Sri Durgaparmeshwari Temple: कर्नाटक के मैंगलोर से 30 किमी की दूरी पर स्थित श्री दुर्गापरमेश्वरी मंदिर है. इस मंदिर को कतील मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर की विशेषता ये हैं कि यहां एक दूसरे पर हर साल जलती हुई मशाल फेंकी जाती हैं.
21 April, 2024
Karnataka Agni Keli: सनातन धर्म में श्री दुर्गापरमेश्वरी मंदिर बेहद खास महत्व रखता है जो कर्नाटक के मैंगलोर से 30 किमी की दूरी पर स्थित है. इस मंदिर को कतील मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर की विशेषता ये हैं कि यहां एक दूसरे पर हर साल जलती हुई मशाल फेंकी जाती हैं. कर्नाटक का ये मंदिर ‘अग्नि केली’ परंपरा के लिए देशभर में प्रसिद्ध है. अग्नि केली उत्सव जो आग से खेला जाता है इसमें हर साल सैकड़ों लोग हिस्सा लेते हैं.
कब मनाया जाता है
कर्नाटक का अग्रि केली उत्सव हर साल अप्रैल के महीने में मनाया जाता है जो पूरे 8 दिनों तक चलता है. इस उत्सव के दौरान लोग एक दूसरे पर जलती हुई मशाले फेंकते हैं. उत्सव के इस नजारे को दूर से देखने पर लगता है मानों कोई ‘महायुद्ध’ चल रहा हो. अंधेरी रात में जब मसाले उड़ती हुईं दिखाई देती हैं तो ऐसा लगता है जैसे कोई मिसाइल लॉन्च हो रही है. इस पर्ंपरा के दौरान अगर कोई व्यक्ति घायल हो जाता है तो उसके जख्मों को तुरंत पवित्र पानी से धोया जाता है. मशाले फेंकने का ये घमासान 15 दिनों तक जारी रहता है.
‘अग्नि केली’ परंपरा
इस साल कल यानी 20 अप्रैल से श्री दुर्गापरमेश्वरी मंदिर में अग्नि केली उत्सव का आयोजन शुरू हो चुका है. इस उत्सव के दौरान लोगों को भगवा कपड़े पहने हुए हाथों में जलती हुई मशाल लेकर मंदिर की ओर जाते हुए देखा गया. उत्सव के इस संग्राम को देखने के लिए लाखों की संख्या में लोगों जमा हुए.
क्यों मनाते हैं
कर्नाटक के 2 गांवों कलत्तर और आतुर के बीच अग्नि केली की जाती है जिसमें लोग कोकोनट से बनी मशालों को लेकर आते हैं और 15 मिनट तक एक दूसरे पर फेंकते हैं. इस उत्सव के दौरान मशाल को केवल 5 बार ही फेंका जा सकता है. स्थानी लोगों के अनुसार, अग्नि केली उत्सव में हिस्सा लेने से लोगों के दुख और दर्द कम हो जाते हैं. इस उत्सव की शुरुआत मेष संक्रांति दिवस की पूर्व संध्या से होती है.
कैसे मनाते हैं
आतुर और कलत्तर नाम के दो गांव के लोग अग्नि केली खेलते हैं. उसत्व के दौरान लोग कोकोनट से बनी मशालों को लेकर आते हैं और लगातार 15 मिनट तक एक दूसरे पर फेंकते हैं. मशाल को 5 बार ही एक दूसरे पर फेंका जा सकता है. स्थानीय लोगों के अनुसार, अग्नि केली उत्सव में हिस्सा लेने से लोगों के दूख और कष्ट दूर हो जाते हैं. ये उत्सव मेष संक्रांति दिवस की पूर्व संध्या से शुरू हो जाता है.
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