QR Technology : दिव्यांग बच्चा विनायक कोहली रास्ता भटकने की वजह से अपने परिवार से बिछड़ गया था, लेकिन क्यूआर यानी क्विक रिस्पांस कोड पेडेंट की वजह से वो कुछ घंटों के भीतर ही अपने परिवार के पास पहुंच गया.
18 April, 2024
QR Technology : जब कोई बच्चा अपने माता-पिता से बिछड़ जाता है तो फिर बच्चे को खोजने में काफी समय लग जाता है. कई बार तो ऐसा होता है कि बच्चे को खोजने में पुलिस महीनों लगा देती है, लेकिन फिर भी बच्चा नहीं मिलता है, लेकिन एक ऐसा डिवाइस आ गया है, जिससे अगर आपका बच्चा खो भी गया तो तुरंत ही उसकी लोकेशन का पता लगाकर आप बच्चे के पास पहुंच सकते हैं. एक ऐसा ही मामला मुंबई से सामने आया है, जहां दिव्यांग बच्चा विनायक कोहली रास्ता भटकने की वजह से अपने परिवार से बिछड़ गया था, लेकिन क्यूआर यानी क्विक रिस्पांस कोड पेडेंट की वजह से वो कुछ घंटों के भीतर ही अपने परिवार के पास पहुंच गया.
क्या है क्यूआर टेक्नोलॉजी
यह क्यूआर कोड पेंडेंट दिव्यांग विनायक के माता-पिता का पता लगाने में मुंबई पुलिस के लिए मददगार साबित हुआ. विनायक 11 अप्रैल को वर्ली इलाके के अपने घर से लापता हो गया था. वो कोलाबा जाने वाली बस में सवार हो गया था. क्यूआर कोड पेंडेंट बुजुर्ग और दिव्यांग बच्चों को खो जाने पर घर का रास्ता खोजने में मदद करने के लिए डिजाइन किया गया है. लॉकेट में स्लीक डिजाइन होता है और यह एक धागे से बंधा होता है. इसे स्कैन करने के बाद उसे पहनने वाले व्यक्ति का पता और उससे जुड़ी जानकारी का पता लगाया जा सकता है.
24 साल के अक्षय ने बनाया यह डिवाइस
क्यूआर कोड पेंडेंट 24 साल के अक्षय रिडलान के दिमाग की उपज है. वह प्रोजेक्ट चेतना के जरिए पेंडेंट मुफ्त में बांटकर बुजुर्गों के साथ-साथ अल्जाइमर और डिमेंशिया जैसी बीमारी से जूझ रहे लोगों की मदद कर रहे हैं. बता दें कि विनायक कोहली जब बस पर चढ़ गया तो एक कंडक्टर ने पुलिस स्टेशन में इसकी जानकारी दी. जिसके बाद पुलिस बच्चे को अपने साथ कोलाबा पुलिस स्टेशन ले गई. इसके बाद पेंडेंट पर पुलिस का ध्यान गया, पुलिस को उसके बारे में पता नहीं था. फिर उन लोगें ने वहां पर स्कैन किए तो एनजीओ का नंबर मिला, एनजीओ से फिर उसके माता-पिता को कॉन्ट्रैक्ट किया. जिसके बाद में पता चला कि विनायक कोलाबा में पहुंच गया है.
हमारे लिए बहुत ही मददगार
मुंबई के डीसीपी ने कहा कि इसकी वजह से काम बहुत आसान हो जाता है, वर्ना इसमें एफर्ट्स, मैन पावर और रिसोर्सेस लग जाते हैं. जो भी लोग चाहे बच्चे हों या बड़े हों या जो बात नहीं कर पाते हैं, कम्युनिकेट करना मुश्किल होता है, ऐसे सभी लोगों के लिए ऐसा पेंडेंट जैसा सिस्टम अगर हम लोग ला पाते हैं तो यह हमारे लिए बहुत ही मददगार होगा.
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