Supreme Court of India : पूर्व जजों ने ‘न्यायपालिका की सुरक्षा की जरुरत’ शीर्षक वाले पत्र में कहा कि इस तरह की चीजें न केवल हमारी न्यायपालिका की पवित्रता का अपमान करती हैं. बल्कि अनुचित दबावों से न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों के लिए सीधी चुनौती भी पेश करती है.
15 April, 2024
Supreme Court of India : सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के 21 पूर्व जजों के एक ग्रुप ने न्यायपालिका को कमजोर करने की कोशिशों के खिलाफ भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को पत्र लिखा है. इस पत्र में गलत सूचना की रणनीति और न्यायपालिका के खिलाफ सार्वजनिक भावनाओं को भड़काने को लेकर चिंता जाहिर की है.
विपक्ष के नेताओं के भाजपा का विवाद आया सामने
सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीशों समेत रिटायर जजों ने उन घटनाओं के बारे में नहीं बताया जिसके कारण उन्हें सीजेआई को पत्र लिखना पड़ा है. हालांकि, उनका पत्र भ्रष्टाचार के मामले में कुछ विपक्षी नेताओं के खिलाफ हुई कार्रवाई के बाद सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) और विपक्षी दलों के बीच वाद-विवाद सामने आया है. भ्रष्टाचार के आरोपित नेताओं और उनकी पार्टियों ने राहत पाने के लिए कोर्ट का रुख किया है. इसके साथ ही भाजपा ने आरोपितों पर कोर्ट के फैसलों को अपने तरीके से इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. इतना ही नहीं, विपक्ष की आलोचना को गलत साबित करने के लिए कई गिरफ्तार नेताओं को राहत नहीं मिलने का हवाला दिया है.
दबाव बनाने के लिए ईमानदारी पर उठाया सवाल
पूर्व जजों ने ‘न्यायपालिका की सुरक्षा की जरुरत’ शीर्षक वाले पत्र में कहा कि इस तरह की चीजें न केवल हमारी न्यायपालिका की पवित्रता का अपमान करती हैं. बल्कि अनुचित दबावों से न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों के लिए सीधी चुनौती भी पेश करती हैं, जिन्हें कानून के संरक्षक के रूप में न्यायाधीशों ने बनाए रखने की शपथ ली है. वहीं जस्टिस (सेवानिवृत्त) दीपक वर्मा, दिनेश माहेश्वरी और एम. आर. शाह, कृष्ण मुरारी, सहित रिटायर जजों ने कोर्ट और जजों की ईमानदारी पर सवाल उठाकर न्यायिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करने की कोशिशों का आरोप लगाया है.
क्या अपने पक्ष में फैसले को किया जा रहा है प्रभावित?
उन्होंने कहा कि इस तरह की रणनीति बेहद परेशान करने वाली है, जिसमें कोर्ट की प्रतिष्ठा को खराब करने के इरादे से आधारहीन प्रचार-प्रसार से लेकर कोर्ट के फैसलों को अपने पक्ष में प्रभावित करने की सीधी और गुप्त कोशिशें शामिल हैं. साथ ही किसी के विचारों से मेल खाने वाले कोर्ट के फैसलों की तारीफ करने और जो किसी के विचारों से मेल नहीं खाते हैं, उनकी तीखी आलोचना करने की प्रथा न्यायिक समीक्षा और कानून के शासन को कमजोर करती है.
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