विकास के अलावा संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए भी एकजुट होना जरूरी होता है. अगर हम इतिहास के पन्नों की तरफ झांकते हैं तो हमें देखने को मिलता है कि वर्ण व्यवस्था के आधार पर बंटे समाज में चहुंओर से किस प्रकार से हानि उठानी पड़ी.
22 April, 2024
विकास के अलावा संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए भी एकजुट होना जरूरी होता है. अगर हम इतिहास के पन्नों की तरफ झांकते हैं तो हमें देखने को मिलता है कि वर्ण व्यवस्था के आधार पर बंटे समाज में चहुंओर से किस प्रकार से हानि उठानी पड़ी. इसके लिए विश्व हिंदू कई वर्षों से कार्य करता आ रहा है. कर्नाटक के बीदर शहर से लगभग 12 किलोमीटर दूर जरानी नरसिम्हा स्वामी मंदिर, भगवान विष्णु के चौथे अवतार भगवान नरसिम्हा को समर्पित है. इसके अलावा गुफा के अंदर बने इस मंदिर के अंदर पानी बहता रहता है और श्रद्धालुओं को पूजा करने के लिए पानी के बीच से ही गुजरना होता है.
नरसिम्हा के लिए श्रद्धालुओं की आस्था बहुत ज्यादा है
दरअसल, भगवान नरसिम्हा की मूर्ति तक पहुंचने से पहले, मंदिर में आने वाले श्रद्धालु सबसे पहले धारासुर नामक राक्षस राजा को सम्मान देते हैं. फिर मंदिर में साल भर श्रद्धालुओं का सैलाब लगा रहता है. गर्भगृह तक पहुंचने के लिए पानी में से होकर गुजरना होता है जिसका अनुभव बेहद खास होता है. इस मंदिर में श्रद्धालुओं की आस्था बहुत ज्यादा है. देश के कोेने कोने से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और भगवान नरसिम्हा से आशीर्वाद लेते हैं.
नृसिंह के दर्शन से पहले राक्षस के दर्शन होते हैं जरूरी
नरसिम्हा और राक्षस में युद्ध होने के बाद भगवान नरसिम्हा ने राक्षस से पूछा कि वह अंतिम इच्छा के रूप में जो भी मांगना चाहता है वह मांग ले क्योंकि उसने भगवान शंकर की तपस्या से पुण्य प्राप्त किया था. राक्षसों ने कहा कि सारे संसार में राक्षसों का कोई नाम नहीं लेता. इसलिए वह चाहते थे कि उनका नाम अमर रहे. उसने आशीर्वाद मांगा कि पहले उसका (राक्षस का) नाम लेना चाहिए बाद में आपका नाम. दर्शन करते समय पहले उनके दर्शन करने चाहिए उसके बाद आपके. इसीलिए, धारासुर राक्षस नाम होने के कारण, तीर्थ क्षेत्र धरणी में राक्षस का नाम पहले आता है और फिर नरसिंह स्वामी का. भगवान नृसिंह के दर्शन से पहले राक्षस के दर्शन किए जाते हैं.
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