधान बदल देगी और ओबीसी और दलित का आरक्षण खत्म कर देगी. इस मैसेज को इंडिया गठबंधन फैलाने में कामयाब हो गया. नतीजा ये हुआ कि दलित और ओबीसी वोटर BJP से बिदक गए.
आठवीं बात ये है कि जिस बीएसपी ने 2019 में सपा से गठबंधन किया था, उसने इस बार अकेले लड़ने का फैसला किया. इससे वोटरों में ये मैसेज गया कि बीएसपी BJP के इशारे पर ऐसा कर रही है. दलित वोटर जो बीएसपी और बीजेपी के समर्थक थे, उसमें से अधिकतर इंडिया गठबंधन की तरफ रुख कर गए. इसमें संविधान बदलने की बात ने आग में घी का काम किया.
नौवीं बात है कि विकास ही विनाश में बदल गया. शहरों में सुंदरीकरण के नाम पर जो मकान और घर तोड़े गए थे. जो बेघर हो गए, उन्हें मुआवजा नहीं देने का आरोप भी लगा है. ऐसे लोग जो बीजेपी के वोटर थे लेकिन बेघर और मुआवजा नहीं मिलने से ये वोटर नाराज दिखे और पार्टी को कई जगह हार मिली.
दसवीं बात ये थी कि कांग्रेस की गारंटी, जिसमें महिलाओं को 1 लाख रुपये देने, एमसीपी खत्म करने, युवाओं को रोजगार देने और अग्निवीर जैसे मुद्दों ने वोटरों को अपनी तरफ खींचने में कामयाब रही.
मोदी सरकार के 10 साल के शासनकाल की वजह से बेरोजगारी और महंगाई को लेकर वोटरों में नाराजगी थी. यही नहीं अग्निवीर को लेकर युवाओं में नाराजगी थी और इंडिया गठबंधन ने एलान कर दिया कि उनकी सरकार आएगी तो अग्निवीर स्कीम को खत्म कर देगी. इससे युवाओं में एक उम्मीद जगी. और तो और प्रदेश में लगातार पेपर लीक होने से युवा नाराज थे. एक तरफ नौकरी कम है और दूसरी वजह जो भी नौकरी है, उसमें पेपर लीक होने से युवाओं में नाराजगी और बढ़ गई. योगी सरकार इस पेपर लीक पर युवाओं को कोई ठोस भरोसा देने में नाकाम रही.
पहले फेज के बाद नरेन्द्र मोदी ने मंगलसूत्र-मुसलमान का जिक्र करके ध्रुवीकरण करने की कोशिश की, लेकिन मामला सुलझने की जगह उलझता चला गया. खासकर पढ़े-लिखे लोगों को ये लगा कि मोदी चुनाव को हिंदू-मुस्लिम क्यों कर रहे हैं. वहीं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ठाकुरों को टिकट नहीं देने से इस जाति में नाराजगी बढ़ी. वहीं, गुजरात में ठाकुरों पर बीजेपी नेता पुरुषोतम रुपाला के बयान को ढाल बनाकार ठाकुर वोटरों में कुछ ग्रुप बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. विरासत टैक्स का जिक्र करना भी भारतीय जनता पार्टी के हित में नहीं गया.
देश और प्रदेश में एक साल से चर्चा चल रही थी कि लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी को हटा दिया जाएगा. अरविंद केजरीवाल और अन्य विपक्षी नेताओ ने चुनाव के दौरान इस चर्चा को गरम करने की कोशिश की कि चुनाव के बाद वाकई योगी को हटा दिया जाएगा.
अमित शाह ने अरविंद केजरीवाल के उन सवालों का जवाब तो दिया कि चुनाव के बाद मोदी ही पीएम रहेंगे, लेकिन योगी वाले मुद्दे पर चुप ही रहे. शायद योगी को हटाने के मुद्दे पर उनके समर्थक और उनके कामकाज से खुश थे, वो शायद बीजेपी से बिदक गए. बीजेपी अब हार की वजहों की समीक्षा खुद ही करने वाली है, लेकिन हार के पीछे की चर्चा में चल रही वजहों की अनदेखी शायद ही कर पाए.
(धर्मेन्द्र कुमार सिंह, इनपुट एडिटर, लाइव टाइम्स)